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नेशनल

भारत को तत्काल समान नागरिक कानून की जरूरत : तस्लीमा

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bangladeshi-writer-taslima-nasreenजयपुर। बांग्लादेशी लेखिका और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पक्षधर तस्लीमा नसरीन ने सोमवार को कहा कि भारत को समान नागरिक कानून की तत्काल जरूरत है।

कट्टरपंथियों की नाराजगी झेलने के बाद तस्लीमा साल 1994 से निर्वासित जीवन जी रही हैं। जयपुर साहित्य महोत्सव में एक सत्र के दौरान विवादास्पद लेखिका तस्लीमा ने यह भी कहा कि इस्लाम की निंदा करना ही इस्लामिक देशों में धर्मनिरपेक्षता लाने का एक मात्र तरीका है।

पीईएन इंटरनेशनल की ‘राइटर्स-इन-प्रिजन’ समिति के अध्यक्ष सलिल त्रिपाठी से बातचीत के दौरान तस्लीमा ने कहा, “जब मैं या कोई और व्यक्ति हिन्दू, बौद्ध या अन्य किसी धर्म की आलोचना करते हैं तो कुछ नहीं होता है। लेकिन जिस क्षण आप इस्लाम की निंदा करते हैं तो लोग आपकी जान के पीछे पड़ जाते हैं।”

55 वर्षीया लेखिका ने कहा, “वे आपके खिलाफ फतवा जारी करते हैं और आपकी हत्या करना चाहते हैं। लेकिन क्यों उन्हें ऐसा करने की जरूरत है? अगर वे मुझसे असहमत हैं तो वे मेरे खिलाफ लिख सकते हैं, विचार साझा कर सकते हैं, जैसा कि हम करते हैं। फतवा जारी करने की जगह वे बातचीत कर सकते हैं।”

तस्लीमा ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं उत्पीड़ित हैं और इसलिए उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए समान नागरिक कानून वक्त की मांग है।

उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, “अगर हिन्दुओं के लिए आपके पास कानूनों का एक समुच्चय है, अगर हिन्दू महिलाएं अपने पतियों को तलाक दे सकती हैं और संपत्ति में उनका एक हिस्सा है और हमने देखा है कि यह किताना प्रगतिशील रहा है, तब इस्लामिक कट्टरपंथी समान नागरिक कानून के क्यों विरोधी हैं? क्या समान नागरिक कानून लोकतांत्रिक नहीं है?”

1980 के दशक में एक कवयित्री से तस्लीमा अपने महिलावादी विचारों के लेखों व उपन्यासों के जरिए और इस्लाम की कड़ी निंदा करने पर 20वीं सदी के अंत में दुनिया की नजर में आ गईं। साल 1993 में उनके उपन्यास ‘लज्जा’ की बांग्लादेश में कड़ी आलोचना हुई और उन्हें देश छोडऩे को मजबूर होना पड़ा।

उन्होंने आगे कहा, “धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं, क्या यह मुस्लिम कट्टरपंथियों को प्रोत्साहित करने हेतु आपकी आवश्यकता है? मुस्लिम वोट के लिए एक लेखक को आप देश से बाहर निकाल देते हैं और महिला द्वेषियों को संरक्षण देना जारी रखते हैं।”

‘लज्जा’ की पृष्ठभूमि में कई तरह के खतरों और उनके खिलाफ हमलों के बाद साल 1994 में तस्लीमा स्वीडन चली गईं और यूरोप व अमेरिका में अगले 10 साल तक निर्वासन में रहीं। साल 2004 में भारत आने पर वह कोलकाता में रहीं, जहां साल 2007 तक रहीं और इसके बाद नई दिल्ली चली आईं। साल 2008 में वह पुन: स्वीडन चली गईं और बाद में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में शोध स्कॉलर के रूप में उन्होंने काम किया।

तस्लीमा ने कहा, “मुस्लिम महिलाओं को समान अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए? क्या यह लोकतंत्र है? किसी भी पक्ष से कट्टरपंथियों और महिला द्वेषियों को प्रश्रय दिया जाना न तो लोकतांत्रिक है और न ही धर्मनिरपेक्षता। मैं सभी तरह के कट्टरवादियों के खिलाफ हूं।”

तस्लीमा ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना धर्मनिरपेक्षता अर्थहीन है। अब वह एक स्वीडिश नागरिक हैं। साल 2004 से उन्हें लगातार भारतीय वीजा मिलता रहा है और वर्तमान में तस्लीमा नई दिल्ली में रहती हैं।

