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आध्यात्म

जगन्नाथ रथउत्सव आरंभ, भक्तों के ‘जय जगन्नाथ’ उद्घोष से गूंजा आकाश

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भुवनेश्वर। ओडिशा के जगन्नाथ पुरी शहर का विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथउत्सव आज 1 जुलाई से आरंभ हो चुका है। कोरोना महामारी के कारण बीते दो साल रथयात्रा उत्सव का भव्य आयोजन नहीं हो रहा था, लेकिन इस साल देशभर से लाखों भक्त शुक्रवार को पुरी शहर के जगन्नाथ मंदिर में प्रभु जगन्नाथ और उनके भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के लकड़ी के रथों को खींचने के लिए पहुंचे हैं।

जयकारों से गूंजा शहर

हवा में गूंजते हुए ‘जय जगन्नाथ’ के मंत्रों के साथ, त्रिदेव- भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को 12वीं शताब्दी के मंदिर से उनके रथों में एक विशेष अनुष्ठान पहंडी बीजे में ले जाया गया। रथों को खींचने के दौरान जगन्नाथ मंदिर के सेवक ढोल, झांझ, शंख बजाने के साथ ही और उनके नामों के जयकारे लगाते हैं।

रंग-बिरंगे सजे तीनों रथ

शुक्रवार को सुबह साढ़े तीन बजे भगवान जगन्नाथ की मंगला आरती और मैलामा नीति के साथ तीन देवताओं की पूजा तय समय से तीन घंटे पहले शुरू हो गई।

सबसे पहले चक्रराज सुदर्शन को नंदीघोष रथ पर ले जाया गया, उसके बाद भगवान बलभद्र की पहाड़ी को तलध्वज रथ, सुभद्रा को दर्पदलन रथ और जगन्नाथ को नंदीघोष रथ तक पहुंचाया गया। तीनों रथों को रंग-बिरंगे वस्त्रों से सजाया गया है।

रथ यात्रा ओडिशा के मुख्य त्योहारों में से एक है जो भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों की 12 वीं शताब्दी के जगन्नाथ मंदिर से 2.5 किमी दूर गुंडिचा मंदिर में उनकी मौसी के निवास तक की वार्षिक यात्रा की याद दिलाता है। गुंडिचा मंदिर वह स्थान है जहां कहा जाता है कि जगन्नाथ ने वह रूप धारण किया था जिसमें वर्तमान में उनकी पूजा की जाती है।

रथ यात्रा एकमात्र ऐसा समय है जब भगवान जगन्नाथ अपने पवित्र निवास से बाहर आते हैं ताकि सभी धर्मों के लोग उन्हें देख सकें क्योंकि नियमित दिनों में केवल हिंदुओं को ही मंदिर में जाने की अनुमति होती है।

भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम

भारी भीड़ को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है। करीब एक हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी मंदिर व शहर में तैनात किए गए हैं। जिसमें कम से कम तीन पुलिस महानिरीक्षक एक अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक देखरेख कर रहे हैं।

भीषण गर्मी को देखते हुए भक्तों के लिए दमकल के 10 पंप लगाए गए हैं। भीड़ की आवाजाही पर नजर रखने के लिए मुख्य सड़क के किनारे 50 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। एक एम्बुलेंस कॉरिडोर बनाया गया है और जरूरत पड़ने पर बचाव कार्यों के लिए पुरी समुद्र तट पर लगभग 500 जीवन रक्षक तैनात किए गए हैं।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और अन्य मंत्रियों ने इस अवसर पर आम जनता को बधाई दी है।

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आध्यात्म

महाकुम्भ 2025: बड़े हनुमान मंदिर में षोडशोपचार पूजा का है विशेष महत्व, पूरी होती है हर कामना

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महाकुम्भनगर| प्रयागराज में संगम तट पर स्थित बड़े हनुमान मंदिर का कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया है। यहां आने वाले करोड़ों श्रद्धालु यहां विभिन्न पूजा विधियों के माध्यम से हनुमान जी की अराधना करते हैं। इसी क्रम में यहां षोडशोपचार पूजा का भी विशेष महत्व है। षोडशोपचार पूजा करने वालों की हर कामना पूरी होती है, जबकि उनके सभी संकट भी टल जाते हैं। मंदिर के महंत और श्रीमठ बाघंबरी पीठाधीश्वर बलवीर गिरी जी महाराज ने इस पूजा विधि के विषय में संक्षेप में जानकारी दी और यह भी खुलासा किया कि हाल ही में प्रयागराज दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मंदिर में षोडशोपचार विधि से पूजा कराई गई। उन्हें हनुमान जी के गले में पड़ा विशिष्ट गौरीशंकर रुद्राक्ष भी भेंट किया गया। उन्होंने भव्य और दिव्य महाकुम्भ के आयोजन के लिए पीएम मोदी और सीएम योगी का आभार भी जताया।

