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मदद की आस में दम तोड़ रहा अन्नदाता

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अन्नदाता देवो भवः जैसे सूत्रवाक्य मानने वाले देश के किसान इस कदर बर्बाद और बदहाल हो जाएंगे, ये कोई सपने में भी कल्पना नहीं कर सकता। इस साल बेमौसम बारिश और ओलों ने किसानों की बर्बादी की जो पटकथा लिखी, उसका अंत बेहद दर्दनाक है। किसानों की मौतों का अंतहीन सिलसिला चल पड़ा है। सिर्फ यूपी की बात करें तो सदमे के कारण या खुदकुशी से डेढ़ सौ से ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है और यह आंकड़ा रोज बढ़ता ही जा रहा है। देश के तथाकथित भगवानों यानी नेताओं और स्थानीय प्रशासन से मदद की आस में पूरे सूबे के किसानों की आंखें पथरा चुकी हैं और हिम्मत जवाब दे चुकी है।

प्रदेश सरकार यह खुद भी स्वीकार कर रही है कि बारिश और ओले से सूबे के 40 जिलों में फसलों को 1100 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान पहुंचा है। पांच लाख से अधिक किसान इस आपदा से प्रभावित हैं लेकिन मदद के नाम पर अभी तक उन्हें सिर्फ 175 करोड़ रुपये ही बांटे जा सके हैं। नौकरशाही का नकारापन इस कदर है कि मौतों के बावजूद बहानेबाजी की इंतहा है। कोई डीएम अपनी रिपोर्ट में किसानों की मौत की वजह हार्ट फेल तो कोई फेफड़े की बीमारी को बता रहा है। दबी जुबान में खुदकुशी की बात भी स्वीकारते हैं लेकिन उसकी वजह पर पर्दा डालने से नहीं चूकते। कहते हैं- खुदकुशी की लेकिन फसलों की बर्बादी की वजह से नहीं, घरेलू कलह के कारण…।

सरकार के मदद के दावे किस कदर खोखले हैं, ये किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत के शब्दों में बखूबी समझा जा सकता हैं। टिकैत बताते हैं कि आपदा के बाद मुआवजे की दोषपूर्ण प्रक्रिया ही किसानों की मौतों के लिए सीधे जिम्मेदार हैं। वह साफ कहते हैं कि सरकार अविलंब राहत देने के बजाय नुकसान के आकलन संबंधी आंकड़ों में ही उलझी रहती है। वह बताते हैं कि किसानों को मिलने वाले मुआवजे की प्रक्रिया बेहद लंबी होती है जिससे किसान की आस ही टूट जाती है। असल में, लेखपाल की रिपोर्ट तहसीलदार, अपर जिलाधिकारी (वित्त एवं राजस्व) और राहत आयुक्त के यहां से होते हुए मुख्य सचिव तक पहुंचती है। मुख्य सचिव इसे मांग पत्र बनाकर मुआवजे की क्षतिपूर्ति हेतु केंद्र के कृषि मंत्रालय को भेजता है। केंद्र सरकार के प्रतिनिधि राज्य के दौरे पर आते हैं। दौरे के बाद उनके साथ कृषि उत्पादन नियंत्रक की बैठक होती है। केंद्रीय दल को अगर नुकसान के प्रतिशत पर आपत्ति होती है, तो दूसरा मांग पत्र केंद्र सरकार को भेजा जाता है। यह मुआवजा तभी मिल पाता है, जब नुकसान का प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक हो। इस प्रक्रिया से किसानों तक पैसा पहुंचने में दो वर्ष लग जाते हैं, और तब तक कर्ज के कारण किसान या तो जान दे देता है, अथवा अपनी जमीन बेचने को मजबूर हो जाता है।

किसानों की बर्बादी के इस मंजर में ही हालात यह हैं कि कई जिलों में बैंक, किसान क्रेडिट कार्ड पर लोन लेकर खेती करने वाले किसानों पर कर्ज वापसी के लिए दबाव बना रहे हैं। अगर उन्होंने साहूकारों से कर्ज लेकर खेती की है तो मुसीबतों का कोई ओर-छोर ही नहीं है। ऐसे में घर-परिवार की जिम्मेदारियों के दबाव के सामने किसानों की हिम्मत जवाब दे जा रही है। फसल बीमा का पैसा किसानों को न मिलने की भी घटनाएं सामने आई हैं। फिलहाल मौतों की फेहरिस्त न थमने पर वरिष्ठ अधिकारियों ने स्थानीय अफसरों को जिलों में बैंकर्स के साथ बैठक कर सख्ती न बरतने को कहा है लेकिन ये कदम भी काफी देर से उठाया गया। मंडलीय अधिकारियों की टीम बनाकर गांवों में भेजने जैसे निर्देश कितने कारगर साबित होंगे, इसका पता बाद में ही चल सकेगा। फिलहाल देश में जलवायु के क्षेत्रों के आधार पर आपदा राहत नीति की बेहद सख्त जरूरत है। यह भी जरूरी है कि केंद्र सरकार भी बिना देरी के कोई राहत पैकेज घोषित करे और भविष्य में इस तरह की आपदा की स्थिति से निपटने के लिए किसानों के लिए अलग से आकस्मिक निधि बनाए। पुराने कानूनों को तत्काल खत्म कर किसान हितैषी नए अध्यादेश लाने की तत्परता अगर सरकार दिखाएगी, तभी अन्नदाताओं की मौत पर लगाम लग सकेगी।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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