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प्रादेशिक

मुजफ्फरनगर की तरह बिजनौर दंगे की आग क्यों नहीं फैली?

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मुजफ्फरनगर

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मुजफ्फरनगरसईद नकवी 

मेरे दिमाग में बिजनौर-नजीबाबाद मार्ग पर पेड्डा गांव की ओर बढ़ते हुए अभी भी फरवरी 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों की छाप थी। वही मुजफ्फरनगर, जहां जाटों ने अपने घरों की छतों से तीन मुसलमानों को गोली मार दी थी।

यह बवाल उस समय शुरू हुआ, जब बस अड्डे पर खड़ी दो मुसलमान लड़कियों के साथ छेड़खानी की गई। जब मुसलमान समुदाय के लड़कों ने इसका विरोध किया तो आर्थिक रूप से सशक्त जाटों ने उन्हें सबक सिखाने का फैसला किया।

पेड्डा में मुसलमान कई पीढ़ियों से धोबी और मछुआरे का व्यवसाय करते हैं। सर सैयद अहमद खान की नजर से देखा जाए तो ये ‘अरजल्स’ और ‘मेनियल’ हैं। जाति एवं वर्ग के संदर्भ में इनके ऊपर ‘अजलाफ्स’, जुलाहे और ‘अशरफ’ आते हैं।

इस छेड़छाड़ को सह चुकी यास्मीन और फरहीन कॉलेज छात्राएं हैं और उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसमें कोई दोराय नहीं है कि जाट समृद्ध किसान हैं, लेकिन लिंग समानता जैसे मुद्दों पर ये सामाजिक रूप से कमजोर हैं और खाप की राजनीति में फंसे हुए हैं। पुरुष-महिला आबादी अनुपात महिलाओं के पक्ष में नहीं है। मुसलमानों में आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिगमन भी है। इन उच्च जातियों की आर्थिक शक्ति के अहंकार का प्रकोप निचली जातियों को उठाना पड़ता है। दलितों और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में इजाफे से इसे समझा जा सकता है।

पेड्डा गांव के ग्राम प्रधान अनीस अहमद छोटे कद के शख्स हैं, जिनका रंग काला है। वह हमेशा मुसलमानों में प्रचलित टोपी पहने रखते हैं। उन्होंने देवबंद मदरसे में सिलाई का प्रशिक्षण लिया है। वह भी मुसलमानों के पाखंड से अछूते नहीं हैं। वह कहते हैं, “मैं महिलाओं को छूता नहीं हूं। मैं मैनीक्वीन (पुतले) के लिए कपड़े सीता हूं।”

वाशिंग मशीनों के चलन के साथ पेड्डा जैसे गांवों में मुसलमान मछुआरे, दर्जी, नाई, फल एवं सब्जी विक्रेता, ऑटोमोबाइल यांत्रिकी जैसे अलग-अलग कामों में लग गए। प्रधान मुझे घर तक लेकर गया, जहां उनकी घर की छत पर तीन लोगों को गोली मार दी गई थी। महिलाएं विलाप कर रही थीं।

गली के बाहर पेड्डा के सबसे सशक्त जाट संसार सिंह का आलीशान मकान था। वह इस घटना के बाद पांच किलोमीटर दूर एक अन्य गांव में छिप गया, लेकिन उसे इस संगठित अपराध में शामिल आठ अन्य के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।

संसार सिंह के घर के बाहर दर्जनभर पुलिसकर्मी थे, जिनके पास हथियार थे। यह हर जाट घर के बाहर का नजारा था, जहां बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी पहरा दे रहे थे। इसे देखते हुए अनीस अहमद ने कहा, “देखो, ये सिर्फ जाटों के घरों की सुरक्षा कर रहे हैं।”

बिजनौर पुलिस के मुख्यालय में पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) धर्म वीर सिंह ने अपनी मेज हल्के से थपथपाते हुए कहा, “हां, हम जाटों के घरों की रक्षा कर रहे हैं। यदि पुलिस की तैनाती नहीं की जाती तो गुस्साए मुसलमान जाट महिलाओं और बच्चों पर कहर बरपाते।”

हालांकि, सिंह की बात में दम है, लेकिन क्या मुसलमान अपनी मौजूदा बदहाली की हालत में कुछ कर पाएंगे? दो स्थानीय पत्रकारों ‘स्वतंत्र आवाज’ के नरेश शर्मा और टीवी चैनल ‘इंडिया वॉयस’ के जलील अहमद पुलिस अधीक्षक सिंह के साथ बैठे हुए हैं।

सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा, “कृपया इस दंगे को फैलने से रोकने के लिए पुलिस का कुछ आभार व्यक्त करें।” लेकिन सवाल यही है कि ये दंगे क्यों नहीं बढ़े? उन्होंने सांप्रदायिकता के लिए भौगोलिक स्थिति को बाधा बताते हुए कहा, “गंगा मेरठ, मुजफ्फरनगर और बिजनौर के बीच बहती है। कुछ वर्षो पहले गंगा के उस किनारे पर चली सांप्रदायिकता धारा से यह कमजोर पड़ गई है। बिजनौर में सांप्रदायिकता के कमजोर पड़ने के अन्य कारण भी हैं।”

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की मुजफ्फरनगर और शामली में मौजूदगी से बहुत अंतर पड़ा। ‘लव जिहाद’ की मनगढ़त कहानियां, पाकिस्तान की ओर से जारी झूठा वीडियो, जिसमें यह दिखाया गया कि मुसलमान, जाटों को निशाना बना रहे हैं। हथियारों से लैस भीड़ की महापचांयतें और अमित शाह का यह लोकप्रिय जुमला कि ‘ये बदले का इलेक्शन है’। इन सभी ने माहौल को भड़का दिया। आज, भगवाकरण की राजनीति हो रही है, लेकिन यह जानलेवा राजनीतिकरण नहीं है।

बिजनौर में मुसलमानों और प्रशासन (यहां तक कि कुछ जाटों) ने समाजवादी पार्टी की स्थानीय विधायक रुचि वीरा की प्रशंसा की, जो इस तनाव के समय गांव में चौबीसों घंटे मौजूद थीं। वह हिंसा के कुछ दिनों के भीतर ही राहत राशि के तौर पर लखनऊ में सरकार से 20 लाख रुपये प्राप्त करने में कामयाब रही थीं।

जिलाधिकारी जगत राज, शहर के पुलिस अधीक्षक एम.एम. बेग और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उमेश कुमार श्रीवास्तव ने लगभग 60 प्रिंट और टीवी पत्रकारों को संबोधित किया। मैंने बहुत कम सुना है कि मीडिया ने इस तरह का धन्यवाद दिया हो।

मैंने लौटते समय जब गंगा को पार किया तो मुझे एसपी धर्मवीर सिंह के वे शब्द याद आए थे। उन्होंने कहा था, “नदियां सांप्रदायिक लहरों को बाधित कर देती हैं।” मेरठ पहुंचने से पहले मैंने मुजफ्फरनगर जाने के लिए संकेत बोर्ड देखे। मुजफ्फरनगर की वह भयावह यादें थीं। मेरठ का 1987 का वह नरसंहार था, जिसमें पुलिस ने 42 मुसलमान युवकों को नहर के पास कतार में खड़ा कर गोली मार दी थी।

उस समय पी.चिदंबरम राजीव गांधी सरकार में गृह राज्यमंत्री थे। अब वह स्तंभकार हैं। हो सकता है कि किसी दिन वह हमें यह बता पाएं कि वह मामला 29 साल से क्यों लंबित पड़ा है? गाजियाबाद पहुंचने पर मैंने दादरी के संकेत बोर्ड देखे, जहां सितंबर 2015 में गौरक्षकों ने मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी।

उत्तर प्रदेश

योगी सरकार के प्रयासों से दिव्य, भव्य अयोध्या में फिर से लौटने लगा ‘राम राज्य’

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अयोध्या। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के प्रयासों से दिव्य और भव्य अयोध्या में एक बार फिर से रामराज्य लौटने लगा है। इसे भवगान श्रीराम की विशेष कृपा ही कहेंगे कि अयोध्या में ऑनलाइन की जाने वाली शिकायतों का समयबद्ध और गुणवत्तापूर्ण ढंग से निस्तारण हो रहा है। हर शिकायतों का प्राथमिकता के आधार पर समाधान किया जा रहा है। ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि मुख्यमंत्री कार्यालय से आई एक अक्टूबर की रिपोर्ट बता रही है, जिसमें जिले के 19 में से 18 थाने प्रदेश में पहली रैंक पर आए हैं। इसमें कोतवाली नगर टॉप पर है।

