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2002 के गुजरात दंगों की एसआईटी रिपोर्ट सफेद झूठ : ले.जनरल शाह

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नई दिल्ली, 14 अक्टूबर (आईएएनएस)| लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह (सेवानिवृत्त) ने अपनी बात फिर दोहराई है कि गुजरात में वर्ष 2002 में कराए गए दंगों के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किए जाने के बावजूद सेना के वाहनों को प्रभावित इलाकों में जाने से एक दिन के लिए रोक दिया गया था। जो एसआईटी जांच रिपोर्ट सौंपी गई थी, वह सफेद झूठ थी।

ले.जनरल शाह शनिवार को अपनी किताब ‘द सरकारी मुसलमान’ के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे। किताब का विमोचन पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने किया।

शाह ने कहा कि उन्होंने इस किताब में ‘खरा सच’ लिखा है और पूरा घटनाक्रम सेना की युद्ध डायरी से संकलित है।

उन्होंने कहा, “समय आने पर वे डायरी भी उपलब्ध करा दी जाएंगी। मैंने जो लिखा है वह ‘खरा सच’ है।”

इस संस्मरण का प्रकाशन कोणार्क प्रकाशक ने किया है। किताब में 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित उन अंशों को भी संकलित किया गया है, जिन पर पहले काफी विवाद हो चुका है।

दंगा को शांत करने के लिए पहुंची सेना का नेतृत्व करने वाले शाह ने अपने संस्मण में लिखा है कि 1 मार्च, 2002 को सुबह सात बजे 3000 सैनिक दंगा प्रभावित इलाकों में जाने के लिए वायुसेना के विमानों से अहमदाबाद में उतरे, लेकिन राज्य सरकार से परिवहन व लॉजिस्टिक सर्पोट के लिए पूरा एक दिन इंतजार करना पड़ा। सेना अगर तुरंत पहुंचकर हालात को नियंत्रण में ले लेती तो हजार से ज्यादा इंसानों की जान नहीं जाती।

बकौल, लेफ्टिनेंट जनरल शाह, 1 मार्च की सुबह से पहले दो बजे रात में ही उन्होंने अहमदाबाद में मौजूद तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नाडीज के समक्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से सेना को प्रभावित इलाकों में भेजने का इंतजाम करने अनुरोध किया था, उसके बावजूद देरी की गई।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि “अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अशोक नारायण के कथन के आधार पर सेना बुलाने और तैनाती करने में कोई देर नहीं हुई।” लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा कि एसआईटी की रिपोर्ट सफेद झूठ थी। इसी रिपोर्ट में गुजरात दंगों के मामले में मोदी को क्लीनचिट दे दी गई।

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इन दर्दनाक दंगों से आहत होकर मोदी से कहा था, “बहुत अफसोस की बात है, आपने राजधर्म नहीं निभाया।”

शाह ने कहा, “कुछ दिनों पहले ही मुझे एसआईटी रिपोर्ट के बारे बताया गया। उससे पहले मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। जब रिपोर्ट में लिखी गई बातों के बारे में पता चला, तो मैं सन्न रह गया। मैं फिर कहता हूं कि यह रिपोर्ट सफेद झूठ है। जो सच्चाई है, वह मैंने अपनी किताब में बयां की है। मुझे नहीं लगता कि इन दंगों के बारे में कोई मुझसे बेहतर तरीके से बताने में सक्षम होगा।”

तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एस. पद्मनाभन ने आईएएनएस से बातचीत में शाह की बातों का समर्थन किया।

बातचीत का निष्कर्ष यह है कि एसआईटी ने लेफ्टिनेंट जनरल शाह से कभी पूछताछ नहीं की। रिपोर्ट से स्पष्ट है कि एसआईटी ने शाह द्वारा जनरल पद्मनाभन को सौंपी गई कार्रवाई रिपोर्ट को नजरअंदाज किया, जबकि यह रिपोर्ट बाद में केंद्र सरकार को अग्रसारित की गई।

शाह के अनुसार, एक दिन देरी से पहुंची सेना ने गुजरात दंगों के दौरान मचाए गए उत्पात को कठोर कार्रवाई कर महज 48 घंटे के भीतर (4 मार्च को) बंद कर दिया। अनियंत्रित हिंसा के लिए उन्होंने पुलिस के पक्षपाती और राजनीतिक रवैये को जिम्मेदार ठहराया।

शाह ने किताब विमोचन के मौके पर कोई राजनीतिक बयान तो नहीं दिया, लेकिन उन्होंने सेना की तैनाती में देरी को प्रशासनिक विफलता बताई।

पुस्तक विमोचन के मौके पर पूर्व उपराष्ट्रपति ने अपने संक्षिप्त संबोधन में सवाल उठाया कि अगर प्रशासन कार्रवाई करने में विफल होता है तो इसके लिए जिम्मेदार किसे माना जाएगा?

अंसारी ने किताब की प्रशंसा की और इसका जो हिस्सा उन्हें सबसे ज्सादा पसंद आया, उसका जिक्र किया।

एसआईटी का नेतृत्व सीबीआई के पूर्व निदेशक आर.के. राघवन (इन दिनों साइप्रस में भारत के राजदूत) ने किया था।

आईएएनएस ने जब राघवन से फोन पर संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि वह इस संबंध में कुछ बताने को अभी तैयार नहीं हैं।

आईएएनएस की तरफ से राघवन और उनसे से संबद्ध निकोसिया में भारतीय उच्चायोग को सवाल भेजे गए, जिनमें उनसे पूछा गया है कि क्या दंगों के दौरान सेना बुलाने और उसकी तैनाती में कोई देर नहीं हुई, इस निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले उन्होंने सेना की कार्रवाई रिपोर्ट पर विचार किया था? उनका जवाब नहीं मिला है।

किताब पर हुई परिचर्चा में सऊदी अरब में भारत के पूर्व राजदूत तलमिज अहमद, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, जामिया हमदर्द के कुलपति सैयद एहतेशाम हसनैन, वरिष्ठ पत्रकार सीमा मुस्तफा, सतीश जैकब और विनोद दुआ शामिल थे।

 

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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