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10 साल पहले दिखाई गईं गंगा की ये तस्वीरें आज भी डराती हैं

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भारत में हर साल लाखों की संख्या में लोग गंगा स्नान करते हैं, इसके अलावा किसी मांगलिक कार्य व धार्मिक समारोह में गंगाजल का प्रयोग सबसे अहम माना गया है। पुराणों में यह बताया गया है कि गंगाजल के मात्र सेवन से ही मनुष्य की सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं। लेकिन चीन के मीडिया वेबसाइट पर दिखाई जा रही गंगा कि कुछ तस्वीरें आपको गंगाजल का सेवन करने से पहले एक बार सोचने को ज़रूर मजबूर करेंगी।
 
बनारस में गंगा के जल प्रवाह में खुलेआम बह रहे शव व जानवरों के कंकाल हमें डराते भी हैं और यह सोचने पर मजबूर भी करते हैं कि, जहां एकतरफ सरकार नमामि गंगे और नदियों की सफाई पर बड़ी-बड़ी डींगे हांकने से थक नहीं रही है वहीं दूसरी ओर गंगा का यह काला सच लोगों से बे-खबर है। चाइनीज़ बेवसाइट bbs.tianya.cn/m/post-worldlook-193345-1.shtml पर दिखाई जा रही ये तस्वीरें भले ही वर्ष 2008 की हों, लेकिन आज भी बनारस की गंगा के जलप्रवाह में ये नज़ारे आम हैं। 

गंगा नें तैरते अधजले शव। ( फोटो- सभार bbs.tianya.cn )

 
बनारस के रहने वाले सुरेंद्र बहादुर सिंह (निडर) के मुताबिक गंगा में तैरती हुई लाशें और मरे हुए जानवरों का देखा जाना कोई नई बात नहीं है। सुरेंद्र बताते हैं,” बनारस में इलेक्ट्रॉनिक शव दाह की व्यवस्था है , लेकिन कई बार दाह संस्कार न करवाकर हिंदू रीति रिवाज़ों के अनुसार मृत शरीर का गंगा में विसर्जन कर दिया जाता है। ये शरीर कुछ समय बाद फूल जाता है और गंगा की ऊपरी धारा में आकर तैरने लगता है।”  वो आगे बताते हैं कि कई लोग इलेक्ट्रॉनिक शव दाह का खर्च नहीं उठा पाते हैं इसलिए वे मृत शरीर को गंगा में ऐसे ही प्रवाह कर देते हैं। 
 
वर्ष 2008 से आज तक इस स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। वर्ष 2015 व 2017 में गंगा स्नान के लिए आए लोगों को बनारस के हरिश्‍चंद्र घाट, सेनिया घाट , मणिकर्णिका घाट और शास्त्री घाट पर तैरते नर कंकाल और जानवरों के शव (कार्कस) दिखाई दिए थे। इसके अलावा गंगा में सीवेज, प्लास्टिक की थैली और बोतलें, औद्योगिक अपशिष्ट, मानव कचरे, टैनरीज़ों से खारिज किए गए पदार्थ, कंस्ट्रक्शन कचरा, आंशिक रूप से अंतिम संस्कार वाले अधजले हुए शव, फूलों की हार, मानव अवशेष और साड़ी कारखानों से निकलने वाले कैमिकल भी मिलना आम बात है। 

यू ही फेंक दिए जाते हैं जानवरों के कार्कस । ( फोटो- सभार bbs.tianya.cn )

