उत्तर प्रदेश
ग्रेटर नोएडा में 25 हजार रोजगार के सृजन का माध्यम बनेगी ‘इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप’
लखनऊ। उत्तर प्रदेश को ‘वन ट्रिलियन डॉलर’ की इकॉनमी बनाने की दिशा में संकल्पित व प्रयासरत योगी सरकार ने ग्रेटर नोएडा में बन रही इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप के वृहद विकास के लिए बड़ा रोडमैप तैयार किया है। सीएम योगी के विजन अनुसार, इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप को 6,807 करोड़ रुपए के प्रस्तावित निवेश को लक्षित करने के माध्यम के तौर पर विकसित किया जाएगा जिसके जरिए इस क्षेत्र में 25 हजार रोजगार के अवसर सृजित होंगे। उल्लेखनीय है कि ग्रेटर नोएडा के परी चौक से 11 किलोमीटर की दूरी पर अजायबपुर रेलवे स्टेशन के करीब इस टाउनशिप का विकास किया जा रहा है। यह क्षेत्र नोएडा मुख्य शहर से भी मात्र 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कुल 747.50 एकड़ में इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप के हो रहे विकास में से 332.52 एकड़ क्षेत्र में इंडस्ट्रियल, 72.86 एकड़ में ग्रुप हाउसिंग व ईडब्ल्यूएस रेजिडेंशियल तथा 38.15 एकड़ में कमर्शियल लैंड यूज की गतिविधियां संचालित होंगी। वहीं, 300.97 एकड़ एरिया का एरिया विकास सेक्टर व साइट लेआउट प्लान रोड्स, साइकिल ट्रैक, एडमिनिस्ट्रेशन बिल्डिंग्स व हरित क्षेत्र के तौर पर विकसित किया जा रहा है।
मोबाइल कॉम्पोनेंट्स व इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स के हब के तौर पर बन रही पहचान
ग्रेटर नोएडा में विकासशील इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप दरअसल, दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे के लिहाज से एक प्रमुख परियोजना है, जिसे विश्व स्तरीय मानकों के साथ डिजाइन किया गया है। नए जमाने की कार्कायशैली के अनुसार यहां कार्यक्षमता व सौंदर्य के बीच संतुलन बनाया गया है। वैसे, परियोजना के अंतर्गत इंडस्ट्रियल पॉकेट रीजन में पहले से ही कई बड़े प्लांट्स संचालित हैं। इसके जरिए हजारों लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं तथा यह क्षेत्र मोबाइल कॉम्पोनेंट्स व इलेक्टॉनिक आइटम्स के निर्माण क्षेत्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। इस क्षेत्र की कनेक्टिविटी दिल्ली-हावड़ा रेल लाइन से भी है और अजायबपुर व दादरी रेलवे स्टेशंस क्लोज प्रॉग्जेमिटी पर स्थित हैं, इसी कारण से इस क्षेत्र को भविष्य के बड़े इंडस्ट्रियल हब के विजन के साथ विकसित किया जा रहा है।
कई सेक्टर्स के प्रोडक्ट्स का हो सकेगा उत्पादन
मोबाइल कॉम्पोनेंट्स व इलेक्टॉनिक आइटम्स के निर्माण का कार्य तो इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप में शुरू हो ही चुका है, इसके अतिरिक्त अन्य कई सेक्टर्स की भी निर्माण इकाइयों की संथापना व संचालन की प्रक्रिया में तेजी लाई जा रही है। उल्लेखनीय है कि मोबाइल, पीसीबी, एसी, टीवी, वॉशिंग मशीन व एलईडी कॉम्पोनेंट्स जैसे मैनुफैक्चरिंग सेक्टर्स की निर्माण इकाइयां यहां पहले से ही बड़े स्केल पर प्रोडक्शन कर रही हैं। वहीं, अब इस क्षेत्र में इंडस्ट्रियल मशीनरी, कॉस्मेटिक्स, हेल्थकेयर, आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स, पीवीसी पाइप्स, फिटिंग्स, पाउडर व लिक्विड पेंट्स, इलेक्ट्रिक वायर तथा कॉपर ट्यूब्स व पाइप्स की निर्माण इकाइयों की स्थापना व संचालन की प्रक्रिया के लिए लीज डीड प्रॉसेस को जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा।
