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इस नारे के जरिये लाल बहादुर शास्त्री को श्रद्धांजलि दी थी अटल ने
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पिछले 24 घंटे में उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ है। अपनी प्रतिभा, नेतृत्व क्षमता और लोकप्रियता के कारण वे चार दशकों से भी अधिक समय तक सांसद रहे। इनके जीवन में विवाद कम नहीं थे। लाल बहादुर शास्त्री जी की रहस्यमयी मौत के लिए अटल जी खुद को दोषी मानते थे और इन 3 तरीकों से अटल जी ने शास्त्री जी को सच्ची श्रद्धांजलि दी ।
सन 1965-66 में भारत-पाक युद्ध हुआ। भारतीय सेना ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान को धूल चटा दी। हमारी जांबाज सेना लाहौर तक घुस गई। वहां की हवाई पट्टी और पुलिस स्टेशनों के आस पास मां भारती के सपूत तिरंगा फहरा रहे थे। युद्द समाप्ति की घोषणा के बाद अंतर्राष्ट्रीय दवाब के चलते प्रधानमंत्री शास्त्री जी औऱ पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान को समझौते के लिए रूस बुलाया गया।
तय कार्यक्रम के मुताबिक समझौता 11 जनवरी 1966 को होना था। यहां एक दिन पहले ही भारत मे ये खबर फैल गई कि समझौते के तहत भारत लड़ाई मे जीते हुए भूभाग पाकिस्तान को वापस कर देगा और उसके युद्धबंदियों को भी छोड़ देगा। अटल जी उस समय राज्यसभा के सांसद थे। उन्हें जब पता चला कि समझौते के तहत भारत जीती हुई जमीने पाकिस्तान को वापस करने जा रहा है तो उन्होंने सरकार की बहुत ही तीखी आलोचना की। पूरी संसद ने उस दिन अटल जी का रौद्र रूप देखा। उन्होंने कहा ” ये समझौता नही है। ये तो सरासर शहीदों का अपमान है। उनकी शहादत का अपमान है। युद्ध शुरू उन्होंने किया औऱ खत्म हमने। तो हम क्यों समझौते के गलत परिणाम भुगतें। क्या भारत ने वर्साए की संधि से कोई सबक नही लिया जिसके चलते दूसरा विश्वयुद्ध हुआ…हमारा शौर्य…हमारा बलिदान क्या इसलिए था कि विदेश में हारे शत्रु से समझौता किया जाए।
इतिहास पहली बार देख रहा होगा जब विजयी पक्ष को समझौते से बदनामी झेलनी पड़ी हो। कौन आगे बलिदान देगा ? कौन लड़ेगा भारत माता की अस्मिता के लिए जब हमें ही उनकी फिक्र नहीं। कैसे हम सृजन करेंगे नव-पीढि़यों में देशभक्ति की, जब हमारे ही जवानों के हौसलों को ऐसे समझौतो से तोड़ा जाएगा..कैसे ? सरकार जवाब दे। युद्ध में भारत का खून बहा है। हम इसी खून से अपना भविष्य सींचेंगे…हमें रूसियों और अमेरिकियों के मरहम की कोई जरूरत नहीं क्योंकि वो मरहम के रूप में ज़ख्म परोस रहे हैं….मुझे शास्त्री जी पर भरोसा है कि वो ऐसा कत्तई नही होने देंगे पर यदि ऐसा हुआ तो मै नही जानता कि वो कैसे भारतवासियों से आँखें मिलाकर बात कर पाएंगे…मैं नही जानता। शास्त्री जी ने जय जवान और जय किसान का नारा तो दे दिया अब वक्त है इस नारे का मान रखने का..।”
पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही शास्त्री मृत्यु हो गयी।
12 जनवरी को जब भारत मे शास्त्री की मौत की खबर फैली तो पूरे देश मे हाहाकार मच गया…उनका नायक…उनका प्रधानमंत्री…उनका सखा अब नहीं रहा…सादगी और त्याग की मूरत अब स्वर्ग सिधार चुकी थी। पर अटल का दुख इससे कहीं ज्यादा था…अटल जी को लगता था कि कहीं उनकी बेहद कठोर आलोचना के चलते तो शास्त्री को दिल का दौरा नही पड़ा? क्योंकि अटल जी जानते थे कि शास्त्री जी भले दूसरे दल के हों पर उस समय उनसे बड़ा सपूत भारत मे कोई नही था। अटल जी भारी सदमे में थे। उनको लगा कि उनकी आलोचना मे शब्द बहुत ज्यादा कठोर हो गए थे जो शायद शास्त्री जी को वाकई पूछ रहे थे कि कैसे मुँह दिखाएंगे देशवासियों को….कैसे मान रखेंगे जय जवान जय किसान का?
