Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

मुख्य समाचार

पर्यावरण बचाने को अब‍ भी नहीं चेते तो भुगतने होंगे और गंभीर नतीजे

Published

on

Loading

मानव की दोहन नीति का खामियाजा हैं प्राकृतिक आपदाएं

पर्यावरण, दोहन, प्रदूषण, पीएम मोदी, जलवायु

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे भवन्तु निरामयाः अर्थात सब सुखी हों, सब स्वस्थ हों ऐसी भावना रखना हमारे संस्कारों में शामिल है, यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कह कर कुछ अलग नहीं किया। वे वही कह रहे हैं जो भारत सदियों से कहता आया है।

पेरिस जलवायु समझौते के दौरान यह स्पष्ट भी हो गया। लेकिन  आश्चर्यजनक यह भी है कि विश्व का सिरमौर माने जाने वाला अमेरिका इस संधि से अलग हो गया।

सवाल पैदा होता है कि क्या विश्व पर्यावरण की सुरक्षा की चिंता अमेरिका को क्यों नहीं। क्या अमेरिका इस समझौते के लिए रजामंद 190 देशों से खुद को अलग मानता है। या उसने इतने संसाधन पैदा कर लिए है कि अकेले ही विश्व में हो रहे जलवायु परिवर्तन से निपट लेगा। आखिर अंत में ऐसा क्या हुआ कि अमेरिका ने पेरिस समझौते से खुद को अलग कर लिया। अवश्य ही इसके पीछे वैश्विक राजनीतिक कारण होंगे ऐसी संभावना व्यक्त की जा सकती है। लेकिन प्रसन्नता इस बात की है कि भारत ने जलवायु समझौते पर अपना दृष्टिकोण बड़े प्रभावी तरीके से रखा है।

अब सवाल यह है कि भारत विश्व पर्यावरण के लिए अपना योगदान कैसे देगा। समझौते के अंतर्गत 190 देशों  के साथ भारत की भी भूमिका रहेगी की वैश्विक तापमान वर्तमान से दो डिग्री नीचे लाने के लिए कार्बनडाई आक्साइ और अन्य गैसों के उत्सर्जन को कैसे घटाए। यह केवल विश्व के लिए ही जरूरी नहीं भारत को घरेलू स्तर पर भी पर्यावरण की सुरक्षा के मानकों पर खरा उतरना होगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में जिस तीव्र गति से प्रदूषण फैल रहा है। इसमें भारत भी शामिल है। विश्व के 20 प्रदूषित शहरों में 13 भारत के हैं। कुछ ही समय पहले दिल्ली का हाल सबने देखा। दमघोंटू वातावरण में इंसान की जान कैसे सुरक्षित रहे।

आधुनिक दिखावे के चलते तेजी से बढ़ते वाहनों की संख्या इशारा कर रही है कि यह स्थिति आने वाले समय में कम होने की जगह और बढ़ेगी। हवा में घुला मात्रा से अधिक नाईट्रोजन ऑक्साइड, सल्फरडाई ऑक्साइड, ओजोन और कार्बन मोनोऑक्साइड, सीसा और अमोनिया के चलते वातावरण विषैला होता जा रहा है। खतरा तो इस बात का है कि हवा और पानी में घुला यह जहर हमारी आने वाली पीढ़ी में विकृति पैदा न कर दे।

3 दिसंबर 1984 का भोपाल की रासायनिक दुर्घटना याद रखने के लिए काफी है कि कैसे प्रभावितों की पीढ़ी की नसों में यह जहर भर चुका है। कई घर आज भी स्वस्थ संतान के लिए तरस रहे हैं। तीन दशक पहले हवा में घुले जहर का दंश बीमारी के रूप में आज भी भोग रहे है। कैंसर, टीवी, अस्थमा, त्वचा रोग एलर्जी जैसे कई रोगों के पनपने का कारण वातावरण में घुला जहर ही है।

विश्व में प्रति वर्ष 30 लाख मौतें पर्यावरण प्रदूषण के कारण होती हैं। चिंता की बात तो यह है कि अधिक मौतों के मामले में भारत सबसे अव्वल है। इन मौतों में अकेले दिल्ली का औसत ग्राफ देखें तो 12 प्रतिशत अधिक है। भारत में जिस तेजी से गावों का शहरीकरण और औद्योगिकीकरण हो रहा है वह भी एक बड़ा कारण है। जिस तेजी से शहरीकरण हुआ उस गति से प्रदूषण नियंत्रण के लिए कोई मजबूत प्लान नहीं बना।

