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बिजनेस

बीटी बैंगन को बांग्लादेश से भारत आने से रोकने का आग्रह

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कोलकाता। सामाजिक कार्यकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने पश्चिम बंगाल सरकार से आग्रह किया है कि वह आनुवांशिक रूप से परिवर्तित बीटी बैंगन (ब्रिंजल) को बांग्लदेश से भारत आने से रोकने के मामले को केंद्र सरकार के सामने उठाए। फोरम अगेंस्ट मोनोपोलिस्टिक अग्रेशन (एफएमए) के प्रतिनिधियों ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल के कृषि मंत्री पूर्णेन्दु बोस से मुलाकात की और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा। इसमें ‘बीटी ब्रिंजल की संभावित तस्करी’ और केंद्र सरकार द्वारा ‘भारत में वर्णसंकर आनुवांशिक रूप से परिवर्तित सरसों’ को बढ़ावा देने पर चिंता जताई गई है।

आनुवांशिकी विज्ञानी और फोरम के सदस्य तुषार चक्रवर्ती ने एक बयान में बताया, “हमने उन्हें (बोस को) पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के तहत काम करने वाली नियामक एजेंसी, जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रेजल कमेटी (जीईएसी) में पारदर्शिता के अभाव और आनुवांशिक रूप से परिवर्तित चीजों की सीमापार से होने वाली तस्करी के बारे में जानकारी दी।”

उन्होंने कहा, “पश्चिम बंगाल से लगे बांग्लादेश में बीटी ब्रिंजल की खेती से ऐसा खतरा पैदा हुआ है।” फोरम की टीम ने बोस से आग्रह किया कि वह पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से कहें कि वह अपने बांग्लादेशी समकक्ष से इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कहें कि बीटी ब्रिंजल सीमापार से भारत नहीं आएगा। बांग्लादेश को बायोसेफ्टी पर कार्टागेना समझौते के तहत इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

आनुवांशिक रूप से परिवर्तित सरसों के मामले में टीम ने कहा, “बंगाल देश में सरसों का सबसे बड़ा उत्पादक भी है और उपभोक्ता भी है। देश में आनुवांशिक रूप से परिवर्तित सरसों के आने से बंगाल सर्वाधिक प्रभावित होगा।” चक्रवर्ती ने कहा कि पश्चिम बंगाल में पहले से ही आनुवांशिक रूप से परिवर्तित फसलों पर रोक की नीति अमल में है। राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि केंद्र सरकार का कोई फैसला इस नीति में अतिक्रमण न कर सके। चक्रवर्ती ने कहा कि राज्य के कृषि मंत्री ने मुद्दे पर चिंता जताते हुए हमारे ज्ञापन को स्वीकार कर लिया।

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बिजनेस

जेट एयरवेज की संपत्तियों की होगी बिक्री

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के आदेश को रद्द करते हुए दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के अनुसार निष्क्रिय जेट एयरवेज के परिसमापन का आदेश दिया। एनसीएलएटी ने पहले कॉरपोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के हिस्से के रूप में जालान कालरॉक कंसोर्टियम (जेकेसी) को एयरलाइन के स्वामित्व के हस्तांतरण को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश जारी करते हुए कहा कि जेकेसी संकल्प का पालन करने में विफल रहा क्योंकि वह 150 करोड़ रुपये देने में विफल रहा, जो श्रमिकों के बकाया और अन्य आवश्यक लागतों के बीच हवाई अड्डे के बकाया को चुकाने के लिए 350 करोड़ रुपये की पहली राशि थी। नवीनतम निर्णय एयरलाइन के खुद को पुनर्जीवित करने के संघर्ष के अंत का प्रतीक है।

NCLT को लगाई फटकार

पीठ की ओर से फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला ने एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ एसबीआई तथा अन्य ऋणदाताओं की याचिका को स्वीकार कर लिया। याचिका में जेकेसी के पक्ष में जेट एयरवेज की समाधान योजना को बरकरार रखने के फैसले का विरोध किया गया है। न्यायालय ने कहा कि विमानन कंपनी का परिसमापन लेनदारों, श्रमिकों और अन्य हितधारकों के हित में है। परिसमापन की प्रक्रिया में कंपनी की संपत्तियों को बेचकर प्राप्त धन से ऋणों का भुगतान किया जाता है। पीठ ने एनसीएलएटी को, उसके फैसले के लिए फटकार भी लगाई।

शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल किया, जो उसे अपने समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामले में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आदेश तथा डिक्री जारी करने का अधिकार देता है। एनसीएलएटी ने बंद हो चुकी विमानन कंपनी की समाधान योजना को 12 मार्च को बरकरार रखा था और इसके स्वामित्व को जेकेसी को हस्तांतरित करने की मंजूरी दी थी। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) और जेसी फ्लावर्स एसेट रिकंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड ने एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ अदालत का रुख किया था।

 

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