प्रादेशिक
जहां अक्षय तृतीया पर होता है पुतरा-पुतरी विवाह
रायपुर। छत्तीसगढ़ में प्राचीन काल से अक्षय तृतीया के दिन मिट्टी के पुतरा-पुतरी का विवाह कराने की परंपरा है। पुतरा-पुतरी (पुतला-पुतली) के विवाह की परंपरा निभाते हुए लोग बाद में अपने नाबालिग बच्चों के भी विवाह काराने लगे, हालांकि अब धीरे-धीरे इस पर विराम लगाने का प्रयास चल रहा है।
छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में रचे-बसे पुतरा-पुतरी के विवाह का विशेष महत्व है। लेकिन बदलते समय और दौर के हिसाब से अब ये आधुनिकता की परिभाषा में गुड्डे-गुड़ियों की शादी के नाम से मशहूर हो गया है, तो जाहिर की समय के साथ इसमें आधुनिकता का समावेश भी होना लाजिमी है।
अब बाजार में स्टेज में साथ बैठे पुतरा-पुतरी की मूर्तियों से भी बाजार भरा पड़ा है। बूढ़ेश्वर मंदिर के सामने पुतरा-पुतरी बेचने वाले मोहन चक्रधारी और सतीश चक्रधारी ने आधुनिक परिवेश में मूर्तियों के हो रहे निर्माण पर कहा कि अक्षय तृतीया पर गुड्डे-गुड़ियों का निर्माण मांग के अनुरूप किया जा रहा है। इसके साथ ही परंपरागत मूर्तियां भी बाजार में उपलब्ध हैं।
चक्रधारी ने बताया कि वह इस पुश्तैनी कारोबार से जुड़े हैं। परंपरागत रूप से बनने वाले पुतरा-पुतरी में बांस और मिट्टी का इस्तेमाल होता है। वहीं अभी बन रहे पुतरा-पुतरी की आकर्षक सजावट बच्चों के साथ ही बड़ों को भी बरबस आकर्षित कर रही है।
उन्होंने बताया कि परंपरागत पुतरा-पुतरी 30 से 40 रुपये जोड़ी की दर से बिक रहे हैं, लेकिन स्टेज शो के साथ आधुनिक रूप ले चुकीं दूल्हा-दुल्हन की मूर्तियां 60 से 120 रुपये तक में उपलब्ध हैं।
चक्रधारी ने बताया कि पुतरा-पुतरी में परंपरागत परिधान से हटकर शूट-बूट और घाघरा-चोली में सजे गुड्डे-गुड़ियों की मांग भी काफी है। राजधानी रायपुर में आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में मूर्तिकार अक्षय तृतीया पर मूर्तियां बेचने आए हैं। इनमें मुख्यत: आरंग, महासमुंद, भाठागांव आदि शामिल हैं।
इनके साथ ही पुतरा-पुतरी के विवाह में उपयोग आने वाली चुकिया, कलशी, मौर, आल्ता आदि भी राजधानी में खासी मांग है। राजधानी में मूर्तियों की बिक्री पर व्यापारियों का कहना है कि शहरी क्षेत्रों में जैसे-जैसे त्यौहार नजदीक आते हैं, वैसे-वैसे ग्राहकी भी बढ़ती है।
गौरतलब है कि अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीदारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। वहीं इसी दिन छोटे बच्चे भी गुड्डे-गुड़ियों का विवाह कर खुशियां बटोरते हैं।
राजधानी के पंडितों का कहना है कि शुभ मुहूर्त के कारण अक्षय तृतीया को लोग अपने बेटे-बेटियों का विवाह किया करते थे। वे बताते हैं कि पुतरा-पुतरी के विवाह का रिवाज मात्र छत्तीसगढ़ में है।
राजधानी के कई बुजुर्गो ने पुतरा-पुतरी के विवाह के लिए अपने पुराने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उनके समय में भी पुतरा-पुतरी के विवाह का विशेष महत्व था। इस दिन बकायदा लकड़ी के पाटे को चारों तरफ से सजाकर पुतरा-पुतरी का विवाह संपन्न किया जाता था, लेकिन बदलते समय के हिसाब से इसमें, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में लगातार परिवर्तन देखने को मिल रहा है,।
ग्रामीण अंचल के निवासी 76 वर्षीय बुजुर्ग सियाराम साहू का कहना है कि हमारे जमाने में बांस और मिट्टी से निर्मित पुतरा-पुतरी का चलन था। अब भी यह देखने को मिलता है, लेकिन आधुनिकता इस पर भी हावी हो गई है। बच्चे अब आधुनिक परिधान में सजे गुड्डे-गुड़ियों की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं।
IANS News
वसुधैव कुटुंबकम’ भारत का शाश्वत संदेश : योगी आदित्यनाथ
लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के आदर्श वाक्य के महत्व पर जोर देते हुए इसे भारत की वैश्विक मानवता के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक बताया है। उन्होंने इसे भारत का शाश्वत संदेश बताते हुए कहा कि हमने हमेशा से शांति, सौहार्द और सह-अस्तित्व को प्राथमिकता दी है। सीएम योगी ने यह बात शुक्रवार को एलडीए कॉलोनी, कानपुर रोड स्थित सिटी मॉन्टेसरी स्कूल (सीएमएस) के वर्ल्ड यूनिटी कन्वेंशन सेंटर में विश्व के मुख्य न्यायाधीशों के 25वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के दौरान अपने संबोधन में कही। कार्यक्रम में 56 देशों के 178 मुख्य न्यायाधीश और डेलिगेट्स ने भाग लिया।
‘अनुच्छेद 51 की भावनाओं को विश्व शांति और सुरक्षा के लिए प्रेरक’
अपने संबोधन में मुख्यमंत्री ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 51 की भावनाओं को विश्व शांति और सुरक्षा के लिए प्रेरक बताया। उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद सम्मानजनक अंतरराष्ट्रीय संबंधों को विकसित करने और संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए नैतिक मार्ग का अनुसरण करने के लिए हम सभी को प्रेरित करता है। उन्होंने समारोह को प्रेरणादायक बताते हुए कहा कि 26 नवंबर 2024 को संविधान अंगीकरण के 75 वर्ष पूरे होंगे। यह संविधान के अंगीकृत होने के अमृत महोत्सव वर्ष की शुरुआत के दौरान आयोजित हो रहा है।
‘युद्ध समस्याओं का समाधान नहीं है’
योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र के ‘समिट ऑफ दि फ्यूचर’ में दिये गये संबोधन की चर्चा करते हुए कहा कि युद्ध समस्याओं का समाधान नहीं है। युद्ध ने दुनिया के ढाई अरब बच्चों के भविष्य को खतरे में डाला है। उन्होंने दुनिया के नेताओं से आग्रह किया कि वे एकजुट होकर आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ, सुरक्षित और भयमुक्त समाज का निर्माण करें। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सम्मेलन को वैश्विक संवाद और सहयोग का मंच बताते हुए विश्वास व्यक्त किया कि अनुच्छेद 51 की भावना के अनुरूप यह आयोजन विश्व कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करेगा। उन्होंने दुनिया भर के न्यायाधीशों से इस दिशा में सक्रिय योगदान देने का भी आह्वान किया।
‘भारत विश्व शांति और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध’
मुख्यमंत्री ने संविधान के अनुच्छेद 51 की चर्चा करते हुए कहा कि यह वैश्विक शांति और सौहार्द की दिशा में भारत की सोच को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान और सभी देशों के बीच सम्मानजनक संबंधों को बढ़ावा देने का संदेश देता है। मुख्यमंत्री ने भारत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सक्रिय भागीदारी से यह स्पष्ट होता है कि भारत विश्व शांति और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है।
सीएमएस के संस्थापक को दी श्रद्धांजलि
सीएमएस के संस्थापक डॉ. जगदीश गांधी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी दूरदृष्टि और प्रयासों से यह सम्मेलन एक महत्वपूर्ण मंच बना है। उन्होंने डॉ. भारती गांधी और गीता गांधी को इस कार्यक्रम को अनवरत जारी रखने के लिए धन्यवाद दिया।
इस अवसर पर हंगरी की पूर्व राष्ट्रपति, हैती रिपब्लिक के पूर्व प्रधानमंत्री सहित दुनिया के 56 देशों से आए हुए न्यायमूर्तिगण, सीएमएस की संस्थापक निदेशक डॉ भारती गांधी, प्रबंधक गीता गांधी किंगडन समेत स्कूली बच्चे और अभिभावकगण मौजूद रहे।
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