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उत्तराखंड

पहाड़ में सूख रहे पानी के स्रोत

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प्रदेश के पर्वतीय जनपद, पेयजल के लिए हाहाकार, कम वर्षा, पहाड़ों में कम बर्फ गिरना, वर्षा जल का संरक्षण न होना, जलस्रोतों पर संकट

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प्रदेश के पर्वतीय जनपद, पेयजल के लिए हाहाकार, कम वर्षा, पहाड़ों में कम बर्फ गिरना, वर्षा जल का संरक्षण न होना, जलस्रोतों पर संकट

Drinking water problem

सुनील परमार

देहरादून। इस बार गरमी में प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में पेयजल के लिए हाहाकार है। कम वर्षा, पहाड़ों में कम बर्फ गिरना, वर्षा जल का संरक्षण न होने से जलस्रोतों पर संकट मंडरा रहा है तो वनों में लगी आग भी इन स्रोतों के सूखने का एक अहम कारण बना हुआ है। हाल में जंगलों में लगी आग से जो राख बनी उसने प्राकृतिक स्रोतों को रोक दिया है। इसके अलावा गांवों में पानी के संरक्षण को लेकर जागरूकता का अभाव होने से भी पानी का संकट बना हुआ है।

रुद्रप्रयाग व उत्तरकाशी में हाहाकार

हाल में रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी के ग्रामीणो ंने सीएम हरीश रावत से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान ग्रामीणों ने पेयजल समस्या के बारे में जानकारी दी। ग्रामीणों के अनुसार उनके इलाके के लगभग 60 प्रतिशत प्राकृतिक स्रोत सूख चुके हैं। रुद्रप्रयाग में भारी जलसंकट है। यहां के भरदार पट्टी के सेमल्टा, डूंगरी, काली, काडवू आदि गांवों में लोग पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। हिमालयन परिवर्तन जड़ी-बूटी एग्रो संस्थान के संयोजक द्वारिका सेमवाल के अनुसार उत्तरकाशी में प्राकृतिक जलस्रोत सूख गये हैं और नौलों में से भी अधिकांश में पानी नहीं आ रहा है। इस कारण ग्रामीणों को दूर-दूर तक जाना पड़ रहा है।

एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में 75000 हेक्टेयर भूमि पर की गई खेती सूख गई है। हालांकि राजय सरकार ने यहां सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित कर दिया है। इसके बावजूद यहां ग्रामीणों की समस्या का समाधान होने का कोई आसार नजर नहीं आ रहा है। एक गैर सरकारी संगठन हेस्को के संयोजक अनिल जोशी का कहना है कि वर्षा में कमी आई है इसके अलावा अधिक तापमान होने व वर्षा जल का संरक्षण न करने पर पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं। उनके अनुसार पानी को लेकर लोगों में जागरूकता का भी अभाव है।

वनों की राख से भी स्रोत प्रभावित

केंद्रीय भूजल बोर्ड के वैज्ञानिक गणेश बड़थ्वाल के अनुसार हाल में वनों में लगी आग के कारण ढेरों राख प्राकृतिक स्रोतों पर जम गई और पानी के मुहानों को इस राख ने बंद कर दिया है। इस कारण भी पेयजल स्रोतों में पानी की दिक्कत हो रही है। वाडिया के वैज्ञानिक डा. डीपी डोभाल का कहना है कि गत वर्ष पहाड़ों में कम बर्फबारी हुई। इसका प्रभाव यह रहा कि नदियों में कम पानी आ रहा है और भूजल रिचार्ज भी नहीं हो रहा है। इस संबंध में ग्रामीण विकास विभाग की सचिव मनीषा पंवार ने कहा कि सरकार प्रदेश में तीन हजार तालाब बनाने जा रही है। इसके लिए जिलाधीशों के माध्यम से एक करोड़ रूपये दिये जा रहे हैं। इस राशि से कम्युनिटी तालाब बनाए जाएंगे।

 

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उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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