मनोरंजन
20वें केरल फिल्मोत्सव में दिखाई जाएंगी महान फिल्में
तिरुवनंतपुरम| 20 वें केरल अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव (आईएफएफके) में चार से 11 दिसंबर के बीच वो महान फिल्में दिखाई जाएंगी, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में गौरवपूर्ण स्थान हासिल किया है। इन फिल्मों में ‘कागज के फूल’, ‘अम्मा अरियन’, ‘ओको उरी कथा’, ‘मथिलुकल’, ‘गर्म हवा’ और ‘जैत रे जैत’ शामिल हैं। इनमें से हर फिल्म महान फिल्मकार की क्लासिक कृति है, जिसे देखकर फिल्मकार के व्यापक दृष्टिकोण तथा सिनेमा कला पर उनकी गहरी पकड़ का पता चलता है।
हालांकि ये फिल्में विषय, परिवेश और भाषा में अलग-अलग है, लेकिन इनमें भावप्रवण कथा और प्रभावकारी दृष्टांत एक समान हैं। उनकी प्रासंगिकता समय गुजरने के बावजूद विभिन्न दर्शक वर्गो में कम नहीं हुई है। इन फिल्मों में जो संदेश दिए गए हैं, उनकी शाश्वतता और सार्वभौमिकता आज भी कायम है।
कागज के फूल (1959) : हिंदी सिनेमा के महान फिल्मकार गुरुदत्त की कृतियों में महत्वपूर्ण कृति ‘कागज के फूल’ सिर्फ इस कारण से सर्वश्रेष्ठ नहीं है कि यह सिनेमास्कोप में पहला शॉट था, बल्कि इस फिल्म की कथा से गुरुदत्त के स्वयं के जीवन की भी काफी समानताएं थीं। फिल्म में एक गुमनाम अभिनेत्री को उभरते दिखाया गया है जो बाद में प्रशंसित अभिनेत्री बनती है, जबकि उस अभिनेत्री की खोज करने वाला निर्देशक गुमनामी में खो जाता है।
फिल्म को शुरुआत में व्यावसायिक विफलता का सामना करना पड़ा इसके बावजूद कभी नहीं डिगने वाला निर्देशक का दृष्टिकोण सिनेमा के दर्शकों के दिल को भा गया। फिल्म की आरंभिक व्यावसायिक असफलता के बावजूद ‘सफलता की गारंटी देने वाली फिल्म’ बनाने के लिए जाने जाने वाले निर्देशक गुरुदत्त की प्रतिष्ठा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
यह फिल्म अब तक बनी सबसे सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक मानी जाती है। इसका मुख्य श्रेय गुरुदत्त की सिनेमाई किस्सागोई पर पकड़ और एसडी बर्मन साहब के संगीत निर्देशक में गीता दत्त द्वारा गाए गए गीतों को जाता है।
2002 में, साइस एंड साउंड के आलोचकों और निर्देशकों ने एक सर्वेक्षण में ‘कागज के फूल’ को हर समय की सर्वश्रेष्ठ 200 सबसे बड़ी फिल्मों में शुमार किया गया।
अम्मा अरियन (1986) : फिल्म निमार्ता जॉन अब्राहम का अवंत ग्रेड मलयालम क्लासिक अम्मा अरियन (मैं अपनी मां के बारे में क्या पता करना चाहता हूं) दृष्टि और अर्थ दोनों ही मामले में अविश्वसनीय गहराई वाली एक जटिल फिल्म है। इसमें एक युवा की कहानी है, जिसकी हाल में मौत हो गई थी। इसमें उस युवक की कहानी को कई परतों में दिखाया गया है, जिनके दोस्त उसकी मां के गांव उसके इकलौते बेटे की मौत की सूचना देने आते हैं।
