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उत्तराखंड

श्रद्धालुओं को भी मिलेगा इन्दिरा अम्मा भोजनालय का लाभ

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इन्दिरा अम्मा भोजनालय, चारधाम यात्रा उत्तराखण्ड, 30 रुपए में एक थाल भोजन

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इन्दिरा अम्मा भोजनालय, चारधाम यात्रा उत्तराखण्ड, 30 रुपए में एक थाल भोजन

Indira Amma Bhojan

इन्दिरा अम्मा भोजनालय में स्थानीय उत्पादों को मिल रही नई पहचान

देहरादून। प्रदेश सरकार के ड्रीम प्रोजेक्टों में से एक इन्दिरा अम्मा भोजनालय का फायदा अब उत्तराखण्ड के लोगों के साथ ही चारधाम यात्रा के लिए उत्तराखण्ड आने वाले श्रद्धालुओं को भी मिलेगा। इन्दिरा अम्मा भोजनालय प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजना है। सबसे पहले प्रदेश की राजधानी देहरादून में इन्दिरा अम्मा भोजनालय की सफलता के बाद सरकार द्वारा इन्दिरा आम्मा भोजनालयों को प्रत्येक जिलों में खोला गया।

जिलों में खोलने के बाद अब सरकार का लक्ष्य कई अन्य शहरों में भी इन्दिरा अम्मा भोजनालय खोलने का है। साथ ही चारधाम यात्रा के लिए प्रदेश में आने वाले लाखों तीथयात्रियों को भी योजना का लाभ देने का लक्ष्य है। जिसकी शुरुआत मुख्यमंत्री हरीश रावत ने चारधाम यात्रा के प्रवेशद्वार ऋषिकेश से कर दी है। अब चारधाम यात्रा पर आने वाले तीर्थयात्रियों को भी 30 रुपए में दो मंडुवे की रोटी, दो गेहूं की रोटी, चावल, दाल, सब्जी और चटनी दी जा रही है। उत्तराखण्ड के स्थानीय उत्पादों को भी इन्दिरा अम्मा भोजनालयों के माध्यम से एक नई पहचान मिल रही है।

श्रद्धालुओं को पसंद आ रहे स्थानीय उत्पाद

स्थानीय लोगों के साथ ही देश दुनिया से आने वाले तीर्थयात्रीयों को स्थानीय उत्पाद झंगोरे की खीर, मंडुवे की रोटी, कढ़ी, पहाड़ी राजमा, पहाड़ी चटनी और मठ्ठा काफी पसन्द आ रहे है। खासकर झंगोरे की खीर के तो तीर्थयात्री कायल हो चुके हैं। योजना के तहत अन्य जगहों पर शुरुआती दौर में इन्दिरा अम्मा भोजनालयों में 20 रुपए और 25 रुपए थाली थी, जिसमें सरकार अपनी ओर से भी सब्सिडी देकर इन्हें चला रही थी।

लेकिन तीर्थयात्रियों के लिए खोले जा रहे नए इन्दिरा अम्मा भोजनालयों में स्वयं सहायता समूह सरकार की सब्सिडी नहीं ले रहे है। जिससे जहां एक ओर सरकार का राजस्व बच रहा है, वहीं इन्दिरा अम्मा भोजनालय भी आत्मनिर्भर होती जा रही है। इन्दिरा अम्मा भोजनालय एक बहुआयामी योजना बनकर उभर चुकी हैै। इससे जहां एक ओर स्थानीय लोगों के साथ ही तीर्थयात्रियों को सस्ते दाम में अच्छा और पौष्टिक खाना मिलेगा।

इतना ही नहीं इससे स्थानीय उत्पादों का भी प्रचार प्रसार हो रहा है। वहीं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से सैकड़ों महिलाओं को इससे रोजगार भी मिल रहा है। जो खाना आज तक वह अपने घरों में बनाती थी, वहीं अपने इसी हुनर के बलबूते आज वह इन्दिरा अम्मा भोजनालय में बना रही हैं। और अपनी आर्थिकी भी मजबूत कर रही हैं। महिलाएं स्वयं सहायता समूहों का निर्माण कर इस योजना का लाभ ले रही है। घरों की चारदीवारी से बाहर आकर अपने हुनर को दिखा अपने पैरों पर खड़ी हो रही है। इन्दिरा अम्मा भोजनालय स्थानीय लोगों के साथ ही तीर्थयात्रियों को भी खूब भा रहा है। यही कारण है आने वाले समय में प्रदेश सरकार ब्रदीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री में भी इन्दिरा अम्मा भोजनालय खोलने की तैयारी करने में लगी है।

उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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