गंगा की गंदगी को साफ रखने के लिए सरकार ने कई योजना बनाई और अरबों रुपए खर्च किए। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए हरिद्वार और उन्नाव के बीच गंगा नदी के तट से 100 मीटर के दायरे को नो डेवलपमेंट ज़ोन (ग़ैर-निर्माण क्षेत्र) घोषित किया और नदी तट से 500 मीटर के दायरे में कचरा डालने पर जुर्माना लगाने जैसे कई निर्देश जारी किए पर इसका असर कहीं भी देखने को नहीं मिला। वर्ष 2017 में नगर निगम वाराणसी ने गंगा की सफाई के लिए कांफीडेंट इंजीनियरिंग इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी से हाथ मिलाया। इस कंपनी व्दारा बनाई गई घाटों की सफाई करने वाली ट्रैस स्कीमर मशीन का इलाहाबाद, कानपुर, मथुरा, वृंदावन व गढ़मुक्तेश्वर में अच्छा काम देखकर इसे बनारस में लगाने की योजना बनी। यह मशीन नदी में तैरते कूड़े, पॉलीथीन व अन्य बायोडिग्रेडेबल वेस्ट को अपने अंदर खींचकर नदी को साफ रखती है। यह मशीन हर दिन चार से पांच कुंतल कचरा खींचने की क्षमता रखती है, लेकिन अभी इस मशीन को लगाने का काम नहीं शुरू हो पाया है।

खुले आम नदी में तैरते शव बढ़ा रहे बीमारियां। ( फोटो- सभार bbs.tianya.cn )

 
मोदी सरकार ने गंगा की सफाई के लिए 12 हज़ार करोड़ रुपए का बजट देने की बात कही थी , जिसमें वर्ष 2017 तक केवल 5,378 करोड़ रुपए ही बजट में दिए गए। दिए गए बजट में भी मंत्रालय ने अभी तक सिर्फ 1,836 करोड़ रूपए खर्च किए हैं। नमामि गंगे योजना की प्रभारी मंत्री उमा भारती ने पिछले वर्ष एक रैली को संबोधित करते हुए यह कहा था कि ” नमामि योजना का पैसा लेप्स नहीं होगा, इसके लिए मंत्रालय को बजट खर्च करने की कोई जल्दी नहीं है। अभी पैसे की बर्बादी से अच्छा है कि यह धन सरकारी खजाने में पड़ा रहे।” 
 

चाइना में क्यूं दिखाई जा रहीं हैं ये भारतीय तस्वीरें 

गंगा में खुलेआम तैर रही इन लाशों को भले ही सरकार न देख पा रही हो, लेकिन इन तस्वीरों के ज़रिए चाइना में कई मीडिया बेवसाइट लोगों को नदियों में लापरवाही से कचरा फेकने की बुरी आदतों का नतीजा बताने और पानी में मिलकर कचरे से फैलने वाली जानलेवा बीमारियों के बारे में प्रभावी ढंग से समझा पा रही हैं।

गंगाजल का सेवन पड़ सकता भारी

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा का जल है। गंगा में तैरती हुई लाशें और बायोडिग्रेडेबल वेस्ट, गंगाजल को दूषित करने के साथ साथ इसे लोगों को बीमार करने वाला कारण बनता जा रहा है। इस बारे में लखनऊ के डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. दीपक मालवीय बताते हैं,” गंगा में फैल रहे प्रदूषण का खामियाजा उसके आस पास रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ सकता है। तैरते हुए कचरे से युक्त पानी पीने से लोगों को भयानक स्किन इंफेक्शन, डायरिया और कई वाटर बॉर्न बीमारियां हो सकती हैं। ये बीमारियां अगर बड़ा रूप ले लेती हैं, तो इससे व्यक्ति की जान भी जा सकती है।” 

दाह संस्कार करवाना महंगा पड़ने से गरीब वर्ग के लोग नहीं करवा पाते इलेक्ट्रॉनिक शव दाह का प्रयोग। ( फोटो- सभार bbs.tianya.cn )

इलेक्ट्रॉनिक शव दाह क्यों है ज़रूरी  

गोमती सहित कई नदियों की सफाई पर बड़े स्तर पर काम कर चुके डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता बताते हैं, ” इलेक्ट्रॉनिक शव दाह ग्रह में डेडबॉडी एक उचित तापमान पर जलती है। इसका फायदा यह होता कि जलने के बाद शरीर का बचा हुआ हिस्सा कैल्शियम क्वार्ट्ज जैसे तत्व में बदल जाता है। इस स्थिति में नदी में अस्थि विसर्जन करने से नदी का जल साफ रहता है और नदी में रहने वाले जीवों को भी भोजन मिल जाता है।”