उत्तर प्रदेश

संभल में कैसे भड़की हिंसा, किस आधार पर हो रहा दावा, पढ़े पूरी रिपोर्ट

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संभल। संभल में एक मस्जिद के स्थान पर प्राचीन मंदिर होने और भविष्य में कल्कि अवतार के यहां होने के दावे ने हाल ही में काफी सुर्खियां बटोरी हैं. इस दावे के पीछे कई धार्मिक और ऐतिहासिक तथ्य बताए जा रहे है. उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि अवतार और उनके मंदिर को लेकर कई दावे पहले से ही किए जा रहे हैं. इसे लेकर धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों के आधार पर गहरी चर्चा हो भी रही है. हिंदू धर्म में कल्कि अवतार को भगवान विष्णु का दसवां और अंतिम अवतार माना गया है. ऐसा माना जाता है कि कलियुग के अंत में जब अधर्म और अन्याय अपने चरम पर होगा तब भगवान कल्कि अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करेंगे.

कैसे भड़की हिंसा?

24 नवंबर को मस्जिद में हो रहे सर्वे का स्थानीय लोगों ने विरोध किया. पुलिस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मौके पर थी. सर्वे पूरा होने के बाद जब सर्वे टीम बाहर निकली तो तनाव बढ़ गया. भीड़ ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया, जिसके कारण स्थिति बिगड़ गई और हिंसा भड़क उठी.

दावा क्या है?

हिंदू पक्ष का दावा है कि संभल में स्थित एक मस्जिद के स्थान पर प्राचीन काल में एक मंदिर था. इस मंदिर को बाबर ने तोड़कर मस्जिद बनवाई थी. उनका यह भी दावा है कि भविष्य में कल्कि अवतार इसी स्थान पर होंगे.

किस आधार पर हो रहा है दावा?

दावेदारों का कहना है कि उनके पास प्राचीन नक्शे हैं जिनमें इस स्थान पर मंदिर होने का उल्लेख है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस स्थान पर प्राचीन काल से ही पूजा-अर्चना होती थी. कुछ धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान के बारे में उल्लेख मिलता है. हिंदू धर्म के अनुसार कल्कि अवतार भविष्य में आएंगे और धर्म की स्थापना करेंगे. दावेदारों का मानना है कि यह स्थान कल्कि अवतार के लिए चुना गया है.

किस आधार पर हो रहा है विरोध?

अभी तक इस दावे के समर्थन में कोई ठोस पुरातात्विक साक्ष्य नहीं मिला है. जो भी ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स उपल्बध हैं वो इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस स्थान पर एक मस्जिद थी. धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है और इनका उपयोग किसी भी दावे को सिद्ध करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

संभल का धार्मिक महत्व

शास्त्रों और पुराणों में यह उल्लेख है कि भगवान विष्णु का कल्कि अवतार उत्तर प्रदेश के संभल नामक स्थान पर होगा. इस आधार पर संभल को कल्कि अवतार का स्थान माना गया है. श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में कल्कि अवतार का वर्णन विस्तार से मिलता है जिसमें कहा गया है कि कल्कि अवतार संभल ग्राम में विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर जन्म लेंगे.

इसी मान्यता के कारण संभल को कल्कि अवतार से जोड़ा जाता है. संभल में बने कल्कि मंदिर को लेकर यह दावा किया जा रहा है कि यही वह स्थान है जहां भविष्य में भगवान कल्कि का प्रकट होना होगा. मंदिर के पुजारी और भक्तों का कहना है कि यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र है और यहां कल्कि भगवान की उपासना करने से व्यक्ति अधर्म से मुक्ति पा सकता है.

धार्मिक विश्लेषण

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कल्कि अवतार का समय तब होगा जब अधर्म, पाप और अन्याय चरम पर पहुंच जाएंगे. वर्तमान में दुनिया में मौजूद सामाजिक और नैतिक स्थितियों को देखकर कुछ लोग यह मानते हैं कि कल्कि अवतार का समय निकट है. संभल में कल्कि मंदिर को लेकर जो भी दावे किए जा रहे हैं वो सभी पूरी तरह से आस्था पर आधारित हैं. धार्मिक ग्रंथों में वर्णित समय और वर्तमान समय के बीच अभी काफी अंतर हो सकता है. उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि अवतार और मंदिर का दावा धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों पर आधारित है. हालांकि, यह दावा प्रमाणिकता के बजाय विश्वास पर आधारित है. यह भक्तों की आस्था है जो इस स्थान को विशेष बनाती है.

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