नेशनल
शिक्षा की दुनिया में शिक्षण एक बड़ा बाजार : अनुपम मिश्र
नई दिल्ली| शिक्षा की दुनिया में शिक्षण आज एक बड़ा बाजार बन गया है। जैसे बाजार में मुद्रास्फीति आई है ऐसे ही शिक्षा के बाजार में भी यह मुद्रास्फीति आ गई है। पहले संतराम जी बी.ए. से काम चला लेते थे। आज तो पीएचडी का दाम भी घट गया है।
यह बात वरिष्ठ गांधीवादी विचारक और पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने शुक्रवार को यहां कही। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले केंद्रीय शिक्षा संस्थान के 67वें स्थापना दिवस पर आयोजित व्यख्यान दे रहे थे। विषय था ‘शिक्षा : कितना सर्जन, कितना विसर्जन’।
मिश्र ने कहा, “हम सभी शिक्षा के संसार में बाकी संसार की तरह आ रही गिरावट की चिंता कर रहे हैं, उसे अपने-अपने ढंग से संभाल भी रहे हैं। लेकिन आज सब चीजें, सुरीले से सुरीले विचार अंत में बाजार का बाजा बजाने लग जा रहे हैं। शिक्षा के साथ शिक्षण भी एक बड़ा बाजार बन गया है।”
मिश्र ने वहां उपस्थित छात्रों की तरफ इशारा करते हुए कहा, “हम में से कई को इसी परिस्थिति में आगे काम करना है। जो पढ़ाई आज कर रहे हैं, वह आगे-पीछे एक ठीक नौकरी देगी – पर शायद इसी बाजार में। प्राय: साधारण परिवारों से आए हम सबके लिए यह एक जरूरी काम बन जाता है। इसलिए आप सबको एक छोटी-सी सलाह-नौकरी करें जीविका के लिए। लेकिन चाकरी करें बच्चों की। हम अपनी नौकरी में जितना अंश चाकरी का मिलाते जाएंगे, उतना अधिक आनंद आने लगेगा।”
मिश्र ने शिक्षा में नंबर आधारित शैक्षिक योग्यता पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, “यह जो नंबर गेम चल पड़ा है, इसका कोई अंत नहीं है। कृष्ण कुमारजी (एनसीईआरटी के पूर्व अध्यक्ष) ने शायद आज से कोई छह बरस पहले एक सुंदर लेख लिखा था – जीरो सम गेम। इस खेल में किसी को कोई लाभ नहीं हो रहा, लेकिन हमारी एक-दो पीढ़ियों को तो इसमें झोंक ही दिया गया है।”
उन्होंने आगे कहा, “समाज में यदि यह भावना बढ़ती गई कि 90 प्रतिशत से नीचे का कोई अर्थ नहीं तो हर वर्ष हमारी शिक्षण संस्थाओं से निकले इतने सारे, असफल बता दिए गए छात्र कहां जाएंगे। 99 का फेर हमारे बच्चों में अपूर्णता की ग्लानि भरता है। वह उन्हें जताता रहता है कि इससे कम नंबर आने पर तुम न अपने काम के हो, न अपने घर के काम के और न समाज के काम के। फिर वे खुद ऐसा मानने लगते हैं।
उन्होंने कहा, “हर साल ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं जो बताते हैं कि 99 न आ पाने का, अपूर्णता का बोझा कितना भारी हो जाता है कि उस बोझ को उठाकर जीवन जीने के बदले इन कोमल बच्चों को, किशोर छात्रों को अपनी जान दे देना, आत्महत्या करना ज्यादा ठीक लगता है।”
उन्होंने सवाल किया कि इस बीच हमें कहीं कोई रास्ता दिखता है क्या? वह रास्ता विनोबा दिखाते हैं। विनोबा के शब्द तो ठीक याद नहीं। भाव कुछ ऐसे हैं :
“पानी जब बहता है तो वह अपने सामने कोई बड़ा लक्ष्य, बड़ा नारा नहीं रखता कि मुझे तो बस महासागर से ही मिलना है। वह बहता चलता है। सामने छोटा-सा गड्ढा आ जाए तो पहले उसे भरता है। बच गया तो उसे भर कर आगे बढ़ चलता है। छोटे-छोटे ऐसे अनेक गड्ढों को भरते-भरते वह महासागर तक पहुंच जाए तो ठीक। नहीं तो कुछ छोटे गड्ढों को भर कर ही संतोष पा लेता है।”
मिश्र ने कहा कि हमें ऐसी विनम्रता लानी चाहिए। उन्होंने कहा, “यदि ऐसी विनम्रता हमें आ जाए तो शायद हमें महासागर तक पहुंचने की शिक्षा भी मिल जाएगी।”
नेशनल
पीएम मोदी पर लिखी किताब के प्रचार के लिए स्मृति ईरानी चार देशों की यात्रा पर
नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एक नवीनतम पुस्तक ‘मोडायलॉग – कन्वर्सेशन्स फॉर ए विकसित भारत’ के प्रचार के लिए चार देशों की यात्रा पर रवाना हो गई हैं। यह दौरा 20 नवंबर को शुरू हुआ और इसका उद्देश्य ईरानी को मध्य पूर्व, ओमान और ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से जोड़ना है।
स्मृति ईरानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि,
एक बार फिर से आगे बढ़ते हुए, 4 देशों की रोमांचक पुस्तक यात्रा पर निकल पड़े हैं! 🇮🇳 जीवंत भारतीय प्रवासियों से जुड़ने, भारत की अपार संभावनाओं का जश्न मनाने और सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए उत्सुक हूँ। यह यात्रा सिर्फ़ एक किताब के बारे में नहीं है; यह कहानी कहने, विरासत और आकांक्षाओं के बारे में है जो हमें एकजुट करती हैं। बने रहिए क्योंकि मैं आप सभी के साथ इस अविश्वसनीय साहसिक यात्रा की झलकियाँ साझा करता हूँ
कुवैत, दुबई, ओमान और ब्रिटेन जाएंगी स्मृति ईरानी
डॉ. अश्विन फर्नांडिस द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन दर्शन पर प्रकाश डालती है तथा विकसित भारत के लिए उनके दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करती है। कार्यक्रम के अनुसार ईरानी अपनी यात्रा के पहले चरण में कुवैत, दुबई, फिर ओमान और अंत में ब्रिटेन जाएंगी।
On the move again, embarking on an exciting 4 nation book tour! 🇮🇳Looking forward to connecting with the vibrant Indian diaspora, celebrating India’s immense potential, and engaging in meaningful conversations. This journey is not just about a book; it’s about storytelling,… pic.twitter.com/dovNotUtOf
— Smriti Z Irani (@smritiirani) November 20, 2024
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