आध्यात्म
श्रीकृष्ण स्वयं सच्चिदानन्द ब्रह्म हैं
हरि को नाम रूप गुन, हरिजन नित्य निवास।
सबै एक हरि रूप हैं, सब में सबको वास।। 17।।
भावार्थ- श्रीकृष्ण एवं उनके नाम, रूप, गुण एवं धाम तथा भक्त सब एक ही हैं। क्योंकि सबमें सब का नित्य निवास है।
व्याख्या- श्रीकृष्ण स्वयं सच्चिदानन्द ब्रह्म हैं। उनकी सभी वस्तुओं का स्वरूप भी तद्रूप है। साधारण लोग समझते हैं कि संसार की भाँति उनके धामादि जड़ हैं किंतु ऐसा नहीं है। उनकी लकुटी, मुरली आदि सभी चेतन एवं श्रीकृष्ण स्वरूप हैं। जो कार्य कर सकते हैं, वही कार्य उनकी लकुटी एवं मुरली आदि भी करने में समर्थ हैं। अतः इनमें कोई छोटा-बड़ा नहीं है। जब दो ही नहीं हैं तो छोटे बड़े का प्रश्न ही कहाँ? विनोद में तो कोई श्रीकृष्ण को, कोई उनके नाम को, कोई उनके भक्त को बड़ा कह देता है। किन्तु वास्तव में भेदभाव मानना नामापराध ह। आप कहेंगे कि यदि सब एक हैं तो उनके नामादि से हमारा काम क्यों नहीं बनता? इसका कारण हमारी इन्द्रिय मन बुद्धि का मायिक होना है। हम विश् वास ही नहीं कर पाते। सभी जीवों के भीतर भी श्रीकृष्ण सदा हैं। एवं अवतार काल में भी सब ने साकार रूप से भी अनन्त बार देखा है। किंतु कभी विश् वास नहीं किया।
कवनिउ सिद्धि कि बिनु विश्वासा।
यदि सही गुरु मिल जाय और हम उस पर विश् वास कर लें, तभी हमारा लक्ष्य प्राप्त होगा। अन्यथा असम्भव है।
राधे राधे राधे राधे राधे राधे
सबै शक्ति हैं नाम में, मन! निशिदिन आराध।
पै नहिँ शक्तिन लाभ तिन, किये नाम अपराध।।18।।
भावार्थ- श्रीकृष्ण के नाम में उनकी समस्त शक्तियाँ सदा हैं। अतः हे मन! तू निरन्तर स्मरण कर। किंतु एक बात याद रखना। वह यह कि नामापराध न होने पाये।
व्याख्या- आप लोगों ने कतिपय अद्वैतियों से सुनाओ होगा कि नामब रूप मिथ्या है। किंतु यह मिथ्या नाम रूप मायिक जगत् का ही है। भगवान् का नहीं। चैतन्य देव ने कहा है। यथा-
नाम्नामकारि बहुधा निजसर्वशक्तिस् ,
तत्रार्पिता नियमितः स्मरेण न कालः।
एतादृशी तव कृपा भगवन्ममापि,
दुर्दैवमीदृशमिहाजनि नानुरागः।।
(गौरांग महाप्रभु-शिक्षाष्टक)
अतः नाम एवं नामी एक ही हैं। यह अकारण करुणाकर ही कृपा है, जो उन्होंने अपने नाम में अपनी समस्त शक्तियाँ रख दी हैं। आप कहेंगे कि हमने अनन्त जन्मों में अन्तत बार हरि नाम लिया होगा। फिर हमारा कल्याण क्यों नहीं हुआ? इसका प्रमुख कारण नामापराध है। दूसरा कारण यह भी है कि हमने इस विश् वास से कभी हरि नाम ही नहीं लिया कि इसमें स्वयं श्रीकृष्ण हैं। प्रमुख बात है मन की। जब तक मन में श्रीकृष्ण या उनके नाम या उनके जन के प्रति पूर्ण विश् वास पूर्वक अनुराग न होगा, तब तक केवल वाणी या इन्द्रियों से की गई भक्ति अभिनय मात्र होगी। अतः शास्त्र कहते हैं कि-
’तज्जपस्तदर्थभावनम् ।‘
(योगदर्शन)
अर्थात् रसना से नाम लो। साथ में मन का लगाव करो।
राधे राधे राधे राधे राधे राधे
बंधन और मोक्ष का, कारण मनहि बखान।
याते कौनिउ भक्ति करु, करु मन ते हरिध्यान।।19।।