नदी में गंदगी को बढ़ावा दे रही हैं धार्मिक भावनाएं   

बनारस हिंदू विश्व विद्यालय के वरिष्ठ समाजशास्त्री सोहन राम यादव गंगा में फैल रही गंदगी को बढ़ाने का प्रमुख कारण पुराने रीति रिवाज़ और धार्मिक भावनाओं को मानते हैं। ” सदियों से लोग गंगा को मोक्ष दायनी मानते आए हैं। हिंदू धर्म में यह बताया गया है कि जिस मनुष्य की मृत्यु के बाद उसके शरीर को गंगाजल से धोकर उसका कर्म कांड किया जाता है उसे मुक्ति मिल जाती है। इसलिए अधिकतर लोग दाह संस्कार के बाद बचे हुए शरीर के अवशेष को गंगा में प्रवाह करते हैं। ”
 
समाज शास्त्री सोहन राम यादव आगे बताते हैं ,” घाट पर रहने वाले डोम राजा (लाशों को जलाने वाले) लोगों की लाश के क्रियाकर्म संस्कार को पूरा करने के लिए ज़्यादा पैसे की मांग करते हैं। इसलिए अधिकतर समाज में रहने वाले गरीब वर्ग के लोग मृत शरीर को बिना जलाए ही गंगा मेें प्रवाह कर देते हैं।”

पुराने धार्मिक रीति रिवाज़ भी बढ़ा रहे गंगा का प्रदूषण। ( फोटो- सभार bbs.tianya.cn )

पूरे भारत में गंगा में प्रदूषण की स्थिति एक जैसी  

भारत में धार्मिक महत्व के लिहाज से सबसे बड़ी नदी गंगा है। यह नदी पांच राज्यों ( उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल) में रहने वाली देश की 40 प्रतिशत आबादी को पानी उपलब्ध कराती है। नमामि गंगे परियोजना के मुताबिक इन पांच राज्यों के अलावा गंगा की सहायक नदियां हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और दिल्ली के कुछ हिस्सों में भी बहती है। इन सभी राज्यों में कुल 118 शहरों में रोज़ाना पैदा होनेवाला गंदा पानी और बायो वेस्ट का करीब दो तिहाई हिस्सा किसी भी ट्रीटमेंट के बिना गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है, जिसकी वजह से नदी के पुनर्जीवित करने के कार्य में दिक्कत आ रही है। 

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गैस चेंबर बनी दिल्ली, AQI 500 तक पहुंचा

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नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में इन दिनों सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। दरअसल दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर बदतर स्थिति में है। अगर श्रेणी के आधार पर बात करें तो दिल्ली में प्रदूषण गंभीर स्थिति में बना हुआ है। कल जहां एक्यूआई 470 था तो वहीं आज एक्यूआई 494 पहुंच चुका है। दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में एक्यूआई के आंकड़ें आ चुके हैं। अलीपुर में 500, आनंद विहार में 500, बवाना में 500 के स्तर पर एक्यूआई बना हुआ है।

कहां-कितना है एक्यूआई

अगर वायु गुणवत्ता की बात करें तो अलीपुर में 500, बवाना में 500, आनंद विहार में 500, डीटीयू में 496, द्वारका सेक्टर 8 में 496, दिलशाद गार्डन में 500, आईटीओ में 386, जहांगीरपुरी में 500, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 500, लोधी रोड में 493, मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम 499, मंदिर मार्ग में 500, मुंडका में 500 और नजफगढ़ में 491 एक्यूआई पहुंच चुका है। दिल्ली की वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में बनी हुई है। ऐसे में दिल्ली में ग्रेप 4 को लागू कर दिया गया है। इस कारण दिल्ली के अलावा नोएडा, गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ में स्कूलों को बंद कर दिया गया है और ऑनलाइन माध्यम से अब क्लासेस चलाए जाएंगे।

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