ऑफ़बीट
AKK तफ्तीश: ‘नो मीन्स नो’ इस सच को क्यों नजरअंदाज करता है समाज और कानून
हालिया एक भारतीय कोर्ट ने रेप के आरोप में दोषी पाए गए तीन आरोपियों की सजा को सस्पेंड कर उन्हें जमानत दे दी
‘न देख मेरा तन
मन पर गौर कर तू
न रख कपड़ों पर नजर मेरे
खुद की आँखें नीचे रख तू
किसी बेटी की इज्जत उतारने से पहले
बस एक बार अपने घर की माँ,बहन,बेटी का ख्याल रख तू’- (चारू खरे)
‘लड़की’ यानी की वो शब्द जिनके मायने ज़िन्दगी के विभिन्न पड़ावों अनुरूप बदलते रहते है। कभी माँ, कभी बहन तो कभी बेटी और बहु न जानें और कितने स्वरुप है सिर्फ इस एक शब्द के। अगर आप इस शब्द को किसी तराजु में भी तोलेंगें तो कभी माप नहीं पाएंगें क्योंकि दुनिया की बड़ी सी बड़ी कीमत भी इस शब्द का कर्ज अदा नहीं कर सकती।
प्राचीनकाल से लेकर आज तक इस देश की महिलाओं ने आजादी की लड़ाई की तरह अपने अधिकारों की स्वतंत्रता को लेकर कई लड़ाईयां लड़ी है और उसमें सफलता भी हासिल की है।
समय के साथ-साथ महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया लोग बदले, पुरानी रीतियाँ, कट्टर विचारधाराएं, लिंग भेद, धर्म के नाम पर हो रहे अपराध सब में धीरे-धीरे कमी आना शुरू हो गई, और अब आती है वो २१वीं शताब्दी जिसको हम जी रहे है।
आज महिलाएं अपनी स्वतंत्रता को खुलकर महसूस कर रही है। कहते है ‘साहित्य समाज का दर्पण है’ और इसी दर्पण में आज हम अपने देश में महिलाओं की बदलती स्थिति को बखूबी देख सकते है।
समाज बदला साहित्य बदला लोगों के रहन-सहन का स्तर भी बदला लेकिन अब सवाल ये है कि इतना सबकुछ बदलने के बावजूद भी लोगों की ‘कमजोर मानसिकता’ क्यों नहीं बदली?
जी हां हम उन लोगों की मानसिकता की बात कर रहे है जो आज भी कहीं न कहीं इन विचारधारों को अपने दिलोंदिमाग में जिन्दा रखते है कि, अगर लड़की तलाकशुदा है इसका मतलब वह बदचलन है, अगर लड़की देर रात घर लौटती है तो इसका मतलब वह अपने बॉयफ्रेंड(पुरुष मित्र) के साथ घूम कर आ रही है, अगर लड़की छोटे कपडें पहनती है इसका मतलब वह लड़कों को खुद के साथ रेप करने की इजाजत दे रही है।
न जानें ऐसी ही और कितनी तरह की सोचें है, जो आज हमारे समाज को ही नहीं अपितु पूरे देश की पवित्रता को दीमक की तरह खा रही है। कुछ लोगों की बुरी मानसिकता कहती है कि, लड़कियों के छोटे कपडें हमारे देश की संस्कृति को खत्म कर रहे है क्योंकि लडकियां आज पश्चिमी सभ्यता के पहनावे को अपना रही है पर सच तो ये है कि ऐसे लोग लड़कियों के कपड़ों को जज करने में इतना मशगूल हो जाते है की इन्हें पता ही नहीं चल पाता इनकी सोच कब और कैसे इतनी गंदी और छोटी हो गई है।
गुस्सा तो तब बढ़ जाता है जब ऐसी मानसिकता वाले लोग फिजूल से बहाने देकर लड़कियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करते है और हमारे देश का कानून उनके बहानों को सच का नाम देकर बरी कर देता है।
हां सुना था मैंने, ‘कानून अंधा होता है, पर इस केस में आए फैसले ने वाकई साबित कर दिया कि अंधे कानून ने अब तक अपनी आँखों से काली पट्टी उतारी नहीं है’ अगर उतारी होती तो शायद इन्हें सच दिखता।
दरअसल, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय की दो जजों वाली बेंच ने जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के तीन छात्रों को ज़मानत दे दी। इन छात्रों को मार्च में निचली अदालत ने अपनी सहयोगी छात्रा को ब्लैकमेल करने और उसके साथ गैंगरेप करने का दोषी पाया था।
हार्दिक सिकरी और उनके दोस्त करन छाबड़ा को 20 साल की सज़ा सुनाई गई थी, जबकि उनके दोस्त विकास गर्ग को सात साल की सज़ा सुनाई गई थी। इन तीनों को अन्य अपराधों का भी दोषी पाया गया था। इसके लिए इन्हें कई छोटी सज़ाएं सुनाई गई थीं और सभी सज़ा एकसाथ चलनी थीं।
कोर्ट के कागज़ात के मुताबिक नवंबर 2013 में लड़की और सिकरी के बीच सहमति से रिश्ता बना था। यह रिश्ता महीने भर रहा और फिर उनका ब्रेकअप हो गया। मगर अगले 18 महीनों तक सिकरी ने लड़की के नग्न फोटो को इस्तेमाल करके उसे ब्लैकमेल किया और रेप किया। यही नहीं, आरोपियों ने लड़की को दो अन्य दोस्तों के साथ सेक्स करने के लिए भी मजबूर किया और एक मौके पर सिकरी और छाबड़ा ने उसका गैंगरेप किया।
बता दें कि, रेप के इन दोषियों ने हाई कोर्ट में अपील की और सुनवाई तक ज़मानत की मांग भी की जिसपर कोर्ट ने अपनी सहमति जता दी है।
