मुख्य समाचार
उत्तराखण्डः 28 को जीते कोई भी, हारेगा तो लोकतंत्र ही
खुले आम हो रही विधायकों की खरीद-फरोख्त
बागियों ने जारी किया सीएम पर स्टिंग
सुनील परमार
देहरादून। उत्तराखंड में सत्ता का संग्राम चरम पर है। सत्ता व विपक्ष कुर्सी हथियाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। लोकतंत्र का नंगा नाच चल रहा है और जनता मूक तमाशा देख रही है। भाजपा और कांग्रेस एक सिक्के के दो पहलू नजर आ रहे हैं। सत्ता मद में चूर और लोकतंत्र की हत्या करने पर अमादा। प्रदेश गठन के महज 15 वर्षों की अवधि में उत्तराखंड की जनता ने आठ सीएम देख लिए हैं। इसके बाद अब नौंवे सीएम की संभावना है। जो भी सत्ता में आया उसने ही प्रदेश से कहीं अधिक अपना और अपने नाते-रिश्तेदारों का भला किया है। जनता और लोकतंत्र हाशिए पर है।
गेंद अब स्पीकर के पाले में, बागियों की सदस्यता खतरे में
दिल्ली में बागियों का नेतृत्व कर रहे पूर्व काबीना मंत्री हरक सिंह रावत ने सीएम हरीश रावत का एक स्टिंग जारी किया है। इस स्टिंग में खुलासा किया गया है कि सीएम रावत बागी विधायकों को अपने पाले में करने के लिए पांच-पांच करोड़ रुपये की बोली लगा रहे हैं। दूसरी ओर सीएम ने अपने विधायकों को रामनगर के जिम कार्बेट में बांध कर रखा है। वहीं भाजपा विधायक कभी गुड़गांव तो कभी जयपुर की सैर कर रहे हैं। कुल मिलाकर लोकतंत्र में मिली आजादी का खून हो रहा है। भाजपा व कांग्रेस के विधायकों की सत्ता की यह होड़ जनता के लिए मुसीबत साबित हो रही है। पिछले चार सालों के दौरान प्रदेश ने केदारनाथ जैसी बड़ी आपदा झेली है। आज भी केदारनाथ आपदा की विनाशलीला के प्रमाण नरकंकाल के रूप में मिल रहे हैं। केदारघाटी के हर गांव में पिछले ढाई वर्षों से सन्नाटा पसरा है। जब लग रहा था कि आपदा प्रभावितों का जीवन दोबारा से पटरी पर लौट आएगा तो कभी चुनाव तो कभी उपचुनाव। और अब कुर्सी बचाने-गिराने का खेल।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगने के आसार
उत्तराखंड राज्य गठन के पीछे यह जनभावना थी कि दूर सीमांत गांव के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक विकास की किरण पहुंचे। राज्य गठन के बाद सत्ता के केंद्र में खड़ा आम आदमी विकास का इंतजार करता रहा। विकास के नाम पर सड़कों का जाल बिछाया गया। ठेकेदारों व नेताओं ने कमीशन खा कर सड़कें निर्मित की। आम आदमी को लगा कि इन सड़कों के रास्ते विकास आएगा, लेकिन गांवों में पहुंची नेताओं के ठेके की शराब। जब तक आम आदमी सत्ता के इस खेल को समझता तो उसकी युवा पीढ़ी नशे की आदी हो गयी थी। पहाड़ का युवक अब सेना में भर्ती के लिए तीन किलोमीटर की दौड़ में ही हांफ जाता है। सेना के रास्ते भी उसके लिए बंद हैं।
राज्य गठन के पीछे की अवधारणा थी कि पहाड़ की जवानी और पानी को रोकना। पर नेताओ,ं अफसरो, ठेकेदारों व माफियाओं ने यहां के जल-जंगल और जमीन पर कब्जा जमा लिया। आलम यह है कि पौड़ी, अल्मोड़ा, चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ से आज भी तेजी से पलायन हो रहा हैै। पर नेताओं को आम आदमी की चिन्ता कहां। शराब, खनन, जल, जंगल और जमीन के सौदों में ही उन्हें अपना फायदा नजर आता है। यह विडम्बना है कि इन 15 वर्षों में राज्य को एक भी अच्छा व ईमानदार नेता नहीं मिल सका। कुल मिलाकर यह घोटाला प्रदेश बन कर रह गया। कुर्सी के खेल में उत्तराखंड ने हरियाणा को भी मात दे दी है। हरियाणा में कभी आया राम-गया राम की नीति थी, लेकिन अब यह बीमारी उत्तराखंड के नेताओं को भी मिली है।
दरअसल, हकीकत तो यह है कि उत्तराखंड में जो नेता नगर पार्षद बनने लायक नहीं थे वो राज्य की नीति-नियंता बन बैठे। छोटा राज्य होने से क्लर्क भी पीसीएस या प्रमोटी आईएएस बन बैठा। जब नेताओं को ही आम लोगों की चिन्ता नहीं तो भला नौकरशाह क्यों चिन्ता करने लगे। अब विधायकों की खरीद-फरोख्त का खेल चल रहा है तो इसमें कोई नई बात नहीं है। यह खेल तब तक चल रहा है जब तक कि जनता जागरूक नहीं होती। खरीद-फरोख्त की इस मंडी में हर विधायक बिकने को तैयार है, ऐसे में 28 को जब सत्ता की बोली लगेगी तो कीमत जनता ही चुकाएगी और जीते कोई भी हारेगा तो लोकतंत्र ही।
प्रादेशिक
IPS अधिकारी संजय वर्मा बने महाराष्ट्र के नए डीजीपी, रश्मि शुक्ला के ट्रांसफर के बाद मिली जिम्मेदारी
महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नए डीजीपी का कार्यभार IPS संजय वर्मा को सौंपा गया है। आईपीएस संजय वर्मा को केंद्रीय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के नए पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया है। कुछ ही दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है। उससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले की शिकायत मिलने के बाद डीजीपी रश्मि शुक्ला के तबादले का आदेश दिया था।
कौन हैं IPS संजय वर्मा?
IPS संजय वर्मा 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। वह महाराष्ट्र में वर्तमान में कानून और तकनीकी के डीजी के रूप में कार्यरत रहे। वह अप्रैल 2028 में सेवानिवृत्त पुलिस सेवा से रिटायर होंगे। दरअसल, डीजीपी रश्मि शुक्ला को लेकर सियासी दलों के बीच पिछले कुछ समय से माहौल गर्म था। कांग्रेस के बाद उद्धव गुट की शिवसेना ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग की थी।
कांग्रेस ने रश्मि शुक्ला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से उन्हें महानिदेशक पद से हटाने की मांग की थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उन पर आरोप लगाया था कि वह बीजेपी के आदेश पर सरकार के लिए काम कर रही हैं।
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