उत्तर प्रदेश
बिहार ही नहीं बाजार में होगी यूपी की लीची की बहार
लखनऊ। आने वाले कुछ वर्षों में बाजार में सिर्फ बिहार ही नहीं उत्तर प्रदेश के लीची की भी बहार होगी। बिहार के जिन जिलों (मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर और चंपारन आदि) में लीची की खेती होती है उनकी कृषि जलवायु क्षेत्र (एग्रो क्लाइमेट जोन) कमोबेश यूपी के पूर्वांचल के ही समान हैं। ऐसे में स्वाभाविक रूप से इस क्षेत्र में पूर्वांचल की ही भूमिका अग्रणी होगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी गृह जनपद पूर्वांचल का गोरखपुर ही है। ऐसे में सरकार और इसकी कृषि संस्थाओं का भी लीची की खेती पर खास फोकस है।
कैसे लगाएं लीची के बाग
लीची के पौधों के रोपण में विशेष सावधानी रखें। जिस गड्ढे में लीची के पौधे का रोपण किया जाए उसमें लीची के पुराने पेड़ के नीचे की मिट्टी अवश्य डालें। इसमें माइक्रोराइजा पाया जाता है जो लीची के नए पौधों की बढ़वार के लिए अति आवश्यक है। इससे लीची के पौधों के मरने की आशंका कम रहती है।
पूर्वांचल के लिए उपयुक्त प्रजातियां
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार गोरखपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह के अनुसार पूर्वांचल के कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार किसानों को कुछ खास प्रजातियों के रोपण की सलाह दी जाती है।ये सात प्रजातियां हैं रोज सेंटेड, शाही, चाइना, अर्ली वेदाना, लेट बेदाना, गांडकी संपदा और गांडकी लालिमा। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के तहत चयनित इस केंद्र का प्रयास है कि किसानों को बेहतर फलत वाले गुणवत्ता के पौध मिलें। इसके लिए हर प्रजाति के कुछ पौधे भी लगाए गए हैं। इनमें से श्रेष्ठतम गुणवत्ता के पेड़ से नर्सरी तैयार कर किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा।
लीची अनुसंधान केंद्र और टाटा ट्रस्ट भी दे रहा प्रोत्साहन
सस्टेनेबल ह्यूमन डेवलपमेंट एसोसिएशन नामक संस्था टाटा ट्रस्ट, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर और कृषि विज्ञान केंद्र कुशीनगर की मदद से यह काम पिछले कुछ वर्षों से कर रही है। संस्था के प्रमुख वीएम त्रिपाठी के अनुसार जरूरत के अनुसार वे संबंधित संस्थाओं से प्लांटिंग मैटेरियल, तकनीकी और अन्य सहयोग लेते हैं। अब तक उनकी संस्था की मदद से शाही और चाइना लीची के करीब 40 से 50 एकड़ बाग लगाए जा चुके हैं। किसान इनमें सीजन के अनुसार सहफसल भी लेते हैं।
लीची के बाग सहफसली खेती के लिए भी मुफीद
डॉ. एसपी सिंह के अनुसार लीची के नवरोपित बाग में लाइन से लाइन और पौध से पौध के बीच की खाली जगह में किसान सीजन के अनुसार सहफसल भी ले सकते हैं। मसलन शुरुआत के कुछ वर्षों में फूलगोभी, पत्तागोभी, मूली, गाजर, मेंथी, पालक, लतावर्गीय सब्जियां उगाई जा सकती हैं। जब पौधों की छांव अधिक होने लगे तो छायादार जगह में हल्दी, अदरक और सूरन की खेती भी कर सकते हैं। ऐसा करने से बागवानों की आय तो बढ़ेगी ही, सहफसल के लिए लगातार देखरेख से बाग का भी बेहतर प्रबंधन हो सकेगा। कलांतर में इसका लाभ बेहतर फलत और फलों की गुणवत्ता के रूप में मिलेगा।
लीची को कहते हैं फलों की रानी
सुर्ख लाल रंग। रस इतना कि छिलका उतारने के साथ ही टपकने लगे। मिठास से भरी लीची को इन्हीं खूबियों के कारण फलों की रानी कहा जाता है। बाजार में आने पर भी लीची का जलवा रानी जैसा ही होता है। मात्र दो तीन हफ्ते के लिए लीची बाजार में आती है और छा जाती है। यह एकमात्र फल है जिसका थोक कारोबार तड़के शुरू होता है और दिन चढ़ने के साथ ही सारा माल खत्म। मसलन लीची को लेकर बाजार कभी समस्या नहीं रहा।
