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मनोरंजन

केरल फिल्मोत्सव : लिथुआनिया व म्यांमार फोकस देश

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तिरुवनंतपुरम| केरल में 4 से 11 दिसंबर तक चलने वाले 20वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफके) में ‘फोकस देश’ श्रेणी में दो देशों – लिथुआनिया और म्यांमार की फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी। इन दोनों देशों की सात फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा।

यह पहला मौका है जब म्यांमार की फिल्में आईएफएफके में प्रदर्शित होंगी।

लिथुआनिया की जो पांच फिल्में दिखाई जाएंगी, वे बाल्टिक देश लिथुआनिया के अशांत इतिहास की मिश्रित झलक पेश करंेगी। पूर्व संयुक्त राष्ट्र सोवियत संघ के जमाने में ‘सेटेलाइट’ देश के रूप में अपनी अतीत से निकल कर अपनी खुद की पहचान को स्थापित करने की उसकी मौजूदा वास्तविकता इन फिल्मों में दिखेगी।

शीत युद्ध के दौरान की दो फिल्मों – 1966 में निर्मित ‘जौसमाई’ (फीलिंग्स) और 1969 की फिल्म ‘ग्राजौले’ (द ब्यूटी) को सोवियत संघ-लिथुआनिया की फिल्म के रूप में शामिल किया गया है। अन्य फिल्में हैं 2008 की ‘कोलेकसियोनेरे’ (द कॉलेक्टरेस), 2013 की ‘इक्सकुरसांटे’ (द एक्सकरसनिस्ट) और 2015 की ‘लोसेजास’ (द गैम्बलर)।

लिथुआनिया जैसे इतिहास और सत्तावादी शासन वाले म्यांमार की फिल्में आमतौर पर पारिवारिक मनोरंजन के साथ-साथ स्पष्ट तौर पर राजनीतिक दृष्टिकोण को प्रकट करती हंै। इनमें काफी नाटकीयता होने के बावजूद ये आक्रोश पैदा करती हैं। ये दो फिल्में – 2012 की ‘लेट पैन’ (लाल कॉटन सिल्क) और 2015 की ‘सक्सेसर ऑफ मेरिट्स’ म्यांमार के मौजूदा वातावरण में फिल्म उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाली फिल्म हैं।

वर्ष 2011 में सैनिक शासन की समाप्ति के बाद म्यांमार के वातावरण को ‘अनुशासित लोकतंत्र’ की संज्ञा दी गई।

फिल्मों का विवरण :

फीलिंग्स (1966) : यह फिल्म निर्देशक द्वय एलिमानटस ग्रिकियाविसियस तथा अलगिरदास दौसा के संयुक्त प्रयास का नतीजा है। फीलिंग्स मुख्य रूप से द्वितीय विश्व यृद्ध की अंधकारमय पृष्ठभूमि में फैमिली ड्रामा है। विश्व युद्ध जब अपनी समाप्ति की ओर बढ़ रहा था तब उस समय के अराजकता के माहौल में दो भाई एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और आखिकार दोनों भाई अपने को लोहे के पर्दे के विपरीत छोर पर पाते हैं।

द ब्यूटी (1969) : अरूनास जुब्रियुनास के निर्देशन में बनी इस फिल्म में शरारती किन्तु संवेदनशील लड़की की कहानी है। वह अपनी सखियों के बीच सुंदरी चुनी जाती है और वह अपनी सुंदरता के प्रति आश्वस्त हो जाती है। उसकी स्व निर्मित छवि के चकनाचूर हो जाने के बाद वह अपने को संतुलित करने के लिए संघर्ष करती है। यह फिल्म अकेलेपन, प्यार के बारे में सोचने के लिए मजबूर करती है तथा सौंदर्य के सही अर्थ को समझाती है।

द कॉलेक्टरेस (2008) : क्रिस्टीना बौजयेटे की यह फिल्म अनेक पुरस्कार हासिल कर चुकी है। द कॉलेक्टरेस में एक स्पीच थिरेपिस्ट की कहानी है। वह भावनाओं से अशक्त है। वह लंबे समय से दबी अपनी भावनाओं तथा गुस्से पर काबू करने के लिये संघर्ष करती है। यह मूल्यों के प्रति समझ हासिल करने तथा ‘सामान्य’ भावनाओं के प्रभाव को समझने की उसकी कोशिश की कहानी है।

द एक्सरसियनिस्ट (2013) : आड्रियस जुजेनस की फिल्म यात्रा और अन्वेषण की कहानी है जिसमें एक युवा अनाथ लड़की गुलाग जाने वाली ट्रेन से भाग जाती है और अपने देश वापस जाने के लिए 6,000 किलोमीटर की दूरी तय करती है। 1950 के दशक में, स्तालिनवादी दमनकारी शासन में, लिथुआनिया के लाखों लोग सोवियत संघ में गुलाग भेजे गये थे। द एक्सरसियनिस्ट संदेह और क्रूरता का सामना करने के अस्तित्व के लिए एक निर्वासित के हताश संघर्ष की कहानी है।