16 पदार्थों से ईष्ट की कराई गई पूजा

लेटे हनुमान मंदिर के महंत एवं श्रीमठ बाघंबरी पीठाधीश्वर बलवीर गिरी जी महाराज ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक यजमान की तरह महाकुम्भ से पहले विशेष पूजन किया। प्रधानमंत्री का समय बहुत महत्वपूर्ण था, लेकिन कम समय में भी उनको षोडशोपचार की पूजा कराई गई। पीएम ने हनुमान जी को कुमकुम, रोली, चावल, अक्षत और सिंदूर अर्पित किया। यह बेहद विशिष्ट पूजा होती है, जिसमें 16 पदार्थों से ईष्ट की आराधना की। इस पूजा का विशेष महत्व है। इससे संकल्प सिद्धि होती है, पुण्य वृद्धि होती है, मंगलकामनाओं की पूर्ति होती और सुख, संपदा, वैभव मिलता है। हनुमान जी संकट मोचक कहे जाते हैं तो इस विधि से हनुमान जी का पूजन करना समस्त संकटों का हरण होता है। उन्होंने बताया कि पीएम को पूजा संपन्न होने के बाद बड़े हनुमान के गले का विशिष्ट रुद्राक्ष गौरीशंकर भी पहनाया गया। यह विशिष्ट रुद्राक्ष शिव और पार्वती का स्वरूप है, जो हनुमान जी के गले में सुशोभित होता है।

सभी को प्रेरित करने वाला है पीएम का आचरण

उन्होंने बताया कि पूजा के दौरान प्रधानमंत्री के चेहरे पर संतों का ओज नजर आ रहा था। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उनमें संतों के लिए विनय का भाव था। आमतौर पर लोग पूजा करने के बाद साधु संतों को धन्यवाद नहीं बोलते, लेकिन पीएम ने पूजा संपन्न होने के बाद पूरे विनय के साथ धन्यवाद कहा जो सभी को प्रेरित करने वाला है। उन्होंने बताया कि पीएम ने नवनिर्मित कॉरिडोर में श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर भी अपनी रुचि दिखाई और मंदिर प्रशासन से श्रद्धालुओं के आने और जाने के विषय में जानकारी ली। वह एक अभिभावक के रूप में नजर आए, जिन्हें संपूर्ण राष्ट्र की चिंता है।

जो सीएम योगी ने प्रयागराज के लिए किया, वो किसी ने नहीं किया

बलवीर गिरी महाराज ने सीएम योगी की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने प्रयागराज और संगम के विषय में जितना सोचा, आज से पहले किसी ने नहीं सोचा। संत जीवन में बहुत से लोगों को बड़े-बड़े पदों पर पहुंचते देखा, लेकिन मुख्यमंत्री जी जैसा व्यक्तित्व कभी नहीं देखने को मिला। वो जब भी प्रयागराज आते हैं, मंदिर अवश्य आते हैं और यहां भी वह हमेशा यजमान की भूमिका में रहते हैं। हमारे लिए वह बड़े भ्राता की तरह है। हालांकि, उनकी भाव भंगिमाएं सिर्फ मंदिर या मठ के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए हैं। वो हमेशा यही पूछते हैं कि प्रयागराज कैसा चल रहा है। किसी मुख्यमंत्री में इस तरह के विचार होना किसी भी प्रांत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

स्वच्छता का भी दिया संदेश

उन्होंने महाकुम्भ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि महाकुम्भ को स्वच्छ महाकुम्भ बनाने का जिम्मा सिर्फ सरकार और प्रशासन का नहीं है, बल्कि श्रद्धालुओं का भी है। मेरी सभी तीर्थयात्रियों से एक ही अपील है कि महाकुम्भ के दौरान स्नान के बाद अपने कपड़े, पुष्प और पन्नियां नदियों में और न ही तीर्थस्थल में अर्पण न करें। प्रयाग और गंगा का नाम लेने से ही पाप कट जाते हैं। माघ मास में यहां एक कदम चलने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। यहां करोड़ों तीर्थ समाहित हैं। इसकी पवित्रता के लिए अधिक से अधिक प्रयास करें। तीर्थ का सम्मान करेंगे तो तीर्थ भी आपको सम्मान प्रदान करेंगे। स्नान के समय प्रयाग की धरा करोड़ों लोगों को मुक्ति प्रदान करती है। यहां ज्ञानी को भी और अज्ञानी को भी एक बराबर फल मिलता है।

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