मनोरंजन
लखनऊवालों, संगीतकार नौशाद अली को जरा सा ही याद कर लीजिए
‘आखिंया मिल कर जिया भरमा के चले नहीं जाना’ इस गाने को जोहराबाई अम्बालेवाली ने गाया था और यह फिल्म ‘रतन’ (वर्ष 1944) का गाना था। इसके संगीतकार थे लखनऊ में जन्मे नौशाद अली। मायावी मुंबई में अपनी पहचान के लिए दर दर मारे फिर रहे नौशाद को फिल्म ‘रतन’ के संगीत ने मशहूर कर दिया। अब पहचान के वो मोहताज नहीं थे। कामयाबी उनके कदम चूमने लगी।
संगीतकार नौशाद अली का जन्म 25 दिसम्बर 1919 को लखनऊ में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी वाहिद अली था। अपना नाम पैदा करने के लिए 17 साल के नौशाद ने घर को छोड़, किस्मत आजमाने के लिए मुंबई की राह पकड़ी। उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां, उस्ताद झण्डे खां और पंडित खेम चन्द्र प्रकाश जैसे गुणी उस्तादों ने नौशाद अली को तराशा तो वह एक हीरे की तरह जगमगाने लगे।
आप को जानकार हैरानी होगी कि एक लम्बे समय तक फिल्म इंडस्ट्री में रहने के बाद भी नौशाद अली ने सिर्फ 67 फिल्मों में ही संगीत दिया पर वह गुणों की खान थे। नौशाद के पहली फिल्म के संगीत के बाद से तीसरी पीढ़ी अपने खात्मे के दौर में है, और चौथी पीढ़ी भी आज भी उनके संगीत की कद्र करती है।
उनकी फिल्मों के नाम आपके सामने हैं, इन फिल्मों का नाम यूटूयूब पर डाले और लिस्ट से कोई एक गाना सुन लें, दीवाने हो जाएंगे। अंदाज, आन, मदर इंडिया, अनमोल घड़ी, बैजू बावरा, अमर, स्टेशन मास्टर, शारदा, कोहिनूर, उड़न खटोला, दीवाना, दिल्लगी, दर्द, दास्तान, शबाब, बाबुल, मुग़ल-ए-आज़म, दुलारी, शाहजहां, लीडर, संघर्ष, मेरे महबूब, साज और आवाज, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, गंगा जमुना, आदमी, गंवार, साथी, तांगेवाला, पालकी, आईना, धर्म कांटा, पाक़ीज़ा (गुलाम मोहम्मद के साथ संयुक्त रूप से), सन ऑफ इंडिया, लव एंड गाड सहित अन्य कई फिल्मों में उन्होंने अपने संगीत से लोगों को झूमने पर मजबूर किया।
फिल्म ‘शाहजहाँ’ में हीरो कुंदनलाल सहगल का गाया ‘जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे…’ या उमादेवी यानी टुनटुन का गाया फिल्म ‘दर्द’ में ‘अफसाना लिख रही हूँ’ आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं।
नौशाद अली को कई नए गायकों को आगे लाने का श्रेय जाता है, जिनमें सुरैया, अमीरबाई कर्नाटकी, निर्मलादेवी, उमा देवी यानी टुनटुन, मुकेश और मो. रफी शामिल है। अब आ सोच रहे होंगे आज उनका जिक्र क्योंकर आ गया, वजह साफ है आज (5 मई 2006) नौशाद अली इस दुनिया को अलविदा कह गए थे।
कुछ नगीने के सामने पेश सुन और उनको याद करेंं :
(बाबुल- 1950/ शमशाद बेगम, तलत महमूद)
(बैजू बावरा- 1952/ लता)
(सन ऑफ इंडिया- 1962/ लता-रफी)
(दिल दिया दर्द लिया- 1966/ रफी)
(गंगा जमुना- 1961/ लता)
(कोहिनूर- 1960/ लता-रफी)
उत्तर प्रदेश
डेकोरेटिव लाइट्स से महाकुंभ बनेगा भव्यता का प्रतीक
प्रयागराज। महाकुंभ 2025 को दिव्य और भव्य बनाने के लिए योगी सरकार अनेक अभिनव प्रयास कर रही है। इसी क्रम में पूरे मेला क्षेत्र को डेकोरेटिव लाइट्स से सजाया जा रहा है। 8 करोड़ की लागत से उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लि. की ओर से पूरे मेला क्षेत्र में 485 डिजाइनर स्ट्रीट लाइट पोल का जाल बिछाया जा रहा है। संगम जाने वाली हर प्रमुख सड़क पर यह अलौकिक पोल और लाइट श्रद्धालुओं का स्वागत करती नजर आएगी। योगी सरकार का यह प्रयास न केवल श्रद्धालुओं को दिव्य अनुभव देगा, बल्कि भारतीय संस्कृति और आधुनिकता का अद्भुत संगम भी प्रस्तुत करेगा।
प्रमुख मार्गों पर अनूठी रोशनी का जादू
अधीक्षण अभियंता महाकुंभ मनोज गुप्ता ने बताया कि सीएम योगी की।मंशा के अनुरूप महाकुंभ को भव्य रूप देने के लिए विद्युत विभाग बड़े पैमाने पर कार्य कर रहा है। डेकोरेटिव लाइट्स और डिजाइनर पोल्स उसी का हिस्सा है। मेला क्षेत्र में लाल सड़क, काली सड़क, त्रिवेणी सड़क और परेड के सभी मुख्य मार्गों को आकर्षक डेकोरेटिव लाइट्स से रोशन किया जा रहा है। ये लाइट्स भगवान शंकर, गणेश और विष्णु को समर्पित हैं, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और सौंदर्य का अनुभव कराएंगी।
8 करोड़ की भव्य परियोजना
अधिशाषी अभियंता अनूप सिंह ने बताया कि पूरे मेला क्षेत्र में 8 करोड़ से ज्यादा की लागत से 485 डिजाइनर स्ट्रीट लाइट पोल लगाए जा रहे हैं। इस बार टेंपरेरी की बजाय स्थायी पोल्स का निर्माण किया गया है, जो महाकुंभ के बाद भी क्षेत्र की रौनक बनाए रखेंगे। हर पोल को कलश और देवी-देवताओं की आकृतियों से सजाया गया है, जो मेले के वातावरण को सांस्कृतिक वैभव से भर देंगे। 15 दिसंबर तक सभी डेकोरेटिव लाइट्स का कार्य संपन्न कर लिया जाएगा, जिसके बाद रात में मेला क्षेत्र की आभा देखते ही बनेगी।
विद्युत विभाग का अभिनव प्रयास
उन्होंने कहा कि महाकुंभ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के अनुभव को यादगार बनाने के लिए यह विद्युत विभाग की ओर से एक अभूतपूर्व पहल है। आधुनिक तकनीक और सांस्कृतिक प्रतीकों के मेल से यह परियोजना महाकुंभ को विश्वस्तरीय भव्य आयोजन का दर्जा देगी। महाकुंभ के लिए लगाए गए ये डेकोरेटिव पोल्स स्थायी रहेंगे, जिससे क्षेत्र में आने वाले पर्यटक भी लंबे समय तक इस भव्यता का आनंद ले सकेंगे। डेकोरेटिव लाइट्स से सजे इस महाकुंभ में हर श्रद्धालु को आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक गर्व का अनुभव होगा। यह पहल महाकुंभ को भारतीय संस्कृति की भव्यता और आधुनिक विकास का अद्वितीय प्रतीक बनाएगी।
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