नेशनल
झांसी में गुब्बारे बेचने वाले बच्चे नए कपड़े पहन मनाएंगे दिवाली
झांसी, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)| सड़क किनारे गुब्बारे और कागज के गुलदस्ते बेचने वाली नौ साल की नीकू की दिवाली इस बार पिछले सालों जैसी नहीं रहेगी, इस बार वह भी नई फ्रॉक पहनकर मिठाई खाएगी। उसे और उसकी झुग्गी बस्ती के 60 से ज्यादा बच्चों को सामाजिक कार्यकर्ताओं से नए कपड़े और मिठाई मिली है।
दिवाली पर्व का जिक्र आते ही हर बच्चे की आंखों में चमक आ जाती है। वह योजना बनाने में जुट जाता है, मगर नीकू जैसे कई बच्चे स्कूल जाने की बजाय सड़कों पर गुब्बारे और कागज के गुलदस्ते बेचते दिख जाते हैं। वे भी दिवाली उत्साह से मनाना चाहते हैं, मगर गरीबी ऐसा नहीं करने देती। नीकू जैसे कई बच्चों के लिए इस बार की दिवाली अपार खुशी लेकर आई है, क्योंकि वह इस बार दिवाली अन्य बच्चों की तरह धूमधाम से मनाएंगे।
बुंदेलखंड के झांसी में इलाइट चौराहे से सीपरी बाजार की ओर जाने वाले मार्ग के बीच में पड़ता है, प्रदर्शनी मैदान। यहां बेघर आदिवासी परिवार तम्बू और झुग्गी बनाकर रहते हैं और वे गुब्बारे व कागज के गुलदस्ते बनाकर बेचते हैं, ताकि उनके परिवार का पेट भर सके।
इन आदिवासी परिवारों के बच्चे मुख्य सड़क के किनारे गुब्बारे बेचने का काम करते हैं। इनमें अधिकांश बच्चों के लिए कई-कई दिन तक बदलने के लिए कपड़े तक नहीं होते और रोज नहाना तक नहीं हो पाता। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनका पूरा दिन गुब्बारे और गुलदस्ते बेचने में ही निकल जाता है। वे तो अपने परिवार के साथ खानाबदोश की जिंदगी जिए जा रहे हैं।
नीकू आज बड़ी खुश है, क्योंकि वह भी दिवाली के दिन नए कपड़े पहनेगी। इसके साथ ही उसे खाने के लिए मिठाई का डिब्बा जो मिला है। नीकू कहती है, हम भी दिवाली के मौके पर नए कपड़े पहनेंगे। मिठाई खाएंगे और पटाखे चलाएंगे। पहले कभी इस तरह दिवाली नहीं मनाई।
झांसी के जेसीआई कोहिनूर सामाजिक संस्था ने इन गरीब बच्चों के दर्द को समझा और 60 से ज्यादा बच्चों को पेंट-शर्ट और फ्रॉक बांटीं। उन्हें मिठाई भी दी। उनका मकसद यही था कि देश में हर तरफ दिवाली मनाई जाएगी और ये बच्चे उजाले के पर्व पर खुश भी नहीं होंगे, लिहाजा उन्होंने यह कदम उठाया।
संस्था की सचिव राखी बजाज का कहना है, दिवाली करीब आते ही हम अपने बच्चों के लिए कपड़े और अन्य चीजें खरीदने निकल पड़ते हैं, ऐसे में हमारी नजर सड़क किनारे बैठकर गुब्बारे और गुलदस्ते बेचने वाले बच्चों पर गई। इस पर हमने तय किया कि इन बच्चों की भी दिवाली अच्छी हो, इसका प्रयास करेंगे।
वहीं अध्यक्ष वैशाली पुंषी बताती हैं कि उनकी संस्था इन बच्चों के लिए काफी समय से काम कर रही है, लिहाजा उनकी दिवाली सूनी न जाए, वे खुशी से मनाएं, इसलिए उन्हें आपस में मिलकर धनराशि इकट्ठा की और पर्व से पहले ही उपहार स्वरूप कपड़े और मिठाई वितरित कर दी, ताकि उन्हें दिवाली कैसे मनेगी, इसकी चिंता नहीं रहे।
कपड़े और मिठाई पाकर पांच साल के चुनमुनिया की तो खुशी का ठिकाना नहीं था। वह उपहार पाकर कहने लगा कि उसने इससे पहले दिवाली पर नए कपड़े नहीं पहने। इस बार वह नए कपड़े पहनेगा। इन बच्चों की माताएं भी बेहद खुश थीं, उन्हें लगा कि चलो कोई तो उनके बच्चों के लिए कुछ उपहार लेकर आया।
दिवाली रोशनी का पर्व है, मगर एक ऐसा वर्ग भी है जो आज भी सिर्फ दिवाली ही नहीं, पूरी जिंदगी अंधेरे में गुजार देता है। ऐसे लोगों के बारे में उस वर्ग को जरूर सोचना चाहिए, जो हजारों रुपये पटाखे और घरों की सजावट पर खर्च कर देते हैं।
उत्तर प्रदेश
संभल में कैसे भड़की हिंसा, किस आधार पर हो रहा दावा, पढ़े पूरी रिपोर्ट
संभल। संभल में एक मस्जिद के स्थान पर प्राचीन मंदिर होने और भविष्य में कल्कि अवतार के यहां होने के दावे ने हाल ही में काफी सुर्खियां बटोरी हैं. इस दावे के पीछे कई धार्मिक और ऐतिहासिक तथ्य बताए जा रहे है. उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि अवतार और उनके मंदिर को लेकर कई दावे पहले से ही किए जा रहे हैं. इसे लेकर धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों के आधार पर गहरी चर्चा हो भी रही है. हिंदू धर्म में कल्कि अवतार को भगवान विष्णु का दसवां और अंतिम अवतार माना गया है. ऐसा माना जाता है कि कलियुग के अंत में जब अधर्म और अन्याय अपने चरम पर होगा तब भगवान कल्कि अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करेंगे.
