आध्यात्म
संसार, आत्मा का विषय हो ही नहीं सकता
जब आत्मा दिव्य नित्य तत्तव है, जो उसका विषय भी दिव्य ही होगा। संसार, आत्मा का विषय हो ही नहीं सकता। वस्तुतः प्रत्येक अंश अपने अंशी को ही चाहता है। अतः आत्मा भी जगत् में व्याप्त परमात्मा का ही नित्य दिव्य अनन्त सुख चाहता है। वही आत्मा का विषय है। हम को संसार में जो सुख का मिथ्या ज्ञान होता है, वह हमारी ही मनः कल्पना का परिणाम है। यदि हम संसार में सुख न माने तो दुःख स्वयं समाप्त हो जाय।
संसार में सबको एक ही वस्तु में सुख नहीं मिलता जो व्यक्ति जिस व्यक्ति या वस्तु में बार-बार सुख की भावना बनाता है, उसीमें आसक्ति हो जाती है। फिर उसी की ही कामना उत्पन् न होती है। फिर उसी कामनापूर्ति में क्षणिक सुख मिल जाता है। यही कारण है कि एक भिखारिन माँ को अपने काणे कुरूप पुत्र से ही सुख मिलता है। शराबी को ही शराब से सुख मिलता है। पंडितजी को शराब देखकर भी दुःख मिलता है। यदि शराब में सुख होता तो पंडित जी को भी शराबी की भांति ही सुख मिलता।
संसार का कल्पित सुख भी एक सा नहीं होता। प्यासे को ही पानी में, कामी को ही कामिनी में सुख मिलता है। वह सुख भी प्रतिक्षण घटमान होता है। माँ कई दिन के खोये अपने शिशु को प्रथम आलिंगन में अधिक सुखी, पुनः दूसरी तीसरी बार क्रमशः कम सुखी एवं अन्त में विरक्त सी हो जाती है।
राधे राधे राधे राधे राधे राधे
जग विराग हो तितनोइ, जितनोइ हरि अनुराग।
तब हो हरि अनुराग जब, गुरु चरनन मन लाग।। 12।।
भावार्थ- वास्तविक गुरु की शरणागति से ही श्रीकृष्ण में अनुराग उत्पन् न होता है। जितनी मात्रा में यह अनुराग होता है उतनी ही मात्रा में संसार से वैराग्य भी होता है।
व्याख्या– कुछ लोग कहते हैं कि प्रथम संसार से ही वैराग्य करो। कुछ लोग कहते हैं कि प्रथम श्रीकृष्ण से ही अनुराग करो। यह विरोधाभास है। मेरी राय में इन दोनों से पूर्व गुरु का कार्य है। प्रथम गुरु द्वारा तत्वज्ञान प्राप्त करना होगा। उस तत्वज्ञान द्वारा गुरु, श्रीकृष्ण, वैराग्य, अनुरागादि का विज्ञान हृदयंगम करना होगा।
हम जितना समझते हैं, उसे सही मान लेना सही नहीं है। हमने ‘क’ का ज्ञान भी स्वयं नहीं प्राप्त किया। फिर परोक्ष तत्व-जीव, ब्रह्म, माया आदि का ज्ञान कैसे प्राप्त कर लेंगे। जब तत्वज्ञज्ञन हो जायगा, तब हम जानेंगे कि एक जीव है एवं उसका एक मन है। वह मन ही बन्धन एवं मोक्ष का कारण है। उस मन को मायिक जगत् से हटाकर दिव्य श्रीकृष्ण में लगाना है। क्योंकि श्रीकृष्ण ही हमारे माता, पिता, भ्राता, भर्ता, अंशी आदि सब कुछ हैं।
आध्यात्म
महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन, सीएम योगी ने दी बधाई
लखनऊ ।लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन है. आज के दिन डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जाएगा और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं. आज नदी किनारे बने हुए छठ घाट पर शाम के समय व्रती महिलाएं पूरी निष्ठा भाव से भगवान भास्कर की उपासना करती हैं. व्रती पानी में खड़े होकर ठेकुआ, गन्ना समेत अन्य प्रसाद सामग्री से सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार, संतान की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
यूपी के मुख्यमंत्री ने भी दी बधाई।
महापर्व 'छठ' पर हमरे ओर से आप सब माता-बहिन आ पूरा भोजपुरी समाज के लोगन के बहुत-बहुत मंगलकामना…
जय जय छठी मइया! pic.twitter.com/KR2lpcamdO
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 7, 2024
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