आसमान में छाया औद्योगिक चिमनियों का काला धुंआ कितनी हवा को प्रदूषित करेगा यह हमें दिल्ली के हाल से समझ जाना चाहिए। जिस प्रकार हम भारत में विदेशी कंपनियों को निवेश के लिए आमंत्रित कर रहे हैं तो उनसे पैदा होने वाले खतरों को भी हमें भांपना होगा। केवल विकास की दौड़ में अंधे होकर इन्हें भारत में खुलेआम वातावरण में जहर घोलने का लाइसेंस नहीं दे सकते। इससे पहले भारत सरकार को बार-बार  भोपाल का हश्र याद रखना चाहिए।

भारत के 27 राज्यों में 150 नदियां सबसे अधिक प्रदूषित हैं। महाराष्ट्र की 28, गुजरात की 19, उत्तर प्रदेश की 12 नदियां अधिक प्रदूषित हैं। मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, राजस्थान, झारखण्ड भी नदियों के प्रदूषण के मामले में पीछे नहीं हैं। उत्तराखण्ड और हिमाचल की स्थिति इतनी खराब नहीं है। औद्योगिकीकरण के कारण नदियों का जो हाल हुआ है उससे भारी रासायनिक तत्व जल में मिलकर धरती में घुस गए हैं।

प्रदूषण नियंत्रण के मामले में भारत की मौजूदा रणनीति बेहद कमजोर है। अभी हम ऊर्जा के लिए कोयला, पेट्रोल, डीजल जैसे ईंधनों पर पूरी तरह निर्भर हैं। इनसे निर्भरता कम कम करते हुए भारत को प्राकृतिक संसाधनों के विकास का विस्तार करने की जरूरत है। जीवाश्म ईधन को हटाकर वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोत यानी पारंपरिक ऊर्जा ठोस द्रव या गैसीय बायोमास के रूप में संग्रहित है जिसे हम अक्षय ऊर्जा के रूप में हमेशा से देखते आए हैं। इस वैकल्पिक ऊर्जा के संरक्षण, संग्रहण और रूपांतरण के लिए अभी तक कोई व्यावहारिक और व्यवस्थित आधारभूत संरचना काम नहीं कर रही है। यही अक्षय ऊर्जा के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है।

इन्टरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार सन 2050 तक सौर ऊर्जा से विश्व की कुल बिजली आपूर्ति का एक चौथाई हिस्सा प्राप्त किया जा सकता है। सौर फोटो-वोल्टेइक और ऊर्जा के संकेन्द्रण के जरिए ऊर्जा तो प्राप्त होगी ही इससे जो सबसे बड़ा नफा होगा वो ये कि इससे प्रति वर्ष ऊर्जा सम्बंधी 6 अरब टन कार्बनडाई ऑक्साइड उत्सर्जन को भी रोका जा सकता है।

पर्यावरण को अनुकूल बनाए रखने वाले अक्षय स्त्रोत हमें प्रकृति ने ही प्रदान किए हैं पर मानव की दोहन नीति ने इनका इतना दोहन किया कि ये कम पड़ गए। इसका खामियाजा हम प्राकृतिक आपदाओं के रूप में भुगत रहे हैं। तीन वर्ष पूर्व उत्तराखण्ड में बादल फटने से आई बाढ़ हो या नेपाल में और भारत के कुछ भागों में आया भूकंप। परिणाम तो किसी भी रूप में भुगता ही। आए दिन हो रहीं भूगर्भ हलचलें इसका प्रमाण हैं कि पृथ्वी पर ऐसा तो कुछ घटित हो रहा है जो किसी के भी अनुकूल नहीं। यदि अभी भी विश्व नहीं चेता तो कहीं यह अटकलें सत्य न हो जाएं कि पृथ्वी अब नहीं रही

-सत्या सिंह राठौर

मुख्य समाचार

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

Published

on

Loading

पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

Continue Reading

Trending