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विदेश में नौकरी
संजीव राय
ये देश के बाहर मेरी पहली नौकरी है तो जैसा आम तौर पर भारतियों को विदेश जाने का उत्साह रहता है, मैं भी उसका अपवाद नहीं था। नई नौकरी की इस प्रक्रिया में ,पहली बार ये पता चला की, मेडिकल, पुलिस रिपोर्ट, विवाह प्रमाण पत्र आदि के साथ, आप को अपनी सर्वोच्च विस्वविद्यालय की डिग्री भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय से प्रमाणित कराना है। जब डिग्री प्रमाणित करने की प्रक्रिया की पूछ ताछ की तो बहुत जटिल प्रक्रिया लगी। कुछ लोगों ने बताया की कई एजेंसी हैं जो ये काम दस हज़ार से लेकर तीस हज़ार की फीस में कराती हैं। मैंने खुद से प्रयास करने का निर्णय लिया। थोड़ा गूगल सर्च किया, एक दो मित्रों को फ़ोन किया और एक दिन बसंतकुञ्ज में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सेंटर पर पचास रुपये का पोस्टल आर्डर, फोटो, शैक्षिक दस्तावेज़, पासपोर्ट और नौकरी का ऑफर लेटर सब ले कर पहुँच गया। डायरेक्ट जा रहे हैं या एजेंट के द्वारा? मैंने कहा डायरेक्ट। इस प्रश्न का कोई और सन्दर्भ था या बस सामान्य जिज्ञासा, मुझे नहीं पता। अब पीएचडी की डिग्री मिल जाने के बाद, यूनिवर्सिटी के गजट की कॉपी कौन रखता है ? जैसे तैसे फॉर्म जमा हुआ।
पीएचडी डिग्री की फोटोकॉपी को ये मानव संसाधन विकास मंत्रालय का सेंटर, सम्बंधित विस्वविद्यालय में भेजता है, फिर आप वहां पता करते रहिये की आप की डिग्री वेरिफिकेशन के लिये आयी की नहीं। हफ्ता दस दिन के बाद जब पता चल जाये तो विस्वविद्यालय में जाकर 500/- फीस जमा करिये। फिर विस्वविद्यालय वेरिफिकेशन कर के, मानव संसाधन मंत्रालय के सेंटर को हफ्ता दस दिन में भेजेगा ।फिर फ़ोन कर के पूछते रहिये की आप फलां फलां हैं, और आप की डिग्री वेरीफाई हो गयी है की नहीं। ये तो रहा पहला चरण। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सेंटर से डिग्री प्रमाणित होने के बाद, बाराखंबा रोड जाईये। वहां 22 रुपये जमा कीजिए तो आप को विदेश मंत्रालय का अटैस्टेशन हो के आप की डिग्री अगले दिन मिलेगी।
उसके बाद जिस देश में जाना है उसकी एम्बेसी में जाई और वहां भी फीस के साथ जनम, विवाह, शिक्षा सभी प्रमाणपत्र जमा करिये और प्रमाणित कागज़ात दो दिन बाद लीजिये। जो लोग पांडिचेरी, नागालैंड और हिमाचल के संस्थाओं में पढ़े होगे और दिल्ली या अन्य नगरों में रहते होंगे। तो उनका सत्यापन किस भाव का पड़ेगा? क्या ये सिस्टम ऑनलाइन और सिंगल विंडो नहीं हो सकता है? डिग्री के अलावा अभी मेडिकल, पुलिस रिपोर्ट, विवाह प्रमाण पत्र आदि काग़ज़ात भी सत्यापित होने थे। मैंने समय और संसाधन का हिसाब लगा के बाकि के सर्टिफिकेट खुद सत्यापित कराने का विचार त्याग दिया। एक अधिवक्ता मित्र के ज़रिये , दूसरे अधिवक्ता जो इस कार्ये में लोगों के ‘मदद’ करतें हैं, उनकी सेवा ली।
जब प्रमाणित कागज़ लेने पटियाला हॉउस कोर्ट में घुस रहा था तो गेट से ही एक आदमी मेरे पीछे पड़ गया। उसने कैसे मेरे आने का मंतव्य जान लिया। कहता रहा- आप को सर्टिफिकेट्स प्रमाणित कराना है। हम सब काम दो दिन में करादेतें हैं। उसकी पारखी नज़र ने हज़ारों की भीड़ में कैसे मुझे गेट पैर ही धर लिया। बहुत दूर तक कोर्ट में मेरी पीछे चलता रहा और मैं खामोस था उसकी पारखी नज़र का कमाल देख कर। इस पूरी प्रक्रिया में एक सुखद आष्चर्य ये हुआ की पुलिस वेरिफिकेशन का फॉर्म और फीस दोनों ओन लाइन जमा हुआ और बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के समयबद्ध तरीके से ऑनलाइन सर्टिफिकेट भी आया। दिल्ली पुलिस की प्रसंशा करनी होगी। खैर, इन प्रक्रियाओं से होते हुए खबर फ़ैल गयी की मैं अब दो साल के लिये विदेश जा रहा हूँ। विदेश में नौकरी को अधिकांश ने बड़ी उपलब्धि बताया और बधाई दी। कुछ ने पूछा की एक रियाल का कितना रूपया होता है। अपने को भी बताने में थोड़ी ख़ुशी का एहसाश होता रहा।
