ऑफ़बीट
बहुत हुई राजनीति, अब जानिए कहां हुआ था अखिलेश को डिंपल से प्यार
लखनऊ। वैसे तो राजनीति की दुनिया एक ऐसी दुनिया मानी जाती है, जहां पक्ष-विपक्ष ,पार्टी, योजनााएँ, दंगे-फसाद से परे कोई बातें करना फिजूल मानी जाती है लेकिन वो कहते है न कि, इंसान तो इंसान ही रहेगा अब चाहे वो कोई प्रधानमन्त्री हो या मुख्यमंत्री तो कुल मिलाकर उन्हे भी हक़ है अपनी जिंदगी में बाकियों की तरह मौज मस्ती करने का|
कुछ ऐसी ही बातों को ध्यान में रखते हुए लखनऊ में आयोजित एक इवेंट के दौरान सपा पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विपक्ष पर पलटवार करने के अलावा अपनी जिंदगी से जुडी बहुत सी बातें लखनऊवासियों से शेयर की।
अपने बचपन की यादों से शुरुआत करते हुए अखिलेश ने बताया कि कैसे वो पढ़ने में बेहद कमजोर हुआ करते थे वो कहते है मैंने सिविल इंजीनियरिंग की। ये रॉयल टाइप होती है। शायद वहीं से निर्माण करना सीखा, जो आज राजनीति में भी काम आ रहा है, मेरी तो इतनी बार बैक आई कि किसी बच्चे की नहीं आती होगी। मैं कई बार फेल हो चुका हूँ।
पत्नी डिंपल यादव से पहली मुलाक़ात के विषय पर उन्होने कहा कि, ‘मैं पहली बार उनसे खेल की प्रैक्टिस के दौरान मिला था उनके इस जवाब के बाद तो जनता की हंसी देखने लायक थी।
2017 में जनादेश न मिलने की बात पर अखिलेश मुस्कुराए और कहा कि, ‘हम समाजवादी लोग अपना काम करते रहे, लोगों को बताते रहे, पर सामने वाले बहकाते रहे लोगों को भड़काते रहे।
उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार इस तरह का हाईवे बना। आगे हर जिला मुख्यालय को जोड़ देता। मझे लगा था लैपटॉप पर वोट मिलेगा, पर लोगों ने गाय पर वोट दे दिया।
राहुल से दोस्ती पर अखिलेश ने जो जवाब दिया उसपर पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा उन्होंने कहा कि, राहुल दोस्त हैं। रहेंगे। अब दोस्त कैसा भी हो, दोस्त ही होता है। कोई नहीं बदलना चाहता अपना दोस्त, क्या आप अपने दोस्त बदलते हैं।
बीएचयू के बवाल पर अखिलेश ने झट से जवाब दिया और कहा कि, बीजेपी वाले हैं, लाठी तो चलाएंगे हीं। पूरे प्रदेश में यही हाल है। ग्राम रोजगार वाले भी पिट रहे है।
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बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन
चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.
लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.
महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’
राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”
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