रिपोर्ताज और रिव्यू और तथ्य और कल्पना पर आधारित, यह फिल्म केवल व्यक्तिगत दुख की कहानी नहीं है, बल्कि केरल के इतिहास में एक बेहद अशांत समय में कई माताओं और कई बेटों की त्रासदियों की कहानी है। हाथों से संचालित होने वाले कैमरा से वृत्तचित्र शैली में फिल्माई गई अब्राहम की इस आखिरी फिल्म के लिए पैसा गांवों में घूम-घूमकर इकट्ठा किया गया।
इसे उन्होंने बाजार की शक्तियों का इस्तेमाल किए बगैर ही ‘विशुद्ध रूप से स्वतंत्र फिल्म निर्माण’ के अपने दर्शन को ध्यान में रखते हुए बनाया।
1987 के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ‘विशेष ज्यूरी’ पुरस्कार से सम्मानित ‘अम्मा अरियन’ एकमात्र दक्षिण भारतीय फिल्म थी, जिसे सभी समय के ‘सर्वश्रेष्ठ 10 भारतीय फिल्मों’ की ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट की सूची में शामिल किया गया।
ओका उरी कथा (1977) : यह मुंशी प्रेमचंद की कहानी कफन का एक उदार प्रस्तुतिकरण है। मृणाल सेन की ओका उरी कथा (द मार्जिनल वन्स) शोषितों पर शोषकों के उत्पीड़न के प्रभाव को उजागर करने वाली फिल्म है।
यह फिल्म आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गांव में शुरू होती है, जहां दो भूमिहीन लोग-पिता और पुत्र भूमि स्वामियों के हाथों शोषित और अपमानित होने के अंतहीन चक्र में गुजर रही जिंदगी से तंग आकर मजदूरी करने से जी चुराने लगते हैं।
इस कहानी का एक उच्च नैतिक आधार है कि गरीबी लोगों को गलत काम की ओर धकेल देती है। यह तर्कहीनता तथा जड़ से कटे होने के खतरों के बारे में मृणाल सेन के विचार को प्रकट करती है। यह फिल्म शोषितों के गुस्से को की अनदेखी किए बगैर ही उनके शोषण की निंदा करती है।
मथिलुकल (1989) : अडूर गोपालकृष्णन की मथिलुकल (वाल्स) इसी नाम की वाईकॉम मुहम्मद बशीर के आत्मकथात्मक उपन्यास पर आधारित है। फिल्म को जेल में फिल्माया गया है। इसमें साहित्यिक व्यक्तित्व और स्वतंत्रता सेनानी को ब्रिटिश राज के खिलाफ लिखने के लिए भेजा जाता है और बशीर और एक महिला कैदी नारायणी के बीच पनपे एक वास्तविक जीवन के प्यार को दशार्या गया है।
इस फिल्म को वेनिस फिल्म समारोह में दिखाया गया और इसे अच्छी प्रतिक्रिया मिली। इसने 1990 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में चार पुरस्कार जीते थे।
गरम हवा (1973) : इस्मत चुगताई की अप्रकाशित कहानी पर आधारित एम. एस. सत्यू ने यह फिल्म गरम हवा के नाम से बनायी। इसमें आगरा के एक मुस्लिम परिवार पर विभाजन के प्रभाव तथा उसके माध्यम से विभाजन के बाद की त्रासदी को दिखाया गया है। जब बड़े-बुजुर्ग पाकिस्तान जाने के बारे में चर्चा एवं बहस कर रहे होते हैं, उसका परिवार महात्मा गांधी की हत्या के बाद शुरू हुए दंगों में खत्म हो जाता है।
फिल्म उन दिनों के सांप्रदायिकता, असहिष्णुता और चहुंमुखी कट्टरता के दमनकारी माहौल को दिखाती है। उनके पैतृक हवेली को बेचे जाने के लिए मजबूर किए जाने और उनके परिवार के कारोबार की मंदी के दर्द के बावजूद, घर के लोग नए भारत को धर्मनिरपेक्ष होने के वादा में अपना विश्वास रखते हुए संघर्ष करते हैं।
