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अन्तर्राष्ट्रीय

मुंबई हमला: रिटायर्ड पाकिस्तानी अधिकारी ने कहा- गलती माने देश

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इस्लामाबाद। मुंबई पर 26 नवंबर, 2008 को हुए आतंकवादी हमले में पाकिस्तान की भूमिका की पोल-पट्टी खुद एक पाकिस्तानी सेवानिवृत्त अधिकारी ने खोल दी है। उसने साफ कहा है कि पाकिस्तान को इस जघन्य नरसंहार में अपनी गलती स्वीकार कर लेनी चाहिए। यह बात किसी आम पाकिस्तानी ने नहीं, बल्कि वहां की संघीय जांच एजेंसी (एफआईए) के पूर्व निदेशक जनरल तारिक खोसा ने कही है।

खोसा ने समाचार पत्र डॉन में मंगलवार को प्रकाशित अपनी टिप्पणी में लिखा है, “मुंबई की घटना से पाकिस्तान को निपटना है। इसकी साजिश पाकिस्तान की धरती पर रची गई थी और इसे यहीं से लांच किया गया था।” खोसा ने लिखा है कि पाकिस्तान को हर हाल में मान लेना चाहिए कि उसने पाकिस्तानी आतंकवादियों को समुद्र के रास्ते मुंबई तक पहुंचने देने की गलती की थी। इसके लिए जरूरी है कि सच का समाना किया जाए और अपनी गलती मान ली जाए।

खोसा ने कहा, “देश के समूचे सुरक्षा तंत्र को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस वीभत्स आतंकवादी हमले को अंजाम देने वाले और इसकी साजिश रचने वाले कानून के कटघरे में खड़े किए जाएं।” खोसा ने कहा कि यह मामला काफी लंबे समय से लटका हुआ है। उन्होंने लिखा है कि बचाव पक्ष की मामला लटकाने की रणनीति, न्यायाधीशों का बार-बार बदला जाना और मामले के अभियोजक की हत्या और कुछ प्रमुख गवाहों का मूल गवाहियों से पलट जाना, अभियोजन पक्ष के लिए गंभीर धक्का साबित हुआ है।

खोसा ने कहा कि पहली बात यह है कि हमले का मुख्य गुनहगार अजमल कसाब और मामले के मास्टरमाइंड पाकिस्तानी थे। दूसरी बात यह कि हमले को अंजाम देने वाले आतंकवादियों ने सिंध में थट्टा के पास प्रशिक्षण लिया था और यहीं से वे समुद्र के रास्ते मुंबई पहुंचे थे। उन्होंने कहा है, “जांचकर्ताओं ने प्रशिक्षण शिविर की पहचान की थी और उसे अपने नियंत्रण में ले लिया था। मुंबई हमले में इस्तेमाल किए गए विस्फोटक उपकरणों खोल यहां से बरामद हुए थे।”

खोसा ने लिखा है, “तीसरी बात यह कि जिस भारतीय नौका से आतंकवादी मुंबई पहुंचे थे, उसे अगवा करने के लिए इस्तेमाल की गई मछली पकड़ने वाली नौका वापस बंदरगाह लाई गई थी और उसे रंगा गया था और फिर उसे छुपा दिया गया था। जांचकर्ताओं ने उसे बरामद किया था और पाया कि इसका संबंध आरोपियों से है।”
खोसा ने लिखा है, “चौथी बात यह है कि आतंकियों ने जो डोंगी मुंबई बंदरगाह के पास छोड़ी थी, उसका इंजन भी पाकिस्तान से ताल्लुक रखता था। जांचकर्ताओं ने पाया कि यह जापान से लाहौर आयात किया गया था और वहां से कराची की एक दुकान तक पहुंचा। इस दुकान से इसे लश्कर-ए-तैयबा के एक आतंकी ने डोंगी के साथ खरीदा। इस सौदे में हुए लेन-देन का ताल्लुक भी मामले में गिरफ्तार आरोपियों से निकला।”

खोसा ने लिखा है कि पांचवीं बात यह कि कराची के जिस कमरे में बैठकर इस पूरे अभियान को संचालित किया गया, उस तक भी जांच एजेंसियां पहुंचीं और उसे सील किया गया। पाकिस्तान जांच एजेंसी के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी खोसा ने कहा कि छठी और बड़ी बात यह है कि आरोपी कमांडर और उसके तमाम नायब पहचान लिए गए और पकड़े गए। सातवीं बात यह कि हमले के लिए धन देने वाले कुछ विदेशी भी पकड़ लिए गए।

खोसा ने लिखा है कि मुंबई कांड अपने आप में अलग तरह का है। दूसरे के अधिकार क्षेत्र में साजिशों के तार जोड़ना और इसे साबित करना बहुत जटिल काम है और इसके लिए बहुत मजबूत सबूत की दरकार होती है। इसलिए जरूरी है कि दोनों देशों के कानून से जुड़े लोग एक-दूसरे पर उंगली उठाने के बजाए एक साथ मिल कर काम करें। खोसा ने पाकिस्तान से पूछा है, “क्या एक राष्ट्र के रूप में हम अपने अंदर असहज कर देने वाली सच्चाइयों का सामना करने की हिम्मत जुटा सकते हैं और अपनी जमीन को तबाह करने वाले आतंक के दानवों से लड़ सकते हैं। “

अन्तर्राष्ट्रीय

हिजबुल्लाह ने इजरायल पर दागे लगभग 250 रॉकेट, 7 लोग घायल

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बेरूत। हिजबुल्लाह ने एक बार फिर इजरायल पर बड़ा हमला किया है। रविवार को हिजबुल्लाह ने इजरायल पर लगभग 250 रॉकेट और अन्य हथियारों से हमला किया। इस हमले में कम से कम सात लोग घायल हो गए है। हिजबुल्लाह का यह हमला पिछले कई महीनों में किया गया सबसे भीषण हमला है, क्योंकि कुछ रॉकेट इजरायल के मध्य में स्थित तेल अवीव इलाके तक पहुंच गए।

इजराइल की ‘मैगन डेविड एडोम’ बचाव सेवा ने कहा कि उसने हिजबुल्लाह द्वारा इजराइल पर दागे गए हमलों में घायल हुए सात लोगों का इलाज किया. युद्ध विराम के लिए वार्ताकारों की ओर से दबाव बनाए जाने के बीच हिजबुल्लाह ने ये हमले बेरूत में घातक इजराइली हमले के जवाब में किये

सेना का अभियान चरमपंथियों के खिलाफ

इसी बीच लेबनान की सेना ने कहा कि इजराइल के हमले में रविवार को लेबनान के एक सैनिक की मौत हो गई जबकि 18 अन्य घायल हो गए. इस घटना पर इजराइल की सेना ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमला हिजबुल्लाह के विरुद्ध युद्ध क्षेत्र में किया गया और सेना का अभियान केवल चरमपंथियों के खिलाफ हैं.

 

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