अटल जी अब अपने ही किए पर पछता रहे थे…वो सोच रहे थे कि कैसे माफ कर पाउंगा खुद को ताउम्र? लेकिन अटल जी कि ये सोच निर्मूल साबित हुई। अटल जी ने शास्त्री जी के निजी सचिव पी.सी. श्रीवास्तव से बात की और अपनी चिंता प्रकट की…श्रीवास्तव जी ने कहा कि अटल जी आप खुद को ना कोसें…….सोने से पहले मेरी शास्त्री जी से बात हुई थी…वो सामान्य थे। वो बोल रहे थे कि उन्हे पता है विपक्ष ने क्या क्या बोला है उनके खिलाफ, उन्हें यही उम्मीद भी थी.. वो स्वदेश आकर आप लोगों से मिलकर सब चीजें, सारे अनुभव बांटना चाहते थे। आप कृपया खुद को उनकी मौत के लिए जिम्मेदार मत मानिए…वरना ये विषाद आपके अंदर के देशभक्त राजनेता को जीते जी मार देगा ।
तब जाकर अटल जी ने आत्मग्लानि से मुक्त होकर राहत की सांस ली। अटल जी ने आगे चलकर कई ऐसे काम किए जिसे देखकर शास्त्री जी की आत्मा भी गर्व करती होगी। देश का प्रधानमंत्री होने के बावजूद अटल का रहन-सहन,जीवन-यापन सादा ही रहा…जैसे शास्त्री का था।
1999 मे कारगिल युद्द के दौरान भारत ने पाकिस्तान को एक और करारी शिकस्त दी…मानो अटल जी ने ताशकंद का बदला ले लिया हो….यही नहीं...शास्त्री जी के लोकप्रिय नारे जय जवान जय किसान को अटल जी ने एक नया आयाम भी दिया – जय जवान जय किसान जय विज्ञान। शायद यही सबसे उपयुक्त श्रद्धांजलि थी शास्त्री को अटल की तरफ से।
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पीएम मोदी पर लिखी किताब के प्रचार के लिए स्मृति ईरानी चार देशों की यात्रा पर
नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एक नवीनतम पुस्तक ‘मोडायलॉग – कन्वर्सेशन्स फॉर ए विकसित भारत’ के प्रचार के लिए चार देशों की यात्रा पर रवाना हो गई हैं। यह दौरा 20 नवंबर को शुरू हुआ और इसका उद्देश्य ईरानी को मध्य पूर्व, ओमान और ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से जोड़ना है।
स्मृति ईरानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि,
एक बार फिर से आगे बढ़ते हुए, 4 देशों की रोमांचक पुस्तक यात्रा पर निकल पड़े हैं! 🇮🇳 जीवंत भारतीय प्रवासियों से जुड़ने, भारत की अपार संभावनाओं का जश्न मनाने और सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए उत्सुक हूँ। यह यात्रा सिर्फ़ एक किताब के बारे में नहीं है; यह कहानी कहने, विरासत और आकांक्षाओं के बारे में है जो हमें एकजुट करती हैं। बने रहिए क्योंकि मैं आप सभी के साथ इस अविश्वसनीय साहसिक यात्रा की झलकियाँ साझा करता हूँ
कुवैत, दुबई, ओमान और ब्रिटेन जाएंगी स्मृति ईरानी
डॉ. अश्विन फर्नांडिस द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन दर्शन पर प्रकाश डालती है तथा विकसित भारत के लिए उनके दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करती है। कार्यक्रम के अनुसार ईरानी अपनी यात्रा के पहले चरण में कुवैत, दुबई, फिर ओमान और अंत में ब्रिटेन जाएंगी।
On the move again, embarking on an exciting 4 nation book tour! 🇮🇳Looking forward to connecting with the vibrant Indian diaspora, celebrating India’s immense potential, and engaging in meaningful conversations. This journey is not just about a book; it’s about storytelling,… pic.twitter.com/dovNotUtOf
— Smriti Z Irani (@smritiirani) November 20, 2024
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