जैत रे जैत (1977) : मराठी संगीत सिनेमा परंपरा में सबसे बड़ी फिल्मों में से एक के रूप में जानी जाने वाली, जब्बार पटेल की जैत रे जैत (विन, विन) मोहन अगाशे और स्मिता पाटिल जैसे कलाकारों की उपस्थित की बदौलत यह बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई। जी.एन. दांडेकर की एक पुस्तक पर आधारित, यह फिल्म अपने मूल में प्यार और नुकसान की एक मार्मिक कहानी है।
यह एक शहद को इकट्ठा करने वाले पुरुश के द्वारा ‘ठाकर’ आदिवासी समाज की जिंदगी और पंपराओं की पड़ताल करती है जिस पर व्यक्तिगत शांति को प्राप्त करने का जूनून सवार है। वह एक तलाकशुदा के साथ इस का एक उपाय ढूंढ़ता है। वह बिना सोचे-समझे अपने ‘सफेद व्हेल’ के रूप में दुख को आमंत्रित करता है।
इसमें जीवन का संवेदनशील चित्रण किया गया है। इसमें कोशिश है, विजय है और जीत की कीमत को दिखाया गया है। इसमें हृदयनाथ मंगेशकर, लता मंगेशकर, आशा भोंसले और उषा मंगेशकर की प्रतिभा की झलक मिलती है। इसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में राष्ट्रपति का रजत पदक मिला। इसके संगीत को अपार सफलता मिली जिसने इस फिल्म को क्लासिक का दर्जा प्रदान किया।
मनोरंजन
असित मोदी के साथ झगड़े पर आया दिलीप जोशी का बयान, कही ये बात
मुंबई। ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में जेठालाल गड़ा का किरदार निभाने वाले दिलीप जोशी को लेकर कई मीडिया रिपोर्ट्स छापी गईं, जिनमें दावा किया गया कि शो के सेट पर उनके और असित मोदी के बीच झगड़ा हुआ। फिलहाल अब दिलीप जोशी ने इस पूरे मामले पर चुप्पी तोड़ी है और खुलासा करते हुए बताया है कि इस पूरे मामले की सच्चाई क्या है। अपने 16 साल के जुड़ाव को लेकर भी दिलीप जोशी ने बात की और साफ कर दिया कि वो शो छोड़कर कहीं नहीं जा रहे और ऐसे में अफवाहों पर ध्यान न दिया जाए।
अफवाहों पर बोले दिलीप जोशी
दिलीप जोशी ने अपना बयान जारी करते हुए कहा, ‘मैं बस इन सभी अफवाहों के बारे में सब कुछ साफ करना चाहता हूं। मेरे और असित भाई के बारे में मीडिया में कुछ ऐसी कहानियां हैं जो पूरी तरह से झूठी हैं और ऐसी बातें सुनकर मुझे वाकई दुख होता है। ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ एक ऐसा शो है जो मेरे और लाखों प्रशंसकों के लिए बहुत मायने रखता है और जब लोग बेबुनियाद अफवाहें फैलाते हैं तो इससे न केवल हमें बल्कि हमारे वफादार दर्शकों को भी दुख होता है। किसी ऐसी चीज के बारे में नकारात्मकता फैलते देखना निराशाजनक है जिसने इतने सालों तक इतने लोगों को इतनी खुशी दी है। हर बार जब ऐसी अफवाहें सामने आती हैं तो ऐसा लगता है कि हम लगातार यह समझा रहे हैं कि वे पूरी तरह से झूठ हैं। यह थका देने वाला और निराशाजनक है क्योंकि यह सिर्फ हमारे बारे में नहीं है – यह उन सभी प्रशंसकों के बारे में है जो शो को पसंद करते हैं और ऐसी बातें पढ़कर परेशान हो जाते हैं।’
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