भावार्थ- बंधन और मोक्ष का कारण केवल मन ही है। अतः कोई भी भक्ति की जाय, मन से ध्यान अवश्य हो।
व्याख्या- प्रत्येक कर्म का कर्ता मन ही माना गया है। यह मन भी आत्मा की भाँति अनादि है। सदा साथ रहता है। वेद कहता है- यथा-
एष आत्मा निष्क्रामति चक्षुषो वा मूर्ध्नो
वान्येभ्यो वा शरीरदेशेभ्यस्तमुत् क्रामन्तं प्राणोऽनूत्क्रामति
प्राणमनूत्क्रामन्तं सर्वे प्राणा अनुत्क्रामन्ति ।।
अर्थात् मृत्यु के बाद यह इन्द्रिय मन बुद्धि (सूक्ष्म) सदा साथ जाते हैं। जिन जिनके साथ जाता है, उन्हीं के साथ पुनः जन्म लेता है। सभी पूर्व संस्कार मन में ही रहते हैं। सारा खेल मन का है। यदि वह मायिक जगत् में आसक्त हुआ तो कर्मबंधन। यदि वह ईश् वरीय जगत् में अनुरक्त हुआ तो मुक्ति एवं प्रेमानन्द प्राप्ति। इन्द्रियाँ तो स्वयं कुछ कर भी नहीं सकतीं। बिना इन्द्रियों के ही मन स्वप्न में इन्द्रियों का कर्म कर लेता है किन्तु बिना मन के कोई इन्द्रिय कुछ नहीं कर सकती। भक्ति अनन्त प्रकार की हो सकती है। किंतु प्रमुख नवधा भक्ति ही मानी ही गई है। उसमें भी प्रमुख स्मरण युक्त कीर्तन है। अतः मन से ही भक्ति करने पर ध्यान देना है। साथ में इन्द्रियाँ भी रहें। किंतु केवल इन्द्रियों की भक्ति भक्ति नहीं है। पीछे बता चुके हैं कि इन्द्रिय मात्र के कर्म को भगवान् कर्म ही नहीं मानते।
राम नाम सब सत्य कह, जब लौं जात मसान।
लौटत ही पुनि जगत कहँ, सत्य मान धनि ज्ञान।।20।।
भावार्थ- संसार में शव को श्मसान ले जाते समय सभी ‘राम नाम सत्य है’ , ऐसा बोलते हैं। किंतु श्मशान से लौटते समय संसार को ही सत्य मान लेते हैं। ऐसे अज्ञान युक्त ज्ञान की बलिहारी है।
व्याख्या- प्राचीन काल से ही पूर्वज महर्षियों ने नियम बना दिया कि मृतक को श्मसान ले जाते समय ‘राम नाम सत्य है’ , ऐसा बोला करो। यही सत्य भी है ऐसा निर्णय भी किया करो। ताकि क्षणिक संसार से मन में वैराग्य उत्पन् न हो। एवं तुम्हारी उधार (फिर कर लेंगे) करने की प्रवृत्ति समाप्त हो।
आध्यात्म
महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन, सीएम योगी ने दी बधाई
लखनऊ ।लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन है. आज के दिन डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जाएगा और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं. आज नदी किनारे बने हुए छठ घाट पर शाम के समय व्रती महिलाएं पूरी निष्ठा भाव से भगवान भास्कर की उपासना करती हैं. व्रती पानी में खड़े होकर ठेकुआ, गन्ना समेत अन्य प्रसाद सामग्री से सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार, संतान की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
यूपी के मुख्यमंत्री ने भी दी बधाई।
महापर्व 'छठ' पर हमरे ओर से आप सब माता-बहिन आ पूरा भोजपुरी समाज के लोगन के बहुत-बहुत मंगलकामना…
जय जय छठी मइया! pic.twitter.com/KR2lpcamdO
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 7, 2024
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