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आध्यात्म

अद्वय ज्ञान तत्‍व श्रीकृष्‍ण ही हैं

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शक्ति होने की बात ही मिथ्‍या है।

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अद्वय ज्ञान तत्‍व श्रीकृष्‍ण ही हैं

श्रीकृष्‍ण सशक्तिक ब्रह्म हैं। अतः सत् से संधिनी शक्ति, चित् से संवित् शक्ति, एवं आनन्‍द से ह्लादिनी शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। इन तीनों को मिलाकर संक्षेप में चित् भी कहते हैं। वह अद्वय ज्ञान तत्‍व परब्रह्म श्रीकृष्‍ण, अपनी संधिनी शक्ति से स्‍वयं की सत्‍ता तथा समस्‍त जीवों की सत्‍ता की रक्षा करता है। संवित् शक्ति से स्‍वयं को एवं जीवों को भी ज्ञानयुक्‍त करता है। ह्लादिनी शक्ति से स्‍वयं को एवं जीवों को भी आनन्‍द प्रदान करता है।

अब यह प्रश्‍न आता है कि यह अद्वय ज्ञान तत्‍व क्‍यों कहलाता है। अद्वय का तात्‍पर्य क्‍या है? उत्‍तर यह है कि-

  1. कोई भी तत्‍व अद्वय तभी माना जायगा, जब वह स्‍वयं सिद्ध हो। दूसरे पर निर्भर न हो।
  2. उस तत्‍व के समान दूसरा तत्‍व न हो।
  3. उस तत्‍व की विजातीय वस्‍तु भी न हो।
  4. उसकी अपनी ही शक्ति सहायिका रहे।

भावार्थ यह कि अद्वय ज्ञान तत्‍व सजातीय विजातीय स्‍वगतभेद शून्‍य हो। अब इन तीनों पर विचार कर लीजिये।

  1. सजातीय भेद शून्‍य- श्रीकृष्‍ण के ही अभिन्‍न स्‍वरूप नारायण एवं समस्‍त अवतार हैं। वें सब श्रीकृष्‍ण पर निर्भर हैं। अतः सजातीय भेद शून्‍य हैं। जीव भी चित् (चेतन) है। एवं श्रीकृष्‍ण की सत्‍ता पर निर्भर है। यह सजातीय भेद शून्‍य हुआ।
  2. विजातीय भेद शून्‍य- श्रीकृष्‍ण ब्रह्म चिद्रूप हैं। उनका विजातीय तत्‍व जड़ है। किंतु वह जड़ प्रकृति भी श्रीकृष्‍ण से ही नियन्त्रित है। अतः यह विजातीय भेद शून्‍य हुआ।
  3. स्‍वगत भेद शून्‍य- श्रीकृष्‍ण में देह एवं देही का भेद नहीं है। जबकि जीवों का देह पृथक् होता है। तथा प्राकृत होता है। भगवान् का देह भगवान् ही है। यह स्‍वगतभेद शून्‍य होता है।

यथा-

आनन्‍दमात्रकरपादमुखोदरादिः

पुनश्च- आनन्‍दचिन्‍मय सदुज्‍वल विग्रहस्‍य।  (ब्र. सं.)

इस प्रकार यह सिद्ध हुआ कि अद्वय ज्ञान तत्‍व श्रीकृष्‍ण ही हैं। अद्वितीय भी है।

यथा-

‘न तत्‍समश्‍ चाभ्‍यधिकश्‍ च दृश्‍यते’     (श्‍वेता. 6-8)

उपर्युक्‍त अद्वय ज्ञान तत्‍व रूप परब्रह्म श्रीकृष्‍ण का तीनक अभिन्‍न रूप होता है। यथा 1 ब्रह्म, 2 परमात्‍मा, 3 भगवान्। जैसे जल, बर्फ एवं गैस तीनों ही जल के ही स्‍वरूप हैं। ऐसे ही ब्रह्म, परमात्‍मा, एवं भगवान् , तीनों एक ही के 3 रूप हैं। यह 3 प्रकार का कल्पित भेद जीवों की इच्‍छापूर्ति के हेतु ही बनाया गया है। जैसे बादल युक्‍त सूर्य (ब्रह्म), बादल रहित सूर्य(परमात्‍मा), खुर्दबीन से दृष्‍ट सूर्य (भगवान्) वस्‍तुतः एक ही हैं।

तात्‍पर्य यह कि ब्रह्मानन्‍द भी अनन्‍त एवं नित्‍य है किंतु उससे सरस सगुण साकार परमात्‍मानन्‍द है। तथा उस परमात्‍मानन्‍द से भी सरस लीला परिकर युक्‍त कृष्‍णानन्‍द है। इसी से कृष्‍ण गुणानुवाद के एक श्‍लोक को सुनकर आत्‍माराम पूर्णकाम परम निष्‍काम निर्ग्रंथ परमहंस शुकदेव अपना ब्रह्मानन्‍द भुलाकर बरबस प्रेमानन्‍द (भगवदानन्‍द) में विभोर हो गये। शुकदेव एवं सनकादिक, व्‍यासादिक तथा ब्रह्मादिकों ने तीन रसों का अनुभव किया है। किंतु अंत में श्रीकृष्‍णानन्‍द में ही सदा को लीन हो गये। अतः स्‍वप्‍न में भी भेद बुद्धि न आने पाये।

राधे राधे राधे राधे राधे राधे

आध्यात्म

महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन, सीएम योगी ने दी बधाई

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लखनऊ ।लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आज तीसरा दिन है. आज के दिन डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जाएगा और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं. आज नदी किनारे बने हुए छठ घाट पर शाम के समय व्रती महिलाएं पूरी निष्ठा भाव से भगवान भास्कर की उपासना करती हैं. व्रती पानी में खड़े होकर ठेकुआ, गन्ना समेत अन्य प्रसाद सामग्री से सूर्यदेव को अर्घ्य देती हैं और अपने परिवार, संतान की सुख समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।

यूपी के मुख्यमंत्री ने भी दी बधाई।

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