हेल्थ
छत पर फल, सब्जियों और औषधीय पौधों की खेती
रायपुर । छत्तीसगढ़ की किसान पुष्पा साहू ने छत पर खेती कर नवाचारी होने का प्रमाण दिया है। पुष्पा ने अपने घर की छत पर फल, फूल और सब्जियों के साथ औषधीय फसलों की बागवानी तैयार की है। उन्होंने इसे ग्लोबल वार्मिग से बचने का सुगम तरीका भी बताया है।
पुष्पा साहू ने कहा, “इससे ग्लोबल वार्मिग के दुष्परिणाम के फलस्वरूप जलवायु परिवर्तन के इस युग में खास कर कृषि एवं पर्यावरण के क्षेत्र में सर्वाधिक नुकसान हो रहा है। इस नुकसान से बचने एवं घरेलु महिलाओं तथा बेरोजगार नवयुवकों को रोजगार मुहैया कराने की दिशा में छत पर फलों, साग-सब्जियों और औषधीय पौधों की खेती एक नई संभावनाओं से भरा क्षेत्र हैं। इससे मनुष्य के व्यक्तिगत स्वास्थ्य में सुधार, आर्थिक लाभ तथा पर्यावरण में सुधार के क्षेत्र में महती भूमिका निभाई जा सकती है।”
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संसाधन खासकर भूमि एवं जल की उपलब्धता सीमित है। साथ ही जमीन, पानी और अन्य कृषि जन्य संसाधनों की उपलब्धता से जुड़े पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकी के प्रभाव के फलस्वरूप आधुनिक कृषि प्रणालियों को और अधिक कारगार बनाने की जरूरत है, ताकि बढ़ती जनसंख्या की खाद्यान्न की मांग की पूर्ति की जा सके।
कृषि को अब उद्योग के रूप में अपनाना होगा, इस प्रकार का विचार संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भोजन का अधिकार पर नियुक्त विशेष प्रतिनिधि प्रोफेसर हिलाल ईल्वर ने भी पदभार ग्रहण करने के बाद अपने पहले सार्वजनिक व्याख्यान में कही है।
कृषि क्षेत्र में संसाधनों की कमी, बढ़ती जनसंख्या, भूमि की घटती उपलब्धता और भूमि के क्षरण ने हमें इस बात पर पुनर्विचार के लिए बाध्य कर दिया है कि भविष्य की पीढ़ी के मद्देजनर हम किस प्रकार अपने संसाधनों खासकर भूमि का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करें, जिससे प्रति इकाई भूमि से सतत अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें। इसके लिए कृषि के क्षेत्र में नवाचार की दिशा में अधिक ध्यान देने की जरूरत समय की मांग है।
बढ़ती जनसंख्या की कृषि के अलावा दूसरी जरूरतों की पूर्ति से जमीन की उपलब्धता, समय के साथ-साथ कम होती जा रही है, जिसका प्रभाव हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों के अतिरिक्त शहरों में भी दिखाई दे रही है। खासकर बड़े शहरों के आसपास तो खेती की जमीन कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होती जा रही है।
इससे शहरी क्षेत्र के पर्यावरण में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है, हरियाली की कमी से तापमान में वृद्धि हो रही है। कृषि उत्पाद खासकर साग-सब्जी एवं फलों की बढ़ती मांग से मंहगाई में भी वृद्धि हो रही है, साथ ही अंधाधुंध रायायनिक उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक दवाओं तथा फलों को पकाने के लिए एवं सब्जी को आकर्षक बनाने के लिए अमानक रसायनों का उपयोग बढ़ता जा रहा है।
इससे उत्पाद की गुणवत्ता में भारी गिरावट देखने को मिल रही है। शहरी क्षेत्रों से लगे पानी की निकासी के नालों के गंदे जल द्वारा सिंचित साग-सब्जी विशेषकर पत्तेदार (भाजी) सब्जियों में हानिकारक भारी तत्वों की निर्धारित सीमा से अधिक होना मानवस्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