तेजी से बढ़ रही है निर्माण व विकास प्रक्रिया
सीएम योगी के विजन अनुसार इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप के विकास के लिए बनाई गई विस्तृत कार्ययोजना के क्रियान्वयन के जरिए इंडस्ट्रियल, कमर्शियल व रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट्स को गति देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। फिलहाल, इंडस्ट्रियल लैंड यूज के कुल 42 प्लॉट्स में से 17 बड़े प्लॉट्स आवंटित किए जा चुके हैं जबकि 25 प्लॉट्स की आवंटन प्रक्रिया में भी तेजी लाई जाएगी। इसी प्रकार, रेजिडेंशियल के 6 व कमर्शियल के 7 प्लॉट्स की भी आवंटन प्रक्रिया को जल्द ही शुरू किया जाएगा। प्रोजेक्ट टाउनशिप के अंतर्गत 240.22 एकड़ क्षेत्र में विभक्त 38 प्लॉट्स की भी आवंटन प्रक्रिया में तेजी लाई जाएगी। इसमें से 10 इंडस्ट्रियल प्लॉट्स की आवंटन प्रक्रिया को इसी माह पूर्ण कर लिया जाएगा।
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के केला उत्पादक किसानों के लिए खुशखबरी
लखनऊ। फंफूद जनित फ्यूजेरियम विल्ट रोग केले की फसल के लिए बेहद हानिकारक है। गंभीर संक्रमण होने पर केले की फसल बर्बाद हो सकती है। हाल के कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश के कई केला उत्पादक क्षेत्रों में इसका प्रकोप देखा गया। अयोध्या का सोहावल ब्लॉक जो केले की खेती के लिए जाना जाता है, वहां 2021 में इसका व्यापक प्रकोप देखा गया। इसी तरह प्रदेश के प्रमुख केला उत्पादक क्षेत्रों मसलन महाराजगंज, संत कबीर नगर, अम्बेडकर नगर और कुशीनगर जिलों में केले की फसल पर फ्यूजेरियम विल्ट रोग (टी आर 4) का गंभीर प्रकोप सामने आया था। हाल के सर्वेक्षणों में भी लखीमपुर और बहराइच जिलों में व्यापक रूप से रोग के संक्रमण की पुष्टि हुई है।
रोग के लक्षण
रोग का संक्रमण केले के तने के भीतरी भाग में होता है। संक्रमित केले के पौधे के तने का भीतरी हिस्सा क्रीमी कलर का न होकर कत्थई या काले रंग का हो जाता है।
सीआईएसएच द्वारा रोग के इलाज लिए खोजी गई तकनीक
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबद्ध केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान
(सीआईएसएच), लखनऊ, और करनाल स्थित केंद्रीय लवणता शोध संस्थान से संबद्ध क्षेत्रीय शोध केंद्र लखनऊ ने मिलकर इसका इलाज खोजा। पेटेंट होने के साथ अब कृषि विज्ञान केंद्र अयोध्या के माध्यम से इसके प्रयोग के लिए किसानों
को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। नतीजे भी अच्छे रहे हैं। सोहावल के जो किसान केला बोना बंद या कम कर दिए थे अब फिर से केला बोने लगे।
उल्लेखनीय है कि डॉ. टी. दामोदरन के नेतृत्व में रोग के रोकथाम के लिए बायोएजेंट, आईसीएआर फ्यूसिकोंट (ट्रायोकोडर्मा आधारित सूत्रीकरण) और टिशू कल्चर पौधों के जैव-टीकाकरण का उपयोग कर एक प्रबंधन प्रोटोकॉल विकसित किया
गया। उत्पाद फ्यूसिकोंट केले विल्ट प्रबंधन के लिए एक 9 (3 बी) पंजीकृत सूत्रीकरण था। किसानों की मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में उत्पादन और आपूर्ति के लिए आईसीएआर द्वारा इसका वाणिज्यीकरण भी किया
