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संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे महामना मदन मोहन मालवीय

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कई महापुरुषों ने भारतवर्ष को अपने श्रेष्ठ कामों और आने द्वारा किये गए सफल कार्यों को कर हमारे भारत वर्ष को गौरवान्वित किया है।

Madan Mohan Life Essay in Hindi

ऐसी महान विभूती पंडित महामना मदनमोहन मालवीय का जन्म भारत के उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद शहर में २५ दिसम्बर सन १८६१ को एक साधारण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम ब्रजनाथ और माता का नाम भूनादेवी था। चूँकि ये लोग मालवा के मूल निवासी थे, अतः मालवीय कहलाए। राष्ट्रीय नेताओं में अग्रणी मालवीय जी को शिक्षक वर्ग भी श्रद्धा और आदर से आज भी याद करते हैं।
मालवीय जी ने सन् 1893 में कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। ‘‘वकालत के क्षेत्र में मालवीयजी की सबसे बड़ी सफलता चौरीचौरा कांड के अभियुक्तों को फाँसी से बचा लेने की थी। । चौरी-चौरा कांड के 170 भारतीयों को फाँसी की सजा सुनाई गई थी, किंतु मालवीय जी के बुद्धि-कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 151 लोगों को फाँसी से छुड़ा लिया था। देश में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व में इस अद्भुत केस की ख्याती फैल गई।
राष्ट्र की सेवा के साथ ही साथ नवयुवकों के चरित्र-निर्माण के लिए और भारतीय संस्कृति की जीवंतता को बनाए रखने के लिए मालवीयजी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की।’’मालवीय जी का विश्वास था कि राष्ट्र की उन्नति तभी संभव है, जब वहाँ के निवासी सुशिक्षित हों। बिना शिक्षा के मनुष्य पशुवत् माना जाता है। मालवीय जी नगर-नगर की गलियों तथा गाँवों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार में जुटे थे। वे जानते थे की व्यक्ति अपने अधिकारों को तभी भली भाँति समझ सकता है, जब वह शिक्षित हो। संसार के जो राष्ट्र आज उन्नति के शिखर पर हैं, वे शिक्षा के कारण ही हैं।

ऐसा कहा जाता है कि, पं. मदनमोहन मालवीय जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का संकल्प जब कुंभ मेले में त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आयी जनता के बीच दोहराया तभी वहीं एक वृद्धा ने मालवीय जी को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया था।
विश्वविद्यालय के निर्माण के समय पं. मदन मोहन मालवीय जी के जीवन में एक खास घटना हुई, जब दान के लिये मालवीय जी हैदराबाद के निजाम के पास गये तो, निजाम ने मदद करने से साफ इंकार कर दिया। मगर मालवीय जी इतनी जल्दी हार मानने वाले इंसान तो थे नही। वो उचित क्षणं का इंतजार कर रहे थे।
इत्तफाक से उसी समय एक सेठ का निधन हो गया। शव-यात्रा में घर वाले पैसों की वर्षा करते हुए चल रहे थे। तभी मालवीय जी को एक उपाय सुझा और वो भी शव-यात्रा में शामिल हो गये तथा पैसा बटोरने लगे। महामना को ऐसा करते देख सभी को आश्चर्य हुआ, तभी एक व्यक्ति ने पूछ ही लिया कि “आप ये क्या कर रहे हैं!” ऐसा सुनते ही मालवीय जी ने कहा “भाई क्या करु ? तुम्हारे निजाम ने कुछ भी देने से इनकार कर दिया और जब खाली हाँथ बनारस लौटूँगा तो लोगों के पूछने पर कि हैदराबाद से क्या लाये तो क्या कहूँगा कि खाली हाँथ लौट आया? भाई, निजाम का दान न सही, शव-विमान का ही सही।“
ये बात जब निजाम को पता चली वो बहुत शर्मिदा हुआ और महामना से माफी माँगते हुए विश्वविद्यालय के लिये काफी अनुदान दिया। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि मालवीय जी के मृदव्यवहार एवं दृणइच्छा शक्ती का ही परिणाम है, काशी हिंदू विश्वविद्यालय। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भी अपनी भूमिका निभा चुका है। विश्व में अपनी श्रेष्ठ पहचान लिये काशी हिन्दु विश्वविद्यालय भारत का गौरव है। श्री सुंदरलाल, पं. मदनमोहन मालवीय, डॉ. एस. राधाकृष्णन् (भूतपूर्व राष्ट्रपति), डॉ. अमरनाथ झा, आचार्य नरेंद्रदेव, डॉ. रामस्वामी अय्यर, डॉ. त्रिगुण सेन (भूतपूर्व केंद्रीय शिक्षामंत्री) जैसे विद्वान यहाँ के कुलपति रह चुके हैं।

