प्रादेशिक
शिवराज की नीतियां ठेकदार परस्त : राजेंद्र सिंह
भोपाल| स्टॉकहोम वाटर प्राइज से सम्मानित ‘जलपुरुष’ राजेंद्र सिंह का कहना है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नीतियों में बीते एक दशक में बड़ा बदलाव आया है। चौहान ने जब राज्य की सत्ता संभाली थी तो उनकी नीतियां समाज हितैषी थीं। अपने पहले कार्यकाल में वह इस पर अमल करते भी दिखे, पर अब उनकी योजनाएं और नीतियां पूरी तरह ठेकेदार परस्त हो गई हैं। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित प्रशासन अकादमी में बुधवार को आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह में हिस्सा लेने आए राजेंद्र सिंह ने आईएएनएस से कहा, “उज्जैन सिंहस्थ कुंभ के नाम पर नर्मदा नदी के जल को क्षिप्रा में लाकर उसे प्रवाहमान बनाया गया। सरकार के इस तर्क पर भरोसा भी किया जा सकता है कि उस समय पानी की जरूरत थी। पर अगले कुंभ में भी इसी तरह से पानी लाया जाए यह ठीक नहीं होगा। इसलिए अभी से यह प्रयास होना चाहिए कि क्षिप्रा को पुनर्जीवित कर उसे प्रवाहमान बनाया जाए, क्योंकि कुंभ को अभी 12 वर्ष हैं।”
राजेंद्र सिंह के अनुसार, वर्ष 2005 में चौहान ने जब राज्य की कमान संभाली थी तो उनका काम करने का तरीका समाज हितैषी था। उन्होंने राज्य के ईमानदार अफसरों को जल, जंगल व जमीन के संरक्षण के काम में लगाया था। मगर मुझे यह समझ में नहीं आता कि अच्छी शुरुआत करने वाले चौहान की नीतियां और योजनाएं बीते एक दशक में कैसे बदल गईं। वह इसे भूल कैसे गए, आखिर किस लाभ के चलते ऐसा हुआ?
बकौल राजेंद्र सिंह, चौहान के शुरुआती कामकाज के तौर तरीके से लगता था कि यह गांव और आम आदमी का मुख्यमंत्री है, क्योंकि उनके काम करने का तरीका ही कुछ ऐसा ही था। तब लगता था कि वह गांव का ख्याल रखेंगे। पर वह अपने दूसरे कार्यकाल में गांव को भूल गए, पानी को भूल गए। अब तो उन्हें सड़कें, बड़े बांध, नदी जोड़ना ज्यादा रुचिकर लगने लगे हैं। यानी वह अब ऐसे काम ज्यादा करने लगे हैं, जिनमें ठेकेदारों की भागीदारी अधिक होती है। यह सब ठेकेदारों के चंगुल में फंसने से हुआ है।
उन्होंने कहा कि राज्य की जनता ने इन्हें भरपूर मौका दिया है और तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाया है। वे चाहते तो जनता की अपेक्षाओं को पूरा कर सकते थे, उस पर खरे उतर सकते थे, पर ऐसा हो नहीं पाया। वह जन अपेक्षाओं पर खरे तब उतरेंगे, जब मध्य प्रदेश के गांव बचेंगे।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के तौर पर चौहान को ‘गांव बचेंगे, देश बचेगा’ के नारे को आधार बनाकर काम करना चाहिए। लालच के काम करने, साइकिल बांटने, कंप्यूटर बांटने से समाज का भला नहीं होने वाला। हां, इससे राजनीतिक स्वार्थ जरूर पूरा हो सकता है।
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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई
नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।
बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।
बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।
ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।
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