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आध्यात्म

मन से ही मनभाया रूप बनाने का अभ्‍यास करना चाहिये

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kripalu ji maharaj

आपको यह भी छूट दे दी गई है कि चाहे जिस आयु का रूपध्‍यान बना लीजिये। बार-बार आयु का परिवर्तन भी करते रहिये। उनके नाम, गुण, लीला, धामादि भी अपनी रूचि के अनुसार स्‍मरण कीजिये। जो श्रृंगार पसन्‍द हो, वही श्रृंगार भी कीजिये। आप स्‍वतंत्र हैं, यह सब करने में। यह न सोचिये कि हमारे मन का बनाया हुआ रूप तो साधारण ही है, अतः हमको साधारण दर्शन मिलेगा। दर्शन तो वास्‍तविक होगा। श्रीकृष्‍ण यदि शूकर बन कर भी आयेंगे, तब भी वही परमानन्‍द मिलगा। जैसे चीनी के बने खिलौने सब एक से ही मीठे होते हैं।

मन तो प्राकृत है। अतः रूपध्‍यान भी प्राकृत ही बनेगा, किंतु उसमें दिव्‍य भावना बनाते रहिये। जब साधना भक्ति करते-करते अंतःकरण शुद्ध हो जायगा, तब स्‍वरूपशक्ति की कृपा से शरीरेन्द्रिय मन बुद्धि दिव्‍य हो जायेंगे। तभी दिव्‍य शक्ति प्राप्‍त मन, दिव्‍य ध्‍यान कर सकेगा। यदि कोई चाहे तो प्रथम मूर्ति या मनभाये चित्र की सहायता ले ले। मेरी राय में तो मन से ही मनभाया रूप बनाने का अभ्‍यास करना चाहिये। मन से बनाने में एवं उनकी सेवा करने में किसी बाह्य पदार्थ की आवश्‍यकता ही नहीं पड़ेगी। चाहे आप क्षण-क्षण में अत्‍यन्‍त दैदीप्‍यमान हीरों का हार पहनाया करें। एक बात और समझ लीजिये कि यह रूपध्‍यान सर्वत्र एवं सर्वदा करते रहना है। चाहे आप गंदी से गंदी जगह पर ही क्‍यों न हों।

भक्ति में अनन्‍यता पर भी प्रमुख ध्‍यान देना है। केवल श्रीकृष्‍ण एवं उनके नाम, रूप, गुण, लीला, धाम तथा गुरु में ही मन का लगाव रहे। अन्‍य देव, दानव, मानव या मायिक पदार्थों में मन का लगाव न हो। इसका तात्‍पर्य यह न समझ लो कि संसार से भागना है। वास्‍तव में संसार का सेवन करते समय उसमें सुख नहीं मानना है। श्रीकृष्‍ण का प्रसाद मानकर खाना पीना एवं व्‍यवहार करना है। उपर्युक्‍त समस्‍त ज्ञान साथ रखकर सावधान होकर साधना भक्ति करने पर शीघ्र ही मन अपने स्‍वामी से मिलने को अत्‍यन्‍त व्‍याकुल हो उठेगा। बस वही व्‍याकुलता ही भक्ति का वास्‍तविक स्‍वरूप है। यथा गौरांग महाप्रभु ने कहा-

युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम् ।

शून्‍यायितं जगत्‍सर्वं गोविन्‍द विरहेण में।।

(शिक्षाष्‍टक-गौरांग महाप्रभु)

अर्थात् उनसे मिले बिना रहा न जाय। एक क्षण भी युग लगे, सारा संसार शून्‍य सा लगे।

एक बात और ध्‍यान में रखना है कि साधनाभक्ति करते-करते जब अश्र ुपात आदि भाव प्रकट होने लगे तो लोकरंजन का रोग न लगने पाये। अन्‍यथा लोगों से सम्‍मान पाने के लालच में भक्ति भाव से ही हाथ धोना पड़ जायगा। आपको तो अपमान का शौक बढ़ाना होगा। गौरांगमहाप्रभु ने कहा है-

तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सीहिष्‍णुना।

अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः।।

(शिक्षाष्‍टक-गौरांग महाप्रभु)

आध्यात्म

महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन, सीएम योगी ने दी बधाई

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लखनऊ ।लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन है. आज के दिन डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जाएगा और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं. आज नदी किनारे बने हुए छठ घाट पर शाम के समय व्रती महिलाएं पूरी निष्ठा भाव से भगवान भास्कर की उपासना करती हैं. व्रती पानी में खड़े होकर ठेकुआ, गन्ना समेत अन्य प्रसाद सामग्री से सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार, संतान की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

यूपी के मुख्यमंत्री ने भी दी बधाई।

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