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उत्तराखंड

उत्तराखण्ड श्रद्धा, विश्वास और आस्था की भूमि हैः सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत

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देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड श्रद्धा, विश्वास और आस्था की भूमि है। भारतीय संस्कृति की प्रतीक गंगा का उद्भव यही से हुआ है। हमारे संत महात्मा हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संवाहक है। हमारे संतो ने सदैव ही समाज को सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है, चाहे वह पर्यावरण संरक्षण की बात हो या वृक्षारोपण अथवा नदियों के पुनर्जीवीकरण हो सभी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संतो ने समाज का मार्गदर्शन किया है और समाज को प्रेरणा प्रदान की है।

शुक्रवार को परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में संत नर्मदानंद बापजी की ओर से सम्पादित की जा रही 10,300 किमी. लम्बी द्वादश ज्योतिर्लिंग की यात्रा का उत्तराखण्ड में स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने संत नर्मदानंद की ओर से राष्ट्र व समाज हित में की जा रही यात्रा को समाज व मानव कल्याण के लिए कल्याणकारी बताया। उन्होंने कहा कि समाज कल्याण के लिए हमारे संतो के प्रयास सदैव सार्थक हुए हैं। पर्यावरण संरक्षण एवं गंगा की शुद्धता के लिए किए जा रहे संत नर्मदानंद के प्रयास फलीभूत होंगे, इसकी उन्होंने कामना की।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि पर्यावरण के प्रति भारत समय पर जागा है। इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों से एक संदेश भी गया है। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि गंगा गोमुख से गंगासागर तक निर्मल हो, गंगा ही नही देश की हर नदी स्वच्छ हो इसके लिये देश में जागरूकता का व्यापक प्रसार भी हुआ है।

संत नर्मदानंद ने कहा कि उनके द्वारा जल, जीवन व जंगल की रक्षा को लेकर यह यात्रा की जा रही है। देवभूमि उत्तराखण्ड भगवान केदार और गंगा का उद्गम क्षेत्र है। इस पावन क्षेत्र से उन्होंने यात्रा की शुरूआत की है। उन्होंने उत्तराखण्ड में पर्यावरण संरक्षण और गंगा स्वच्छता के लिये मुख्यमंत्री के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि उनकी यह कामना है कि गंगा की पवित्रता व जल की शुद्धता जितनी हरिद्वार में है वह आगे भी हमें प्राप्त होती रहे। उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता समाज व प्रकृति के लिए हितकर है।

उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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