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कान्हा नेशनल पार्क में ड्राइवर, गाइड के रूप में महिलाओं ने संभाला मोर्चा

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मुक्की (मध्यप्रदेश), 29 जुलाई (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क स्थित मुक्की जोन बाघिन के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि इस इलाके में बाघ का नहीं बल्कि बाघिन का दबदबा बना रहा है।

इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इलाके की जनजातीय महिलाओं ने रूढ़ियों की जंजीर तोड़कर यहां पुरुषों की पेशा पर अपना कब्जा जमा लिया है। पार्क में महिलाएं ड्राइवर, गाइड और गार्ड के रूप में अपना मोर्चा संभाल चुकी हैं और वे यहां आने वाले पर्यटकों का मागदर्शक गन गई हैं। इस तरह ये महिलाएं खुद अपना जीविकोपार्जन कर रही हैं।

मध्यप्रदेश के इस राष्ट्रीय उद्यान में महिलाओं को बतौर ड्राइवर नियुक्त कर उनकी सेवा लेने का विचार हाल में आया और पिछले साल दिसंबर में इस पर अमल हुआ। इसके बाद काफी कम समय में महिलाओं ने जिस ढंग से यहां मोर्चा संभाला है उससे हर कोई हैरान है। इस प्रयोग की सफलता से उत्साहित वन विभाग के अधिकारी अब इस जोन को महिलाओं द्वारा नियंत्रित जोन बनाकर एक मिसाल पेश करने की योजना बना रहे हैं। साथ ही इस संकल्पना को दूसरे जोन में भी अमल में लाने के संबंध में विचार किया जा रहा है।

नीता मरकाम यहां की पहली लाइसेंसधारी ड्राइवर हैं। वह बताती हैं कि उनका यहां तक पहुंचने का सफर काफी कठिन रहा और उनका संघर्ष घर से ही शुरू हुआ। पहले उन्होंने अपने पिता को इस बात के लिए मनाया कि वह कान्हा में ड्राइवर बनकर पारिवारिक जिम्मेदारी में अपना योगदान दे सकती है।

नीता ने बताया कि अभयारण्य में जब ड्राइवर के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में उनका नामांकन हुआ तो लोग उनका मजाक उड़ाते थे लेकिन अब कई लड़कियां उनके पास आकर उनसे सलाह लेती हैं कि वे भी कैसे इस काम को कर सकती हैं।

गोंड जनजाति से आने वाली मुक्की गांव निवासी नीता ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, कभी यह नहीं कहा गया कि यह कोर्स सिर्फ पुरुषों के लिए है। मेरी चाची ने मेरे पिताजी को मनाया और उन्होंने मुझे इसकी इजाजत दे दी जबकि कुछ परिवार ताना मार रहे थे और दूसरी लड़कियां और लड़के मेरा मजाक उड़ा रहे थे। आज कई सारी लड़कियां ड्राइवर बनना चाहती हैं और वे मेरे पास सलाह लेने आती हैं। जो लड़के मेरा मजाक उड़ा रहे थे आज वे मुझसे जलते हैं।

नीता ने अपने प्रशिक्षण के दिनों को याद किया जब दूसरे प्रशिक्षु एक लड़की को वहां प्रशिक्षण लेते देख उनके साथ कैसा व्यवहार करते थे। उन्होंने यह भी बताया कि सफारी सीजन की शुरुआत में एक महिला ड्राइवर को देख लोगों को संदेह होता और वे पूछते थे कि क्या वह ड्राइविंग करने में सक्षम होगी।

उन्होंने कहा, मैं उनको समझाती थी कि यह वन मेरा घर है और मुझे यहां ड्राइव करने के लिए प्रशिक्षण दिया गया ताकि मैं इसके चारों ओर दिखा सकूं।

कान्हा बाघ अभयारण्य के तीन जोन हैं जिनमें एक मुक्की जोन है और इस जोन में इस समय छह महिला ड्राइवर हैं। इसके अलावा छह महिलाएं गाइड और एक गार्ड का काम कर रही हैं। इसके अलावा दस जनजातीय महिलाएं यहां कैंटीन संभालती है। ये सभी महिलाएं पड़ोस के गांवों की रहनेवाली हैं।

कान्हा बाघ अभयारण्य के सहायक निदेशक एस. के. खरे ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, खतिया और कान्हा गेट जोन के विपरीत मुक्की जोन का इतिहास है कि यहां बाघ नहीं बल्कि बाघिन का दबदबा रहता है। इस प्रकृति और नाम की सच्चाई को बरकरार रखते हुए हम चाहते हैं कि इस परंपरा को आगे बढ़ाया जाए और यह एक ऐसी जगह बन जाए जहां महिला गार्ड रात में निगरानी करें, महिला ड्राइवर वाहन चलाएं और वे गाइड का भी काम करें। और जब आप यहां दोबारा वापस आएं तो आपको महिलाओं के हाथ में पूरी कैफेटेरिया की कमान देखने को मिले।

माधुरी ठाकुर भी यहां की एक लाइसेंसधारी ड्राइवर हैं, जो 20 साल की उम्र में 2017 में अपनी बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद इस सफर पर निकली। उसके पिता सेवानिवृत फॉरेस्ट गार्ड हैं। पिता से ही प्रेरणा लेकर वह इस पेशा में आई हैं।

जनजातियों में लड़कियों की शादी कम उम्र में ही हो जाती है मगर ये लड़कियां इस परंपरा को तोड़ रही हैं। शादी के बारे में पूछने पर माधुरी ने बताया, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूं। अगर परिवार की ओर से मेरे ऊपर दबाव डाला जाएगा तो मैं गांव के पास ही शादी करना चाहूंगी ताकि मुझे यह नौकरी नहीं छोड़नी पड़े।

लक्ष्मी मरावी भी गोंड जनजाति से आती है और वह यहां गार्ड की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। लक्ष्मी अपने परिवार की एकमात्र कमाने वाली हैं और उनके ऊपर तीन भाई-बहनों के साथ-साथ मां को संभालने की जिम्मेदारी है।

वहीं, सुहकटी धुर्वे गाइड का काम करती हैं। उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, यहां छह गाइड हैं जो एक अच्छी शुरुआत है, मगर इतने से काम नहीं चलेगा। गाइड के रूप में वह हर महीने 10,000 रुपये कमाती हैं। लेकिन पार्क अभी तीन महीने के लिए बंद है जिससे उनकी आय का जरिया बंद है।

पार्क तीन महीने के लिए बंद है और यह अक्टूबर में खुलेगा। इस बीच छह और गाइड के साथ-साथ वन में रसोई संभालने के लिए 10 महिलाओं का प्रशिक्षण चल रहा है।

(यह साप्ताहिक फीचर आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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