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‘रामायण’ शुरु होते ही लोग जलाने लगते थे अगरबत्ती, जाने टीवी के ‘राम’ के दिलचस्प किस्से

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‘रामायण’ शुरु होते ही लोग जलाने लगते थे अगरबत्ती, जाने टीवी के ‘राम’ के दिलचस्प किस्से

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मुंबई। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। श्री राम के साक्षात दर्शन तो नहीं हुए पर अगर उनकी छवि की कल्पना करें तो मन में जो आकृति बनती है, वह है टीवी के राम अरुण गोविल की।

‘रामायण’ शुरु होते ही लोग जलाने लगते थे अगरबत्ती, जाने टीवी के ‘राम’ के दिलचस्प किस्से

भले ही टीवी के फेमस शो ‘रामायण’ को करीब 31 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी लोगों के ज़ेहन में अरुण गोविल भगवान राम के रुप में बसे हुए हैं। ये उनके सशक्त अभिनय का असर ही था कि लोग उन्हें असल में भगवान राम मानने लगे थे। वे जहां जाते थे लोग उनके पैर छूने लगते थे। टीवी पर ‘रामायण’  सीरियल देखते समय लोग अगरबत्ती तक जलाने लगे थे।

एक इंटरव्यू के दौरान अरुण ने बताया कि आज भी कई जगहों पर लोग उन्हें देख कर हाथ जोड़ने लगते हैं। हालांकि अरुण रामायण के अलावा भी कई टीवी सीरियल और फिल्मों में काम कर चुके हैं पर श्री राम के रुप में जैसे वह लोगों के दिलों-दिमाग में चस्पा हो चुके हों।

इसी का असर था कि उन्हें फिल्मों में भी इसी तरह के रोल ऑफर होने लगे थे, जिसकी वजह से उन्होंने एक्टिंग से दूरी बना ली थी। जिसके बाद उन्होंने ‘रामायण’ में लक्ष्मण का रोल करने वाले सुनील लाहिड़ी के साथ मिलकर अपनी प्रोडक्शन कंपनी शुरू की।

टीवी के ‘राम’ यानी अरुण गोविल का जन्म 12 जनवरी, 1958 को राम नगर (मेरठ) उत्तर प्रदेश में हुआ था। पढ़ाई के दौरान उन्होनें नाटकों में अभिनय भी किया। अरुण कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे उनकी पहचान बने। इसी लिए वे बिजनेस करने के उद्देश्य से मुंबई आ गए और बाद में एक्टिंग का रास्ता चुन लिया।

मुम्बई में उन्हें उनका पहला ब्रेक मिला 1977 में ताराचंद बडजात्या की फिल्म ‘पहेली’ से। उसके बाद उन्होंने ‘सावन को आने दो’ (1979), ‘सांच को आंच नहीं’ (1979), ‘इतनी सी बात’ (1981), ‘हिम्मतवाला’ (1983), ‘दिलवाला’ (1986), ‘हथकड़ी’ (1995) और ‘लव कुश’ (1997) जैसी कई बॉलीवुड फिल्मों में अहम भूमिका निभाई है।

भले ही अरुण को लोकप्रियता टीवी के “रामायण” धारावाहिक से मिली हो पर रामानंद सागर ने उन्हें पहला रोल सीरियल ‘विक्रम और बेताल’ में राजा विक्रमादित्य का दिया था। इसकी अपार सफलता के बाद 1987 में ‘रामायण’ में भगवान राम का रोल अरुण ने निभाया।

इस रोल से वे इतने पॉपुलर हुए कि आज भी लोग उन्हें टीवी के राम कहकर ही बुलाते हैं। वैसे, अरुण ने ‘लव कुश’ (1989), ‘कैसे कहूं’ (2001), ‘बुद्धा’ (1996), ‘अपराजिता’, ‘वो हुए न हमारे’ और ‘प्यार की कश्ती में’ जैसे कई पॉपुलर टीवी सीरियल्स में काम किया है।

उन्हें रामायण के बाद कभी कोई अच्छा काम ही नहीं मिला। लोगों ने राम से ज्यादा कुछ भी सोचने से इनकार कर दिया। इसी का परिणाम था कि उनकी एक्टिंग का करियर ही समाप्त हो गया। अब वे न तो टीवी पर और न ही फिल्मों में नजर आते हैं। आखिरी बार उन्हें भोजपुरी फिल्म ‘बाबुल प्यारे’ में देखा गया है।

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असित मोदी के साथ झगड़े पर आया दिलीप जोशी का बयान, कही ये बात

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मुंबई। ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में जेठालाल गड़ा का किरदार निभाने वाले दिलीप जोशी को लेकर कई मीडिया रिपोर्ट्स छापी गईं, जिनमें दावा किया गया कि शो के सेट पर उनके और असित मोदी के बीच झगड़ा हुआ। फिलहाल अब दिलीप जोशी ने इस पूरे मामले पर चुप्पी तोड़ी है और खुलासा करते हुए बताया है कि इस पूरे मामले की सच्चाई क्या है। अपने 16 साल के जुड़ाव को लेकर भी दिलीप जोशी ने बात की और साफ कर दिया कि वो शो छोड़कर कहीं नहीं जा रहे और ऐसे में अफवाहों पर ध्यान न दिया जाए।

अफवाहों पर बोले दिलीप जोशी

दिलीप जोशी ने अपना बयान जारी करते हुए कहा, ‘मैं बस इन सभी अफवाहों के बारे में सब कुछ साफ करना चाहता हूं। मेरे और असित भाई के बारे में मीडिया में कुछ ऐसी कहानियां हैं जो पूरी तरह से झूठी हैं और ऐसी बातें सुनकर मुझे वाकई दुख होता है। ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ एक ऐसा शो है जो मेरे और लाखों प्रशंसकों के लिए बहुत मायने रखता है और जब लोग बेबुनियाद अफवाहें फैलाते हैं तो इससे न केवल हमें बल्कि हमारे वफादार दर्शकों को भी दुख होता है। किसी ऐसी चीज के बारे में नकारात्मकता फैलते देखना निराशाजनक है जिसने इतने सालों तक इतने लोगों को इतनी खुशी दी है। हर बार जब ऐसी अफवाहें सामने आती हैं तो ऐसा लगता है कि हम लगातार यह समझा रहे हैं कि वे पूरी तरह से झूठ हैं। यह थका देने वाला और निराशाजनक है क्योंकि यह सिर्फ हमारे बारे में नहीं है – यह उन सभी प्रशंसकों के बारे में है जो शो को पसंद करते हैं और ऐसी बातें पढ़कर परेशान हो जाते हैं।’

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