उत्तर प्रदेश
महाकुम्भ 2025 के सफल आयोजन के लिए 07 हजार बसों के अलावा 550 शटल बसें संचालित करेगा परिवहन निगम
लखनऊ/प्रयागराज। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशन में उ0प्र0 परिवहन निगम दिव्य, भव्य एवं ग्रीन महाकुम्भ मेला-2025 के सफल आयोजन के लिए 07 हजार बसों को संचालित करेगा। परिवहन निगम प्रदेश के सभी महत्वपूर्ण स्थानों से सुगम, सस्ती एवं आरामदायक सुविधायें उपलब्ध कराने के लिए कटिबद्ध है।
महाकुम्भ मेला में सड़क मार्ग से पूर्वाचल से अधिक संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। इसके दृष्टिगत पूर्वांचल के छोटे-छोटे कस्बों से मेला स्थल को जोड़ते हुए बसों के संचालन की योजना परिवहन निगम ने तैयार की है। महिला एवं वृद्ध तीर्थयात्रियों को विशेष सुविधा प्रदान करने की योजना बनाई गयी है।
3 चरणों में संचालन
एमडी परिवहन निगम मासूम अली सरवर ने बताया कि महाकुम्भ मेला 2025 के दौरान मुख्य स्नान 13 जनवरी से 26 फरवरी, 2025 के बीच पड़ रहे, जिसमें मौनी अमावस्या का शाही स्नान 29 जनवरी एवं बसंत पंचमी का शाही स्नान 03 फरवरी, 2025 को है। महाकुम्भ 2025 के दौरान लगभग 6800 परिवहन बसें एवं लगभग 200 वातानुकूलित बसों का संचालन किये जाने की योजना है।
प्रथम चरण में 12 जनवरी से 23 जनवरी तक द्वितीय चरण में 24 जनवरी से 07 फरवरी तक एवं तीसरे चरण में 08 फरवरी से 27 फरवरी तक तीन चरणों में महाकुम्भ मेले में संचालन को बाटा गया है। निगम के कुल 19 क्षेत्रों से लगभग 165 मार्गों पर निगम की बसों का संचालन किया जायेगा।
550 शटल बसें चलाई जाएंगी
एमडी परिवहन निगम ने बताया कि बसों के अतिरिक्त 550 शटल बसें विभिन्न स्थाई एवं अस्थाई बस स्टेशनों एवं विभिन्न मार्गों पर निर्धारित वाहन पार्किंग स्थलों से संगम तट के निकट स्थित भारद्वाज पार्क एवं भारत स्काउट गाइड कालेज बैक रोड तक तथा लेप्रोसी बस स्टेशन व अंधावा बस स्टेशन तक संचालित किये जाने की योजना है।
उन्होंने बताया कि मुख्य स्नान पर्व पर शश्रद्धालुओं की अत्यधिक भीड़ बढ़ने के कारण शास्त्रीपुल, फाफामऊ पुल एवं यमुना पुल यातायात हेतु प्रतिबंधित रहने की स्थिति में शहर के बाहर कुल 08 अस्थाई बस स्टेशन गठित किये जायेंगे, जिसमें झूसी बस स्टेशन, दुर्जनपुर बस स्टेशन, सरस्वतीगेट बस स्टेशन, नेहरू पार्क बस स्टेशन, बेली कछार बस स्टेशन, बेला कछार बस स्टेशन, सरस्वती हाइटेक सिटी मेनू एवं लेप्रोसी मिशन बस स्टेशन हैं।
इन मार्गों प्रभाग संचालन
एमडी ने बताया कि झूसी बस स्टेशन से दोहरी घाट, बड़हलगंज, गोला, उरूवा, खजनी, सीकरीगंज, गोरखपुर मार्ग, आजमगढ़-बलिया-मऊ व सम्बद्ध मार्ग के लिए बसों का संचालन किया जायेगा। दुर्जनपुर बस स्टेशन का उपयोग झूसी बस स्टेशन की बसों का संचालन मेला प्रशासन द्वारा रोके जाने पर किया जायेगा।
इसी प्रकार सरस्वतीगेट बस स्टेशन से बदलापुर, शाहगंज, टांडा व सम्बद्ध मार्ग एवं वाराणसी एवं संबद्ध मार्ग के लिए बसों का संचालन किया जायेगा, नेहरू पार्क बस स्टेशन से कानपुर एवं कौशाम्बी को संबद्ध मार्ग के लिए, बेला कछार बस स्टेशन से रायबरेली लखनऊ व संबद्ध मार्ग एवं फैजाबाद, अयोध्या, गोण्डा, बस्ती, बहराइच व संबद्ध मार्ग के लिए, सरस्वती हाइटेक सिटी नैनी से विन्ध्यांचल, मिर्जापुर, शक्तिनगर व संबद्ध मार्ग के लिए, लैप्रोसी मिशन बस स्टेशन से बांदा-चित्रकूट व संबद्ध मार्ग एवं रीवा-सीधी व संबद्ध मार्ग के लिए संचालन किया जायेगा।
नेहरू पार्क बस स्टेशन पर बसों का संचालन मेला प्रशासन द्वारा रोके जाने पर बसों का संचालन बेली कछार बस स्टेशन से किया जायेगा।
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