इस पूरे मामले में रेप के दोषियों को बरी करने से ज्यादा अदालत के उन 12 पन्नों के आदेशों पर क्रोध आता है जिसमें पढ़े-लिखे जजों द्वारा ऐसा आदेश दिया गया है।
आदेश के कुछ अंश-
- विक्टिम की गवाही से उसके दोस्तों और जान-पहचान वालों के साथ कैज़ुअल रिलेशनशिप और यौन समागम में एडवेंचर और एक्सपेरिमेंट की एक दूसरी ही कहानी पता चलती है।
- लड़की ने “धमकाकर मजबूर करने और ब्लैकमेल करने के जो आरोप लगाए हैं, वे अपराध को काफी क्रूर बनाते हैं। मगर जब उसके बयान को ध्यान से जांचा जाता है तो इससे एक और निष्कर्ष निकलता है। उसके लापरवाह रवैये और दृश्यरतिक दिमाग़ ने इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को जन्म दिया।
- उसने जो विवरण दिया है, उसके मुताबिक वैसी किसी तरह की हिंसा नहीं हुई, जैसी कि इस तरह के मामलों में देखने को मिलती है।”
- अपने आदेश में जस्टिस महेश ग्रोवर और जस्टिस राज शेखर अत्री ने कहा कि उनका इऱादा ‘विक्टिम की चिंताओं, कानून और समाज की मांगों और न्याय के सुधारात्मक व पुनर्प्रतिष्ठा वाले पहलू के बीच संतुलन’ बनाने का है।
- उन्होंने लिखा है, ‘अगर इन युवाओं को लंबे समय तक जेल में रखकर उन्हें शिक्षा हासिल करने से वंचित रखा जाता है और सामान्य इंसान के तौर पर समाज का हिस्सा बनने से रोका जाता है तो यह मज़ाक होगा।’
- ज़ाहिर है, कोर्ट के इस आदेश से भारत में विरोध हो रहा है। बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की और विक्टिम के दोस्तों ने इस आदेश की निंदा करते हुए org.change याचिका शुरू की है।
इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 के सेक्शन 155 (4) के तहत रेप के पीड़ित पर मुकदमा चला दिया जाता था। अगर ‘विक्टिम को अनैतिक चरित्र वाला’ साबित कर दिया जाता था तो आरोपी अक्सर छूट जाते थे।
1980 में विधि आयोग ने इस पुराने कानून में बदलाव लाऩे का सुझाव दिया। 2000 में संशोधन हुआ और पुराने कानून को ख़त्म कर दिया गया यह कहते हुए कि इस कानून से पीड़ित की इज्जत और आत्मसम्मान को चोट पहुंचती है।
मगर इसके दशकों बाद, आज भी विक्टिम्स को न सिर्फ शर्मिंदा किया जा रहा है बल्कि ऐसा साबित किया जा रहा है जैसे मानो वो ‘रेप के लिए खुद जिम्मेदार हो’
कानून के इस फैसले पर और लोगों की ऐसी दुलर्भ मानसिकता पर आज पिंक मूवी का एक डायलाग याद आता है, जिसमें वकील का किरदार निभाने वाले अमिताभ बच्चन कहते है ‘नो मीन्स नो’ यानी लड़कों को यह समझना होगा कि ‘ना का मतलब ना ही होता है, फिर चाहे उसे बोलने वाली लड़की कोई परिचित हो, फ्रेंड हो गर्लफ्रेंड हो कोई सेक्स वर्कर या फिर आपकी खुद की पत्नी ही क्यों न हो जब कोई लड़की ‘न’ कहे तो आपको वहीँ रुक जाना है।
ऑफ़बीट
मध्य प्रदेश के शहडोल में अनोखे बच्चों ने लिया जन्म, देखकर उड़े लोगों के होश
शहडोल। मध्य प्रदेश के शहडोल से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां ऐसे बच्चों ने जन्म लिया है, जिनके 2 शरीर हैं लेकिन दिल एक ही है। बच्चों के जन्म के बाद से लोग हैरान भी हैं और इस बात की चिंता जता रहे हैं कि आने वाले समय में ये बच्चे कैसे सर्वाइव करेंगे।
क्या है पूरा मामला?
एमपी के शहडोल मेडिकल कालेज में 2 जिस्म लेकिन एक दिल वाले बच्चे पैदा हुए हैं। इन्हें जन्म देने वाली मां समेत परिवार के लोग परेशान हैं कि आने वाले समय में इन बच्चों का क्या भविष्य होगा। उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा कि शरीर से एक दूसरे से जुड़े इन बच्चों का वह कैसे पालन-पोषण करेंगे।
परिजनों को बच्चों के स्वास्थ्य की भी चिंता है। बच्चों को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है। मेडिकल कालेज प्रबंधन द्वारा इन्हें रीवा या जबलपुर भेजने की तैयारी की जा रही है, जिससे इनका उचित उपचार हो सके। ऐसे बच्चों को सीमंस ट्विन्स भी कहा जाता है।
जानकारी के अनुसार, अनूपपुर जिले के कोतमा निवासी वर्षा जोगी और पति रवि जोगी को ये संतान हुई है। प्रेग्नेंसी के दर्द के बाद परिजनों द्वारा महिला को मेडिकल कालेज लाया गया था। शाम करीब 6 बजे प्रसूता का सीजर किया गया, जिसमें एक ऐसे जुडवा बच्चों ने जन्म लिया, जिनके जिस्म दो अलग अलग थे लेकिन दिल एक ही है, जो जुड़ा हुआ है।
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