द गैम्बलर (2013) : इग्नास जॉनीनस द्वारा निर्देशित, द गैम्बलर जुए की लत वाले एक प्रतिभाशाली, दयालु सहायक चिकित्सक के बारे में एक मनोरंजक ड्रामा थ्रिलर है जो अपने कर्जदारों एवं विरोधियों के चंगुल से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करता है और यह प्रयास उसे अंधेरे रास्ते पर ले जाता है। जल्द ही, वह दांव में लगे पैसे की तुलना में कुछ अधिक पाता है।

लेट पान (2012) : मोनोनिमस फिल्म निमार्ता वाइने की पुरस्कार विजेता फिल्म म्यांमार के फिल्म उद्योग में सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में से एक है। यह एक व्यक्ति को रहस्यमय अतीत के बारे में जानकारी होने के बाद उसके जीवन में गहरा मोड़ आने से पहले के निषिद्ध प्यार और मजबूर जुदाई की गाथा हैं। यह एक पिछले समय की कहानी है जो फिल्म की दिषा को बदल देती है। दोषमुक्ति और अपराध के विषयों को बखूबी अंधेरे गहरे रहस्य के साथ पेश किया गया है।

सक्सेसर ऑफ मेरिट्स : श्वे पी कैडोन के निर्देशन में बनी यह फिल्म एक धार्मिक नौसिखिया के पहले चरण की कहानी है। किसी चीज की चाह नहीं रखने वाला एक बच्चा आध्यात्मिक पथ के लिए एक सुखदायी जीवन को छोड़ना नहीं चाहता है। गौतम बुद्ध के परिचित मूल कहानी में बढ़ती उम्र की कहानी और श्रद्धांजलि दोनों जाहिर होता है।

उत्तर प्रदेश

डेकोरेटिव लाइट्स से महाकुंभ बनेगा भव्यता का प्रतीक

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प्रयागराज। महाकुंभ 2025 को दिव्य और भव्य बनाने के लिए योगी सरकार अनेक अभिनव प्रयास कर रही है। इसी क्रम में पूरे मेला क्षेत्र को डेकोरेटिव लाइट्स से सजाया जा रहा है। 8 करोड़ की लागत से उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लि. की ओर से पूरे मेला क्षेत्र में 485 डिजाइनर स्ट्रीट लाइट पोल का जाल बिछाया जा रहा है। संगम जाने वाली हर प्रमुख सड़क पर यह अलौकिक पोल और लाइट श्रद्धालुओं का स्वागत करती नजर आएगी। योगी सरकार का यह प्रयास न केवल श्रद्धालुओं को दिव्य अनुभव देगा, बल्कि भारतीय संस्कृति और आधुनिकता का अद्भुत संगम भी प्रस्तुत करेगा।

प्रमुख मार्गों पर अनूठी रोशनी का जादू

अधीक्षण अभियंता महाकुंभ मनोज गुप्ता ने बताया कि सीएम योगी की।मंशा के अनुरूप महाकुंभ को भव्य रूप देने के लिए विद्युत विभाग बड़े पैमाने पर कार्य कर रहा है। डेकोरेटिव लाइट्स और डिजाइनर पोल्स उसी का हिस्सा है। मेला क्षेत्र में लाल सड़क, काली सड़क, त्रिवेणी सड़क और परेड के सभी मुख्य मार्गों को आकर्षक डेकोरेटिव लाइट्स से रोशन किया जा रहा है। ये लाइट्स भगवान शंकर, गणेश और विष्णु को समर्पित हैं, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और सौंदर्य का अनुभव कराएंगी।

8 करोड़ की भव्य परियोजना

अधिशाषी अभियंता अनूप सिंह ने बताया कि पूरे मेला क्षेत्र में 8 करोड़ से ज्यादा की लागत से 485 डिजाइनर स्ट्रीट लाइट पोल लगाए जा रहे हैं। इस बार टेंपरेरी की बजाय स्थायी पोल्स का निर्माण किया गया है, जो महाकुंभ के बाद भी क्षेत्र की रौनक बनाए रखेंगे। हर पोल को कलश और देवी-देवताओं की आकृतियों से सजाया गया है, जो मेले के वातावरण को सांस्कृतिक वैभव से भर देंगे। 15 दिसंबर तक सभी डेकोरेटिव लाइट्स का कार्य संपन्न कर लिया जाएगा, जिसके बाद रात में मेला क्षेत्र की आभा देखते ही बनेगी।

विद्युत विभाग का अभिनव प्रयास

उन्होंने कहा कि महाकुंभ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के अनुभव को यादगार बनाने के लिए यह विद्युत विभाग की ओर से एक अभूतपूर्व पहल है। आधुनिक तकनीक और सांस्कृतिक प्रतीकों के मेल से यह परियोजना महाकुंभ को विश्वस्तरीय भव्य आयोजन का दर्जा देगी। महाकुंभ के लिए लगाए गए ये डेकोरेटिव पोल्स स्थायी रहेंगे, जिससे क्षेत्र में आने वाले पर्यटक भी लंबे समय तक इस भव्यता का आनंद ले सकेंगे। डेकोरेटिव लाइट्स से सजे इस महाकुंभ में हर श्रद्धालु को आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक गर्व का अनुभव होगा। यह पहल महाकुंभ को भारतीय संस्कृति की भव्यता और आधुनिक विकास का अद्वितीय प्रतीक बनाएगी।

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