गया है।
फ्यूसिकोंट के प्रयोग का तरीका
संस्थान के निदेशक डॉ. टी. दामोदरन के अनुसार संस्थान द्वारा तैयार बायोजेंट (फ्यूसिकोंट फॉर्मूलेशन) पानी में पूरी तरह घुलनशील होता है। रोग से बचाव के लिए एक किलो बायोएजेंट को 100 लीटर पानी में मिला लें और एक-एक लीटर पौधों की जड़ों में रोपाई के 3, 5, 9, और 12 महीने के बाद डालें । अगर रोग के लक्षण फसल पर दिखाई दें तो 100 लीटर पानी में 3 किलो फ्यूसिकोंट फॉर्मूलेशन 500 ग्राम गुड़ के साथ घोले लें और दो दिन बाद एक- दो लीटर पौधों की जड़ों में रोपाई के 3, 5, 9, और 12 महीने के बाद प्रयोग करें।
फसल चक्र के प्रयोग से भी कम होता है संक्रमण का खतरा
उन्होंने केला उत्पादक किसानों को यह भी सलाह दी कि वह फसल चक्र में बदलाव करते रहे। पहले साल की फसल में इस रोग के संक्रमण की संभावना कम होती है। पर उसी फसल की पुत्ती से दूसरी फसल लेने पर संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। बेहतर हो कि केले के बाद धान, गेंहू, प्याज, लहसुन आदि की फसल लें। फिर केले की फसल लें। इससे मिट्टी का संतुलन भी बना रहता है और संक्रमण का खतरा भी कम हो जाता है।
इन जिलों के किसान दें ध्यान
संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक पी.के. शुक्ल के मुताबिक जब कोई फसल गैर परंपरागत क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर प्रचलित होती है तो इस तरह के रोगों के संक्रमण का खतरा भी होता है। केले के साथ भी यही हुआ। हाल ही में डॉ. पी.के. शुक्ल ने अमेठी, बाराबंकी, अयोध्या, गोरखपुर, महाराजगंज, संत कबीर नगर जिलों में स्थित 144 केले के बागों के निरीक्षण में पाया गया कि केले के जड़ क्षेत्र में पादप परजीवी सूत्रकृमि की कई प्रजातियां मौजूद थीं। ये सूत्रकृमि फसल की उपज क्षमता में प्रत्यक्ष कमी के अलावा फसल को कवक जनित रोगों के प्रति संवेदनशील बनाती हैं। यद्यपि उनकी आबादी को आर्थिक क्षति सीमा से नीचे ही देखा गया था, तथापि, फसल चक्र और टिशू कल्चर पौधों के रोपण का पालन करके उनकी जनसंख्या को नियंत्रित रखना ही केला किसानों के लिए बेहतर होगा।
आर्थिक और पोषक महत्त्व के मद्देनजर योगी सरकार दे रही केले की खेती को प्रोत्साहन
योगी सरकार केले की फसल के आर्थिक और पोषण संबंधित महत्त्व के मद्देनजर केले की खेती को लगातार प्रोत्साहन दे रही है। केले की खेती के लिए प्रतिहेक्टेयर अनुदान के साथ ड्रिप या स्प्रिंकलर और सोलर पंप लगाने पर भी भारी अनुदान देती है। यही नहीं सरकार ने केले को कुशीनगर का एक जिला, एक उत्पाद भी घोषित कर रखा है। अब यहां के किसान केले की फसल लेने के साथ इसके कई तरह के बाई प्रोडक्ट भी बना रहे है। नतीजतन उत्तर प्रदेश में केले की खेती का क्रेज बढ़ा है।
यूपी में केले की फसल का रकबा करीब 70 हजार हेक्टेयर
वर्तमान में उत्तर प्रदेश केले की फसल का रकबा लगभग 70000 हेक्टेयर औरत्पादन 3.172 लाख मीट्रिक टन से अधिक है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी करीब 45.73 मीट्रिक टन है। कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, बस्ती,महाराजगंज,
अयोध्या, बहराइच, अंबेडकरनगर, बाराबंकी, प्रतापगढ़ और कौशाम्बी जिले शामिल हैं। सीतापुर और लखीमपुर जिलों में भी केले की फसल का रकबा ठीक-ठाक है।
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