खाड़ी के देश में नौकरी पर जाने से पहले, वहां रह रहे लोगों से पूछ ताछ की की क्या साथ लाना चाहिये। सबने कहा ,यहाँ सब मिलता है तो सिर्फ सूटकेस ले के आओ। मन नहीं माना और दो बड़े सूटकेस तैयार हो गए। एयरपोर्ट पहुँच कर पता चला की सामान का वज़न तय सीमा से 8 किलो ज़यादा है और प्रति किलो लगभग 2000 रुपये का शुल्क लगेगा। जो टैक्सी मुझे एयरपोर्ट छोड़ने आयी थी, अभी ज़यादा दूर नहीं गयी थी। फ़ोन कर के वापस बुलाया और जल्दी जल्दी कुछ सामान वापस भेज दिया। नए देश में, होटल पहुँच कर थोड़ी देर आराम किया। दिन में पत्नी के बनाये सत्तू के पराठे बहुत काम आये और दोपहर बाद फिर आसपास की जगह की पड़ताल की। एक मकसद होटल के बाहर, खाने की किफायती जगह की तलाश भी थी।
ये पहला महीना तो रुपये पर ही गुज़ारना था। कोई भी चीज़ खरीदने से पहले उसकी कीमत रूपए में बदल कर देखता था। फिर तय करता था की ये चलेगा या कुछ और देखा जाए। धीरे धीरे यहाँ भी आटा दाल का भाव मालूम चला। मन की उड़ान को विराम लगा। ‘कौन सा यहाँ ज़िंदगी भर रहना है’ के तर्क ने बहुत मदद की। आम तौर पैर जो विदेश कमाने जाता है, अपने देश में ये माना जाता है की वो वहां खूब पैसा कमा रहा है, मज़े कर रहा है। निश्चित रूप से कानून वयवस्था यहाँ अच्छी है और सेवाओं की गुणवत्ता बेहतर है। लेकिन देश के बाहर भी, नौकरी, नौकरी ही होती है। आप को दवाई से लेकर दूध तक का इंतेज़ाम वैसे ही करना होता है जैसे की दिल्ली या दूसरे नगरों में। यहाँ आने के बाद ‘ ,छपरा सीवान में बा हल्ला ,ह्मार मरद अरब कमाला ‘ जैसे गाने की खोखली असलियत समझ आती है और तरश भी आता है। बहुतायत की कहानी इससे अलग है। अपनी ज़रुरत को काम करके लोग यहाँ पैसे बचातें हैं। कोई बहन की शादी का क़र्ज़ उतारने के लिए पैसे भेज रहा है, कोई परिवार चलाने के लिए, तो कोई बच्चों की पढाई के लिये।
भला हो मोबाइल का और इंटरनेट का की दूरी घट गयी है लेकिन फिर भी तीज त्यौहार पर लोगों को पंकज उदास का गाया ग़ीत, कानो में गूंजता रहता है की -पंछी पिजरा तोड़ के आ जा ——-
नेशनल
मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन, दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस
नई दिल्ली। मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन हो गया है। दिल्ली के एम्स में आज उन्होंने अंतिम सांस ली। वह लंबे समय से बीमार चल रहीं थी। एम्स में उन्हें भर्ती करवाया गया था। शारदा सिन्हा को बिहार की स्वर कोकिला कहा जाता था।
गायिका शारदा सिन्हा को साल 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर, 1952 को सुपौल जिले के एक गांव हुलसा में हुआ था। बेमिसाल शख्सियत शारदा सिन्हा को बिहार कोकिला के अलावा भोजपुरी कोकिला, भिखारी ठाकुर सम्मान, बिहार रत्न, मिथिलि विभूति सहित कई सम्मान मिले हैं। शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मगही और मैथिली भाषाओं में विवाह और छठ के गीत गाए हैं जो लोगों के बीच काफी प्रचलित हुए।
शारदा सिन्हा पिछले कुछ दिनों से एम्स में भर्ती थीं। सोमवार की शाम को शारदा सिन्हा को प्राइवेट वार्ड से आईसीयू में अगला शिफ्ट किया गया था। इसके बाद जब उनकी हालत बिगड़ी लेख उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। शारदा सिन्हा का ऑक्सीजन लेवल गिर गया था और फिर उनकी हालत हो गई थी। शारदा सिन्हा मल्टीपल ऑर्गन डिस्फंक्शन स्थिति में थीं।
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