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प्रादेशिक

बुंदेलखंड : चेक-डैम ने बदल दी गांव की सूरत

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छतरपुर। बुंदेलखंड क्षेत्र के छतरपुर जिले के छोटे से गांव ‘पटना’ की तस्वीर एक चेक-डेम ने बदल दी है। अब यहां के लोगों को पीने के पानी के लिए मीलों रास्ता तय नहीं करना होता है, अलबत्ता पानी की उपलब्धता ने फसलों की पैदावार बढ़ा दी है।

छतरपुर जिले की बिजावर तहसील के छोटे से गांव का नाम है पटना, जो बिहार की राजधानी का हमनाम है। लगभग 500 की आबादी वाले इस गांव में 90 मकान हैं, जिसमें 50 जनजातीय वर्ग से नाता रखने वालों के हैं। कभी यहां के लोगों को पानी के लिए कई किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता था। पानी की कमी के कारण यहां प्रति व्यक्ति आय भी काफी कम थी।

समस्याग्रस्त इस गांव में बदलाव की शुरुआत हुई वर्ष 2013 में गैर सरकारी संगठन हरीतिका के नवाचार से। हरीतिका ने यहां कोका कोला फाउंडेशन के आनंदाना के सहयोग से एक चेक-डैम का निर्माण किया और सौर लालटेन उपलब्ध कराया। बस, यहां के लोगों की जिंदगी बदल गई। गांव में सौर ऊर्जा चालित नलकूप से जलापूर्ति होने लगी है। गांव में 15 सौर ऊर्जा चालित सड़क बत्तियां हैं, 60 घरों में शौचालय है और एक करोड़ 24 लाख 46 हजार 400 लीटर (12,446,400) क्षमता का चेक-डैम है।

किसान राघो पाल (39) की पहले आय पांच हजार रुपये से भी कम थी, मगर अब चेक-डैम में पानी की उपलब्धता से आय दोगुनी हो गई है। उसका कहना है, “चेक-डैम ने बड़ा बदलाव लाया है, उनकी जिंदगी में। गर्मी और पानी की कमी के चलते पहले फल की खेती नहीं कर पाते थे, मगर अब ऐसा नहीं है। अब तो हर सप्ताह 200 रुपये के फल बेच रहे हैं।”

आनंदाना के मुख्य कार्यपालक अधिकारी योगेश चंद्र ने बताया, “इस परियोजना का उद्देश्य जलसंकट से ग्रस्त इलाकों को इससे उबारना है। अब तक चालीस से ज्यादा ऐसे क्षेत्रों को समस्या से उबारा गया है। ये क्षेत्र कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और राजस्थान से आते हैं, उनमें से एक बुंदेलखंड है, जहां पानी की समस्या के चलते गर्मी के मौसम में बड़ी संख्या मंे ग्रामीण पलायन कर जाते हैं।”

उन्होंने कहा, “हमारा मकसद समाज को यह बताना है कि कोका-कोला सिर्फ व्यावसायिक काम नहीं करती है। हमारा काम सिर्फ व्यावसायिक उपयोग के लिए पानी लेना नहीं है, बल्कि पानी की उपलब्धता बढ़ाना भी है। हमने व्यावसायिक उपयोग के लिए पांच लाख अरब लीटर पानी लिया है तो सूखा प्रभावित इलाकों में 13 लाख अरब लीटर पानी उपलब्ध कराया है।”

हरीतिका के संस्थापक अवनी मोहन सिंह ने कहा, “इस परियोजना ने पटना गांव के लोगों का जीवन बदल दिया है। कृषि की पैदावार में इजाफा होने से उनकी आय बढ़ गई है। आय 10 से 15 हजार रुपये हो गई है, जो बीते वर्षो से दोगुना है। एक तरफ पानी की उपब्धता बढ़ी है तो दूसरी ओर सौर ऊर्जा का भी बेहतर इस्तेमाल हो रहा है।”

सिंह बताते हैं, “इस गांव में पांचवीं कक्षा तक का विद्यालय है, मगर स्वास्थ्य सुविधा के लिए 15 किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है। जब कभी आपातकालीन स्वास्थ्य सुविधा मसलन गर्भवती महिला को प्रसव के लिए जरूरत होती है तो कई घंटों तक चिकित्सा वाहन का इंतजार करना पड़ता है।” दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान की 2014 की अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि बुंदेलखंड में 60 प्रतिशत गांवों को वर्ष में एक माह आसानी से पीने का पानी मिल पाता है। यही अध्ययन बताता है कि महिलाओं को 20 लीटर पानी के लिए चार से पांच घंटे हर रोज खर्च करने पड़ते हैं। इस क्षेत्र की 60 प्रतिशत आबादी खेती पर निर्भर है, और यहां का साक्षरता प्रतिशत देश के अनुपात में न्यूनतम है।

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नेशनल

दिल्ली में सांस लेना है कितना खतरनाक, देखें इस खबर को

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नई दिल्ली। दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में प्रदूषण से लोगों को राहत मिलती नजर नहीं आ रही है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, शुक्रवार सुबह 6 बजे दिल्ली के अधिकतर इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 400 के करीब दर्ज किया गया. जो कि ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है. आज दिल्ली के अलीपुर में AQI 362, आनंद विहार में 393, जहांगीरपुरी में 384, मुंडका में 396, नरेला में 383, नेहरू नगर में 362, पंजाबी बाग में 370, शादीपुर में 398, रोहिणी में 381 और विवेक विहार में 395 दर्ज किया गया. वायु प्रदूषण के कारण कई लोगों को सांस लेने में और आंखों में जलन की परेशानी हो रही है.

जीवन के 12 साल छीन रहा वायु प्रदूषण

बता दें कि शून्य से 50 के बीच एक्यूआई को अच्छा माना जाता है। वहीं 51 से 100 एक्यूआई को संतोषजनक, 101 से 200 के बीच मध्यम, 201 से 300 के बीच खराब, 301 से 400 के बीच बहुत खराब और 401-500 के बीच एक्यूआई को गंभीर श्रेणी का माना जाता है। एक्सपर्ट्स की मानें तो दिल्ली का प्रदूषण लोगों के जीवन के 12 साल उनसे छीन रहा है। वहीं कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण में एक दिन सांस लेने का मतलब है दिन भर में 10 से अधिक सिगरेट के बारबर धुएं को अपने शरीर में लेना। बता दें कि दिल्ली के वायु प्रदूषण के मामले पर सुप्रीम कोर्ट भी सख्त है।

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