कैसे भड़की हिंसा?
24 नवंबर को मस्जिद में हो रहे सर्वे का स्थानीय लोगों ने विरोध किया. पुलिस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मौके पर थी. सर्वे पूरा होने के बाद जब सर्वे टीम बाहर निकली तो तनाव बढ़ गया. भीड़ ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया, जिसके कारण स्थिति बिगड़ गई और हिंसा भड़क उठी.
दावा क्या है?
हिंदू पक्ष का दावा है कि संभल में स्थित एक मस्जिद के स्थान पर प्राचीन काल में एक मंदिर था. इस मंदिर को बाबर ने तोड़कर मस्जिद बनवाई थी. उनका यह भी दावा है कि भविष्य में कल्कि अवतार इसी स्थान पर होंगे.
किस आधार पर हो रहा है दावा?
दावेदारों का कहना है कि उनके पास प्राचीन नक्शे हैं जिनमें इस स्थान पर मंदिर होने का उल्लेख है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस स्थान पर प्राचीन काल से ही पूजा-अर्चना होती थी. कुछ धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान के बारे में उल्लेख मिलता है. हिंदू धर्म के अनुसार कल्कि अवतार भविष्य में आएंगे और धर्म की स्थापना करेंगे. दावेदारों का मानना है कि यह स्थान कल्कि अवतार के लिए चुना गया है.
किस आधार पर हो रहा है विरोध?
अभी तक इस दावे के समर्थन में कोई ठोस पुरातात्विक साक्ष्य नहीं मिला है. जो भी ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स उपल्बध हैं वो इस बात की पुष्टि करते हैं कि इस स्थान पर एक मस्जिद थी. धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है और इनका उपयोग किसी भी दावे को सिद्ध करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
संभल का धार्मिक महत्व
शास्त्रों और पुराणों में यह उल्लेख है कि भगवान विष्णु का कल्कि अवतार उत्तर प्रदेश के संभल नामक स्थान पर होगा. इस आधार पर संभल को कल्कि अवतार का स्थान माना गया है. श्रीमद्भागवत पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में कल्कि अवतार का वर्णन विस्तार से मिलता है जिसमें कहा गया है कि कल्कि अवतार संभल ग्राम में विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर जन्म लेंगे.
इसी मान्यता के कारण संभल को कल्कि अवतार से जोड़ा जाता है. संभल में बने कल्कि मंदिर को लेकर यह दावा किया जा रहा है कि यही वह स्थान है जहां भविष्य में भगवान कल्कि का प्रकट होना होगा. मंदिर के पुजारी और भक्तों का कहना है कि यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र है और यहां कल्कि भगवान की उपासना करने से व्यक्ति अधर्म से मुक्ति पा सकता है.
धार्मिक विश्लेषण
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कल्कि अवतार का समय तब होगा जब अधर्म, पाप और अन्याय चरम पर पहुंच जाएंगे. वर्तमान में दुनिया में मौजूद सामाजिक और नैतिक स्थितियों को देखकर कुछ लोग यह मानते हैं कि कल्कि अवतार का समय निकट है. संभल में कल्कि मंदिर को लेकर जो भी दावे किए जा रहे हैं वो सभी पूरी तरह से आस्था पर आधारित हैं. धार्मिक ग्रंथों में वर्णित समय और वर्तमान समय के बीच अभी काफी अंतर हो सकता है. उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि अवतार और मंदिर का दावा धार्मिक मान्यताओं और शास्त्रों पर आधारित है. हालांकि, यह दावा प्रमाणिकता के बजाय विश्वास पर आधारित है. यह भक्तों की आस्था है जो इस स्थान को विशेष बनाती है.
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