प्रादेशिक
शिवराज के 11 वर्ष के शासनकाल में कई बार उठे सवाल
भोपाल | मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बतौर मुख्यमंत्री 11 वर्ष का कार्यकाल कम बाधाओं भरा नहीं रहा, उन्हें इस अवधि में ऐसे आरोपों का सामना करना पड़ा, जो किसी भी राजनेता की कुर्सी को डिगाने के लिए पर्याप्त होते, मगर वे हर बार विरोधियों की कोशिशों को नाकाम करने में कामयाब रहे।
दूसरी ओर शिवराज साल-दर-साल, चुनाव-दर-चुनाव जनमत को अपने पक्ष में बनाए रखने में सफल हुए। यही कारण है कि वे पार्टी को तीसरा चुनाव जिताने वाले राज्य के पहले नेता के तौर पर उभरे।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेतृत्व ने 29 नवंबर 2005 को तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के स्थान पर चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया था, यह फैसला पार्टी के लिए आसान नहीं था, क्योंकि इस फैसले को राज्य के नेताओं का समर्थन नहीं था। चौहान ने सत्ता संभालने के बाद जहां पार्टी के भीतर उभरने वाले असंतोष को दबाया तो विरोध के स्वर बुलंद करने वालों को एक-एक कर किनारे लगाया।
वरिष्ठ पत्रकार गिरिजा शंकर का कहना है कि राजनीति में बगैर सबूत के आरोप लगाने से नुकसान आरोप लगाने वालों को होता है, तो दूसरी ओर जिस पर आरोप लगते हैं, वह ज्यादा मजबूत होता है। शिवराज सिंह चौहान के साथ भी ऐसा हुआ, कांग्रेस ने आरोप कई लगाए मगर सबूत नहीं दे पाए, उसके नतीजे सामने हैं।
उन्होंने कहा कि जो भी पार्टी या व्यक्ति सत्ता में आता है वह अपनी तरह से तर्क देता है, दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री रहते प्रदेश को बीमारू श्रेणी से बाहर निकालने की बात की, शिवराज ने भी यही किया, मगर शिवराज की खूबी यह है कि बीते 11 वर्षो में उनकी तस्वीर भले ही बदली हो, मगर तासीर में बदलाव नहीं आया है, जब तक उनकी तासीर नहीं बदलेगी तब तक उनकी प्रगति को कोई रोक नहीं सकेगा।
चौहान के 11 वर्ष के शासनकाल पर गौर करें तो एक बात सामने आती है कि डंपर कांड, व्यापमं घोटाला, गैमन प्रकरण, रोहित गृह निर्माण समिति में जमीन आवंटन में गड़बड़ी सहित नर्मदा नदी से रेत खनन से लेकर कई अन्य आरोप चौहान और उनके परिवार पर लगे। विपक्ष ने उन्हें सड़क से लेकर विधानसभा तक में घेरने की कोशिश की, मगर यह कोशिश ज्यादा सफल नहीं हो पाई। इन आरोपों से कई बार लगा कि चौहान को नुकसान हो सकता है, मगर ऐसा हुआ नहीं।
चौहान को जब भी मौका मिला, उन्होंने मजबूत होते विपक्ष को अपने राजनीतिक कौशल से उसमें सेंधमारी कर कमजोर कर दिया। मामला चाहे तत्कालीन विधायक चौधरी राकेश सिंह को पाला बदल कराकर कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव को कमजोर कर दिया, तो लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार भागीरथ प्रसाद को भाजपा का उम्मीदवार बना दिया। इसके अलावा होशंगाबाद के उदय प्रताप सिंह को भाजपा में लाकर कांग्रेस को झटका दिया।
एक तरफ चौहान विपक्षी दल को कमजोर करने में सफल रहे तो दूसरी ओर पार्टी के भीतर के विरोधियों को एक-एक कर किनारे लगाया। यही कारण है कि वर्तमान में सत्ता और संगठन में एक भी ऐसा नेता नहीं है जो खुलकर चौहान के विरोध में बोल सके।
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मिश्र का कहना है कि शिवराज ने जनता की उस नब्ज को पकड़ा है जो कांग्रेस और भाजपा का कोई नेता नहीं पकड़ पाया, उन्होंने किसी तरह के जातीय ध्रुवीकरण पर जोर न देकर ऐसी योजनाएं बनाईं, जिससे उनका हर वर्ग में वोट बैंक बनता गया, इसके अलावा विरोधियों को किनारे लगाने में कसर नहीं छोड़ी।
चौहान ने 11 वर्ष के शासनकाल के दौरान एक तरफ अपने ऊपर लगे दागों को मद्धिम किया तो विपक्षी दल और पार्टी के भीतर के विरोधियों को एक-एक कर कमजोर किया, तो वहीं जनता को लुभाने वाली योजनाओं को अमली जामा पहनाने में कसर नहीं छोड़ी।
लाडली लक्ष्मी योजना, कन्यादान योजना, साइकिल योजना, निशुल्क गणवेश, किसानों को कम ब्याज पर कर्ज जैसी अनेक योजनाएं रही, जिनके चलते वे उस तबके में प्रवेश कर गए जो समस्याओं से जूझता रहा है।
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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई
नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।
बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।
बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।
ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।
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