जनपद पुलिस ने आईजीआरएस यानि एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली पोर्टल पर ऑनलाइन आने वाली जन शिकायतों के समयबद्ध और गुणवत्तापूर्ण निस्तारण में पहली रैंक प्राप्त की है। पिछले कई महीनों बाद यह मौका आया है, जब अयोध्या पुलिस को यह सफलता मिली है। एसएसपी ने बेहतर प्रदर्शन करने वाले थानेदारों को सराहते हुए फेहरिस्त में निचले पायदान पर मौजूद थाने को बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित किया है। प्रदेश सरकार ने जनता की शिकायतों के निस्तारण के लिए आईजीआरएस पोर्टल की व्यवस्था तैयार की है। नियमानुसार, इस पोर्टल पर आने वाली ऑनलाइन शिकायत का 30 दिन के भीतर गुणवत्तापरक तरीके से निस्तारण करना होता है। समय समय पर इन शिकायतों से जुड़ा फीडबैक लखनऊ में बैठे आला अफसर लेते हैं। डिफाल्टर या असंतोष की स्थिति में शिकायतों को वापस लौटाया जाता है, ताकि उनका निस्तारण हो सके। जनपद में अक्टूबर माह में 19 थानों में तकरीबन 2700 शिकायतें आईजीआरएस पर हुई हैं। 100 फीसदी शिकायतों का निस्तारण हो चुका है।

नगर कोतवाली नंबर वन

एसपी ग्रामीण बलवंत चौधरी ने बताया कि आईजीआरएस के पोर्टल पर दर्ज शिकायतों के निस्तारण के मामले में कोतवाली नगर ने बाजी मारी है। इसके बाद सर्वाधिक शिकायतों को हल कर दूसरे नम्बर पर स्थान बनाने वाला थाना इनायतनगर है। बताया जाता है कि पुलिस में आई सभी ऑनलाइन शिकायतों के निस्तारण के लिए एक दारोगा मौके पर अवश्य जाता है। वहां से जीपीएस की तस्वीरें आती हैं, जिससे पता चलता है मामले को निपटाने में पुलिस दिलचस्पी दिखाती है।

रैंक वार थाना – प्राप्त शिकायतें व निस्तारण

1- कोतवाली नगर- 354
2- इनायतनगर- 297
3- अयोध्या कोतवाली- 272
4- कोतवाली बीकापुर- 243
5- महराजगंज- 241
6- रौनाही- 227
7- रुदौली- 209
8- गोसाईगंज- 160
9- तारुन- 156
10- खंडासा- 140
11- हैदरगंज- 133
12- कैंट- 112
13- कुमारगंज- 89
14- रामजन्मभूमि- 85
15- पटरंगा- 66
16- बाबा बाजार- 61
17- मवई- 59
18- थाना महिला- 48
19- पूराकलंदर- 324

नोट- थाना पूराकलंदर ने ऑनलाइन शिकायत पत्र देखने में देरी लगाई। इस कारण उसकी रैंक बहुत गिर गई है।

क्‍या है आइजीआरएस

एसएसपी राजकरण नैयर ने बताया कि आईजीआरएस जनसुनवाई के लिये एक आनलाइन माध्यम है। इस माध्यम से किसी भी व्यक्ति को शिकायत करने के लिये कहीं चक्कर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है‌। पीड़ित व्यक्ति इसके पोर्टल पर आनलाइन शिकयत दर्ज कराता है। संबंधित विभाग उसकी जांच कराकर निस्तारण कराने का प्रयास करता है। इस माध्यम से दर्ज कराई गई शिकायत पर जवाबदेही भी रहती है। शिकायत की हर स्थित से शिकायतकर्ता को जानकारी भी मिलती है।

प्रत्‍येक माह होती है शासन स्‍तर पर समीक्षा

आईजी प्रवीण कुमार ने बताया कि जनसुनवाई के इस पोर्टल पर दर्ज कराई गई शिकायतों के निस्तारण की प्रत्येक माह शासन स्तर पर समीक्षा होती है। आईजीआरएस पर दर्ज कराई गई शिकायतों के निस्तारण का फीडबैक लेते हुए शासन के मानकों के हिसाब से पीड़ित संतुष्ट है या असंतुष्ट, इसकी समीक्षा करके रैंक जारी की जाती है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश रहेगी अयोध्या के सभी थाने हमेशा अग्रणी रहें।

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