शहरी क्षेत्रों में घरेलू कार्बनिक कचरा (साग-सब्जी के छिलके, बचे हुए खाद्य सामग्री आदि) भी आसपास के वातावरण को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। साथ ही स्वच्छता अभियान में भी रुकावट का कार्य करती है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही साथ शहरी क्षेत्रों में भूमि एवं जल प्रबंधन के माध्यम से कृषि क्षेत्र में उत्पादन को बढ़ाने के लिए पारंपरिक एवं नवाचार पद्धतियों को अपनाया जाना जरूरी है।
जैविक खेती के माध्यम से कृषि उत्पादन के बाद भंडारण व प्रसंस्करण में रसायन के उपयोग को कम करते हुए कृषि उत्पाद की गुणवत्ता एवं पौष्टिकता में वृद्धि करना भी एक प्रासंगिक समाधान के रूप में व्यापक पैमाने पर अपनाए जाने की जरूरत है। इसके लिए विशेष रणनीति के तहत जन-जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार के साथ-साथ समाज के सभी वर्गो का सहयोग जरूरी है।
पुष्पा साहू का कहना है कि किचन गार्डन आज के वर्तमान परि²श्य की आवश्यकता है। आजकल शहरी एवं अर्ध शहरी क्षेत्रों में किचन गार्डन का क्रेज बढ़ता जा रहा है। साग-सब्जियों एवं फलों के उत्पादन एवं विपणन के दौरान हानिकारक रसायनों के अंधाधुंध उपयोग से मानव स्वास्थ्य में होने वाले नुकसान के कारण भी किचन गार्डन लगाने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है।
डिजाइनर पॉट्स में भी किचन प्लांट्स लगा सकते हैं। अपने घर को आर्टिस्ट लुक देना सभी को खूब भाता है। शहरी क्षेत्रों में खेती/घरेलू बागवानी (किचन गार्डन) के लिए भूमि की उपलब्धता सीमित है। इस परिपेक्ष्य में घरों के छत/टेरेस में साग-सब्जी, फल-फूल की खेती में आधुनिक कृषि तकनीक का उपयोग करते हुए बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे प्रत्येक परिवार की आवश्यकता की पूर्ति के लिए उच्च गुणवत्तायुक्त जैविक कृषि उत्पाद प्राप्त किया जा सकता है।
इससे घरेलू कार्बनिक कचरा निपटान के साथ ही शहरी वातावरण को स्वच्छ बनाकर हरियाली में वृद्धि करते हुए स्थानीय पर्यावरण को अच्छा बनाया जा सकता है। छत की खेती की उन्नत तकनीक/नवाचार तरीकों की चर्चा के पूर्व जैविक खेती के लाभ पर प्रकाश डालना आवश्यक है।
सामान्यत: जमीन अनउपलब्धता या शौक में शहरी क्षेत्रों में छत में गमलों आदि में साग-सब्जी या फूलों के पौधे लगाया जाता है। इसमें अधिकांशत: तकनीकी ज्ञान का अभाव देखा गया है जबकि छत की खेती में नवाचार के उपयोग से कृषि की नई तकनीकों का प्रयोग, वर्मी कंपोस्ट व गुरुत्वाकर्षण सिंचाई (ग्रविटी एरीगेशन) से सब्जी फल-फूल का उत्पादन करने से आम शहरीजनों को महंगाई और केमिकलयुक्त सब्जियों से निजात मिल सकती है एवं परिवार की आवश्यकता के अनुरूप जैविक फल-फूल, साग-सब्जी की भरपूर उत्पादन किया जा सकता है।
छत पर खेती करना सामान्य खेती करने से अलग है।
छत पर गीली मिट्टी बिछाकर खेती नहीं की जा सकती, क्योंकि पानी रिसाव (सीपेज) से छत एवं मकान को क्षति पहुंचती है। इसके लिए विभिन्न प्रकार के उपायों को अपनाया जा सकता है, जैसे सीपेज रोधी केमिकल की कोटिंग के साथ उच्च गुणवत्ता वाली पॉलीथिन शीट बिछाकर क्यारी का निर्माण किया जा सकता है।
वैसे घर बनाते समय पहले से ही पूरी योजना के तहत क्यारी बनाया जाए तो छत के एक हिस्से में 3-4 फीट चौड़ी एवं 5-10 फीट लंबी क्यारी छत की सतह पर तथा छत की सतह 1/2 फुट ऊंची आरसीसी क्यारी बनाई जा सकती है। क्यारियों की गहराई 1/2 फुट से 3-4 फुट तक रखा जा सकता है। छत के कालम से कालम को मिला कर फाल्स छत का निर्माण आरसीसी द्वारा करने से मजबूत क्यारी बनाया जा सकता है। सामान्यत: आपने अब तक घरों में एक छोटा सा किचन गार्डन देखा होगा।
