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उत्तराखंड: शक्ति परीक्षण के लिए हाई कोर्ट ने तय की 31 मार्च की तिथि

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उत्‍तराखण्‍ड विधानसभा में शक्ति परीक्षण, हाई कोर्ट ने तय की 31 मार्च की तिथि, कांग्रेस के नौ बागी विधायक भी इस मतदान में शामिल हो सकेंगे, हरीश रावत सरकार

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उत्‍तराखण्‍ड विधानसभा में शक्ति परीक्षण, हाई कोर्ट ने तय की 31 मार्च की तिथि, कांग्रेस के नौ बागी विधायक भी इस मतदान में शामिल हो सकेंगे, हरीश रावत सरकार

देहरादून-नैनीताल। नैनीताल हाईकोर्ट के बड़े फैसले ने उत्तराखंड की सियासत में फिर से हलचल मचा दी है। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि विधानसभा में 31 मार्च को सरकार बनाने के लिए मतदान होगा। हाई कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल की देखदेख में शक्ति परीक्षण होगा। इसके बाद 1 अप्रैल को हाई कोर्ट में इस मामले की आगे की सुनवायी होगी। कांग्रेस के नौ बागी विधायक भी इस मतदान में शामिल हो सकेंगे। उधर, मंगलवार को कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति शासन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी। इस याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई होगी। उत्तराखंड में धारा 356 का प्रयोग कर राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने हाई कोर्ट में चुनौती दी जिस पर आज दूसरे दिन भी सुनवाई जारी रही। इसके साथ ही कांगे्रस के बागी 9 विधायकों की तरफ से छह विधायकों ने हाई कोर्ट में याचिका देकर सदस्यता रद्द करने की चुनौती दी थी।

उत्तराखण्ड का सियासी संकट

इस मामले में केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता राकेश थपलियाल ने कहा कि इस पर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल भी पक्ष रखेंगे। इस आधार पर कोर्ट ने उन्हें एक दिन का समय देते हुए मंगलवार को सुनवाई के लिए तिथि नियत की। सोमवार को न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। पूर्व सीएम हरीश रावत ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर 27 मार्च 2016 को राष्ट्रपति शासन लागू करने को चुनौती देते हुए उसे समाप्त करने की मांग की। याचिकाकर्ता की ओर से विश्वासमत हासिल करने के लिए पूर्व में निर्धारित तिथि 28 मार्च को बहुमत सिद्ध करने की याचना की गई। राज्यपाल तथा केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से की गई संस्तुति को निरस्त करने की मांग गई। याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रपति शासन राजनैतिक आधारों पर नहीं लगाया जा सकता है, जबकि सत्ताधारी पार्टी का सदन में बहुमत है। कहा गया कि भाजपा कुछ असंतुष्टों की मदद को लेकर स्वयं सरकार बनाने का षड्यंत्र कर रही है।

याचिका में कहा गया कि राष्ट्रपति शासन की घोषणा को निरस्त किया जाए और केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश का पूरा रिकार्ड तलब किया जाए तथा प्रदेश की सरकार को बहाल किया जाए। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि संविधान की धारा 356 तभी लगाई जा सकती है, जब कोई इमरजेंसी आ जाए, लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं है। याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट से पैरवी करने आए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की ओर से राष्ट्रपति शासन को राजनीति से प्रेरित बताया और निरस्त करने की मांग की। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की ओर से झारखंड, उत्तराखंड आदि राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला दिया गया, जिसमें एसआर बाम्बे, रघुवर प्रसाद, जगदंबिका पाल सहित कई निर्णयों की कॉपी कोर्ट में पेश की।

प्रादेशिक

IPS अधिकारी संजय वर्मा बने महाराष्ट्र के नए डीजीपी, रश्मि शुक्ला के ट्रांसफर के बाद मिली जिम्मेदारी

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महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नए डीजीपी का कार्यभार IPS संजय वर्मा को सौंपा गया है। आईपीएस संजय वर्मा को केंद्रीय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के नए पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया है। कुछ ही दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है। उससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले की शिकायत मिलने के बाद डीजीपी रश्मि शुक्ला के तबादले का आदेश दिया था।

कौन हैं IPS संजय वर्मा?

IPS संजय वर्मा 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। वह महाराष्ट्र में वर्तमान में कानून और तकनीकी के डीजी के रूप में कार्यरत रहे। वह अप्रैल 2028 में सेवानिवृत्त पुलिस सेवा से रिटायर होंगे। दरअसल, डीजीपी रश्मि शुक्ला को लेकर सियासी दलों के बीच पिछले कुछ समय से माहौल गर्म था। कांग्रेस के बाद उद्धव गुट की शिवसेना ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग की थी।

कांग्रेस ने रश्मि शुक्ला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से उन्हें महानिदेशक पद से हटाने की मांग की थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उन पर आरोप लगाया था कि वह बीजेपी के आदेश पर सरकार के लिए काम कर रही हैं।

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