मालवीय जी संस्कृत, हिंदी तथा अंग्रेजी तीनों ही भाषाओं के ज्ञाता थे। महामना जी का जीवन विद्यार्थियों के लिए एक महान प्रेरणा स्रोत है। जनसाधारण में वे अपने सरल स्वभाव के कारण प्रिय थे, कोई भी उनके साथ बात कर सकता था। मानों वे उनके पिता, बन्धु अथवा मित्र हों।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के कुछ ही समय की बात है, यदा-कदा अध्यापक उद्दंड छात्रों को उनकी गलतियों के लिए आर्थिक दंड दे दिया करते थे, मगर छात्र उस दंड को माफ कराने मालवीय जी के पास पहुंच जाते और महामना उसे माफ भी कर देते थे। यह बात शिक्षकों को अच्छी नहीं लगी और वह मालवीय जी के पास जाकर बोले, ‘महामना, आप उद्दंड छात्रों का आर्थिक दंड माफ कर उनका मनोबल बढ़ा रहे हैं। इससे उनमें अनुशासनहीनता बढ़ती है। इससे बुराई को बढ़ावा मिलता है। आप अनुशासन बनाए रखने के लिए उनके दंड माफ न करें।’

मालवीय जी ने शिक्षकों की बातें ध्यान से सुनीं फिर बोले, ‘मित्रो, जब मैं प्रथम वर्ष का छात्र था तो एक दिन गंदे कपड़े पहनने के कारण मुझ पर छह पैसे का अर्थ दंड लगाया गया था। आप सोचिए, उन दिनों मुझ जैसे छात्रों के पास दो पैसे साबुन के लिए नहीं होते थे तो दंड देने के लिए छह पैसे कहां से लाता। इस दंड की पूर्ति किस प्रकार की, यह याद करते हुए मेरे हाथ स्वत: छात्रों के प्रार्थना पत्र पर क्षमा लिख देते हैं।’ शिक्षक निरुत्तर हो गए। भारतीय स्थापत्य कला के अलंकरण भी मालवीय जी के आदर्श के ही प्रतिफल हैं। मदन मोहन मालवीया जी जैसी शख्सियतें इस देश की धरती पर बार बार जन्म नहीं लेती।

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नेशनल

पीएम मोदी पर लिखी किताब के प्रचार के लिए स्मृति ईरानी चार देशों की यात्रा पर

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नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एक नवीनतम पुस्तक ‘मोडायलॉग – कन्वर्सेशन्स फॉर ए विकसित भारत’ के प्रचार के लिए चार देशों की यात्रा पर रवाना हो गई हैं। यह दौरा 20 नवंबर को शुरू हुआ और इसका उद्देश्य ईरानी को मध्य पूर्व, ओमान और ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से जोड़ना है।

स्मृति ईरानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि,

एक बार फिर से आगे बढ़ते हुए, 4 देशों की रोमांचक पुस्तक यात्रा पर निकल पड़े हैं! 🇮🇳 जीवंत भारतीय प्रवासियों से जुड़ने, भारत की अपार संभावनाओं का जश्न मनाने और सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए उत्सुक हूँ। यह यात्रा सिर्फ़ एक किताब के बारे में नहीं है; यह कहानी कहने, विरासत और आकांक्षाओं के बारे में है जो हमें एकजुट करती हैं। बने रहिए क्योंकि मैं आप सभी के साथ इस अविश्वसनीय साहसिक यात्रा की झलकियाँ साझा करता हूँ

कुवैत, दुबई, ओमान और ब्रिटेन जाएंगी स्मृति ईरानी

डॉ. अश्विन फर्नांडिस द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन दर्शन पर प्रकाश डालती है तथा विकसित भारत के लिए उनके दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करती है। कार्यक्रम के अनुसार ईरानी अपनी यात्रा के पहले चरण में कुवैत, दुबई, फिर ओमान और अंत में ब्रिटेन जाएंगी।

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