पुष्पा साहू अपने घर की छत पर सब्जी और फलों की खेती कर रही है। छत पर गोभी, बैगन, कुंदरू, कांदा भाजी, टमाटर, लौकी, मिर्ची पालक भाजी, मूली, धनियां, पुदीना आदि सब्जियों, गेंदा, गुलाब, मोंगरा, नीलकमल आदि पुष्पों के साथ ही सेब, अमरूद, केला, आम, मौसबी, नींबू, चीकू, पपीता और मुनगा फलों की खेती कर रही है। इन सभी चीजों की खेती में कृषि के हाईटेक तकनीकों का उपयोग करते हुए पूरी तरह जैविक उत्पाद अपने आवश्यकता के अनुसार प्राप्त कर रही है।
पुष्पा बताती हैं कि आज महंगाई के कारण लोगों के लिए सब्जी और फल खरीदना जहां एक ओर मुश्किल हो गया है वहीं दूसरी और रसायन मुक्त जैविक साग-सब्जी भी नहीं मिल पा रही है। इसलिए छत में बागवानी कर परिवार को केमिकल मुक्त सब्जियां खा रही है। साथ ही महीने में लगभग पांच सौ से हजार रुपये बचा रही हैं। मात्र दो-तीन हजार रुपये खर्च करने से आप पूरे साल भर मौसमी जैविक सब्जियों का स्वाद ले सकते हैं।
इसी प्रकार पांच-सात हजार रुपये खर्च कर आम, अमरूद, केला और चीकू जैसे फलों की भी खेती छत में किया जा सकता है। विभिन्न ऋतुओं के हिसाब से फलों की उन्नत प्रजाति के पौधे लगाने से साल भर विभिन्न फल मिले इस सोच के साथ उन्होंने छत में बागवानी की खेती करने का काम साल (2014) से शुरू किया।
जैविक खाद और उन्नत बीजों के प्रयोग से आज बाजार में बिक रही अधिकांश सब्जियों, फलों में केमिकल का उपयोग किया जाता है। इससे बचने के लिए पुष्पा साहू के अनुसार, सब्जी या फल की उन्नत किस्मों एवं जैविक खाद का उपयोग करती है। घर में उपयोग में लाई जाने वाली सब्जियों तथा अन्य कार्बनिक कचरे के रिसाइकिलिंग से वर्मी (केंचुए) खाद बनाकर इसका उपयोग फसल उत्पादन के लिए किया जाना चाहिए।
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दिल्ली में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी
नई दिल्ली। दिल्ली में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी का क्रम लगातार जारी है. अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में अकेले डेंगू के मरीजों में भारी संख्या में इजाफे की सूचना है. दिल्ली नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक साल 2024 में डेंगू के अब तक 4533 मरीज सामने आए हैं. इनमें 472 मरीज नवंबर माह के भी शामिल हैं.
एमसीडी की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में इस साल अब तक मलेरिया के 728 और चिकनगुनिया के 172 केस दर्ज हुए हैं.
डेंगू एक गंभीर वायरल संक्रमण है, जो एडीज़ मच्छर के काटने से फैलता है। इसके होने से मरीज को शरीर में कमजोरी लगने लगती है और प्लेटलेट्स डाउन होने लगते हैं। एक आम इंसान के शरीर में 3 से 4 लाख प्लेटलेट्स होते हैं। डेंगू से ये प्लेटलेट्स गिरते हैं। डॉक्टरों का मानना है कि 10 हजार प्लेटलेट्स बचने पर मरीज बेचैन होने लगता है। ऐसे में लगातार मॉनीटरिंग जरूरी है।
डॉक्टरों के अनुसार, डेंगू के मरीज को विटामिन सी से भरपूर फल खिलाना सबसे लाभकारी माना जाता है। इस दौरान कीवी, नाशपाती और अन्य विटामिन सी से भरपूर फ्रूट्स खिलाने चाहिए। इसके अलावा मरीज को ज्यादा से ज्यादा लिक्विड डाइट देना चाहिए। इस दौरान मरीज को नारियल पानी भी पिलाना चाहिए। मरीज को ताजा घर का बना सूप और जूस दे सकते हैं।
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