उत्तराखंड
बिना संसाधनों के कैसे बुझेगी जंगलों की आग?
आग से स्वाहा हुआ जंगली जीव जन्तुओं का जीवन
पौड़ी। गर्मियां आते ही देवभूमि उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है। प्रदेश के सबसे बड़े 15 विकास खंडों वाले जनपद पौड़ी का शायद ही कोई हिस्सा ऐसा होगा जहां आग ने तांडव न मचाया हो। हालांकि जंगलों में लगी भीषण आग को देखते हुए एसडीआरएफ और पुलिस बलों को आग बुझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। लेकिन संसाधनों की कमी के चलते उनके प्रयास भी नाकाफी ही साबित हो रहे है। जनपद पौड़ी के जंगलों में लगी आग से एक ओर जहां 2 लोगों की झुलस कर मौत हो गई है वहीं दूसरी ओर एक दर्जन से अधिक जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे है। जनपद पौड़ी के जंगलों में इन दिनों लगी भीषण आग ने तांडव मचाया हुआ है। जनपद पौड़ी के अंतर्गत कार्बेट पार्क, कालागढ़ टाईगर रिजर्व, लैंसडाउन डिवीजन के साथ ही गढ़वाल वन प्रभाग और राजाजी टाईगर रिजर्व के जंगल धू-धू कर जल रहे है। जनपद पौड़ी में सरकारी आंकड़ों के अनुसार जंगलों में लगी आग की घटनाओं के कारण कई हेक्टेअर जंगल जल कर खाक हो गए हैं।
जंगलों की आग किसी दैवीय आपदा से कम नहीं
भीषण गर्मी में जल रहे जंगलों से एक ओर जहां करोड़ों की वन सम्पदा जलकर खाक हो गई वहीं दूसरी ओर आग पर काबू पाने के दशकों पुराने संसाधनों की पोल भी खुल गई है। जनपद पौड़ी के जंगलों में लगी भीषण आग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पर काबू पाने में पूरी तरह से नाकाम रहने के बाद अब एनडीआरएफ के जवानों के साथ ही पुलिसकर्मियों को भी लगा दिया गया है जो भीषण गर्मी में जंगलों में आग बुझाने में जुटे है। उत्तराखंड के 13 जिलों में धधक रही जंगलों की आग ने इको सिस्टम के अहम घटकों को जला कर राख कर दिया है। इस वक्त तीतर, बटेर, काली मुर्गी, लार्क का ब्रीडिंग सीजन है। जंगलों की आग में इनके अंडे, बच्चे जल कर खाक हो गए। साथ ही सांप, गिरगिट, मेंढक, लाला चींटी समेत अन्य छोटे जीव जंतुओं को भी नुकसान पहुंचा है। हजारों की संख्या में जीव जन्तुओं के वास स्थल खत्म हो गए। वन्य जीव आरक्षित क्षेत्रों में लगी आग से सूअर, काकड़, गुलदार भी स्वाहा हो गए।
यह तय है कि मानवों से ज्यादा वन्य जीवों को क्षति पहुंची है। अल्मोड़ा, नैनीताल, पिथौरागढ़, बागेश्वर आदि जिलों में आग की स्थिति देखकर लौटी भारतीय वन्य जीव संस्थान के विज्ञानियों की टीम को वन्य जीवों के हालात भयावह मिले हैं। विज्ञानियों का कहना है कि जमीन पर अंडे देने वाले पक्षियों का यह ब्रीडिंग सीजन है। उनके घोंसले जमीन पर होते हैं। आग से उनके बच्चे और अंडे जल गऐ। इसी तरह सांप, मेंढक और दूसरे रेप्टाइल्स भी जमीन पर रहते हैं, इनके वास स्थल भी खाक हो गए हैं।
इको सिस्टम के महत्वपूर्ण घटक कहे जाने वाले अन्य छोटे कीड़े-मकोड़े, चींटियों की प्रजातियां समेत अन्य जंतु भी जले हैं। पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों को भी नुकसान हुआ। पेड़ों पर इनके घोंसले जल गए। साथ ही धुएं की वजह से बच्चे भी मर गए हैं। आग बुझाने वाली टीमों को आग में घिर जाने के कारण गुलदार, सूअर, काकड़ भी मरे हुए मिले। जंगलों में लगातार धधक रही आग को मौसम की बेरुखी भी विकराल बना रही है। घरों के पास तक पहुंची आग से लोगों में दहशत बनी हुई है। इस सीजन में अब तक आग की 200 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं। पहाड़ में धधक रहे जंगलों में आग बुझाने के लिए सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को भी तैनात कर लिया है। रुद्रप्रयाग में सेना ने हाईवे के किनारे लगी आग को बुझाया। अब तक राज्य में 1890.79 हेक्टेयर जंगल जल चुका है। वहीं, एक अधिकारी का कहना है कि जंगल में फैली आग किसी दैवीय आपदा से कम नहीं है।
उत्तराखंड
शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद
उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।
बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.
उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।
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