आध्यात्म
समस्त भक्तियों में कीर्तन का सर्वाधिक महत्व है
गुरु बनाने का अभिप्राय कान फुंकाने आदि आडंबर से नहीं है। गुरु रूप से वरण करना है मन से ही। जब अन्तःकरण शुद्ध हो जायगा (साधना-भक्ति द्वारा) तभी गुरु दीक्षा देगा। दीक्षा का अभिप्राय है दिव्य प्रेम। पश्चात् तो जीव कृतार्थ हो जायगा। इस प्रकार मन से गुरु मान कर उसके निर्देश के अनुसार नवधाभक्ति (साधना-भक्ति) करनी होगी। फिर अन्य गुरुओं से दूर ही रहना होगा। अन्यथा दूसरा गुरु अपनी साधना शैली बतायेगा, तो साधक असमंजस में पड़ जायगा। यदि प्रथम गुरु को छोड़कर दूसरे गुरु के निर्देशन में साधना करनी हो, तो कर सकते हो। किंतु सिद्ध गुरुओं की भी शैली भिन्न-भिन्न है। अतः जब तक एक गुरु को ही अपना शरण्य माना है, तब तक अन्य की बात न सुनो। नवधा भक्ति का सर्वत्र विशेष प्रचार है। भागवत में यथा-
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ।।
(भाग. 7-5-23)
इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा।
(भाग. 7-5-24)
इन श्रवणादि भक्तियों में से चाहे जो भक्ति की जाये, किंतु मन के द्वारा स्मरण भक्ति परमावश्यक है। यद्यपि स्मरण के पश्चात् 8 भक्तियों में कीर्तन का सर्वाधिक महत्व है। यथा वेदव्यास-
’कलौ संकीर्त्य केशवम् ,
’कलौ तद्धरि कीर्तनात् ,
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम् ।
कलौ नास् त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।
(वृहन् नारदीय पुराण, स्कन्द पुराण)
कलिं सभाजयन्त्यार्या गुणज्ञाः सारभागिनः।
यत्र सङ्कीर्तनेनैव सर्वः स्वार्थोऽभिलभ्यते।।
(भाग. 11-5-36)
प्रमुख ध्यान देने की बात यह है कि भक्ति या साधना मन को करनी है। यथा-
चेतः खल्वस्य बन्धाय मुक्तये चात्मनो मतम् ।
गुणेषु सक्तं बन्धाय रतं वा पुंसि मुक्तये।।
(भाग. 3-25-15)
प्रत्येक कर्म का कर्ता मन ही माना गया है। इसी से नवधाभक्ति में एक शर्त लगा दी है कि-
’इति पुंसार्पिता विष्णौ’ (भाग. 7-5-24)
अर्थात् प्रथम मन की शरणागति करनी है। यही स्मरण भक्ति है। यदि किसी भी भक्ति में मन न लगाया जायगा (श्रीकृष्ण का रूपध्यान) तो वह भक्ति विशेष लाभ न दे सकेगी। साथ में इन्द्रियों को भी लगाये रहो। किंतु मन का प्रमुख ध्यान रहे। साधना भक्ति प्रारम्भ करने के पूर्व जीव (दास) एवं शरण्य (श्यामसुन्दर) के विषय का भी ज्ञान परमावश्यक है। श्रीकृष्ण एवं उनके अनन्त नाम, रूप, गुण, लीला, धाम एवं भक्त सब एक ही हैं। इनमें कभी किसी को छोटा बड़ा मानकर दुर्भावना न करें। यद्यपि गुरु का स्थान ऊँचा कहा जाता है, किंतु वह इसलिये कहा जाता है कि हमारा आदि से लेकर अंत तक उसी से स्वार्थ सिद्ध होता है। किंतु गुरु में कोई ज्ञानानन्दादि अपनी कमाई का नहीं है। वह तो श्रीकृष्ण का ही दिया हुआ है। तात्पर्य यह कि श्रीकृष्ण के समस्त स्वांश (अवतार) एवं उनके नाम, गुणादि सब में सब का निवास है। अतः भागवत कहती है-
आचार्यं मां विजानीयान्नावमन्येत कर्हिचित् ।
न मर्त्यबुद्ध यासूयेत सर्वदेवमयो गुरुः।।
(भाग. 11-17-27)
आध्यात्म
महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन, सीएम योगी ने दी बधाई
लखनऊ ।लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन है. आज के दिन डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जाएगा और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं. आज नदी किनारे बने हुए छठ घाट पर शाम के समय व्रती महिलाएं पूरी निष्ठा भाव से भगवान भास्कर की उपासना करती हैं. व्रती पानी में खड़े होकर ठेकुआ, गन्ना समेत अन्य प्रसाद सामग्री से सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार, संतान की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
यूपी के मुख्यमंत्री ने भी दी बधाई।
महापर्व 'छठ' पर हमरे ओर से आप सब माता-बहिन आ पूरा भोजपुरी समाज के लोगन के बहुत-बहुत मंगलकामना…
जय जय छठी मइया! pic.twitter.com/KR2lpcamdO
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 7, 2024
-
नेशनल3 days ago
गैस चेंबर बनी दिल्ली, AQI 500 तक पहुंचा
-
प्रादेशिक3 days ago
कक्षा 12 के छात्रों ने शिक्षिका की कुर्सी के नीचे लगाया बम, कर दिया विस्फोट
-
अन्तर्राष्ट्रीय3 days ago
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतालवी समकक्ष जियोर्जिया मेलोनी से की मुलाकात
-
मनोरंजन3 days ago
असित मोदी के साथ झगड़े पर आया दिलीप जोशी का बयान, कही ये बात
-
छत्तीसगढ़3 days ago
CRPF 241 बस्तियां बटालियन पहुंचे सीएम विष्णु देव साय, जवानों को भोजन परोसा, बढ़ाया हौसला
-
अन्तर्राष्ट्रीय3 days ago
लॉरेंस बिश्नोई का भाई अनमोल बिश्नोई अमेरिका में गिरफ्तार, 10 लाख का था इनाम
-
वीडियो3 days ago
video: भगवान ऐसा दोस्त किसी को ना दे
-
नेशनल3 days ago
नक्सल नेता विक्रम गौड़ा को कर्नाटक पुलिस के एंटी नक्सल फोर्स ने मार गिराया