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मुश्किल हो रहा पीडीएफ को घर बचाना

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उत्‍तराखण्‍ड के सियायत की धुरी, निर्दलीय उक्रांद व बसपा के संयुक्त मोर्चे, प्रोगे्रसिव डेमोक्रेटिव फ्रंट, मंत्री प्रसाद नैथानी

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उत्‍तराखण्‍ड के सियायत की धुरी, निर्दलीय उक्रांद व बसपा के संयुक्त मोर्चे, प्रोगे्रसिव डेमोक्रेटिव फ्रंट, मंत्री प्रसाद नैथानी

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देहरादून। प्रदेश की सियायत की धुरी बने निर्दलीय, उक्रांद व बसपा के संयुक्त मोर्चे अर्थात प्रोगे्रसिव डेमोक्रेटिव फ्रंट (पीडीएफ) को अब बनाए रखना भी भारी हो रहा है। इस मोर्चे से जुड़े बसपा के दो विधायक सीधे-सीधे पीडीएफ से किनारा करने का ऐलान कर चुके हैं। अब पीडीएफ में केवल तीन निर्दलीय व एक उक्रांद विधायक ही बचे हुए हैं। मौजूदा हालात में इन सबको एक साथ रखना न केवल पीडीएफ प्रमुख मंत्री प्रसाद नैथानी बल्कि कांगे्रस के लिए भी एक चुनौती बन गया है। पीडीएफ की भूमिका शुरू से ही प्रदेश की सियासत में महत्वपूर्ण रही है।

2012 के विधानसभा चुनावों में पीडीएफ के सहयोग से ही कांगे्रस प्रदेश की सत्ता संभाल पायी थी। इस दौरान पीडीएफ के विधायकों को मंत्री बनाने का समझौता हुआ लेकिन शुरुआत में केवल चार को ही मंत्री पद मिला। इसमें बसपा कोटे से एक ही मंत्री शामिल था। इस पर बसपा ने अपनी नाराजगी भी जताई थी। हालांकि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के बाद रावत सरकार ने दिनेश धनै को मंत्री बनाकर पीडीएफ को साधने का प्रयास किया, लेकिन बसपा की नाराजगी बरकरार रही। इस दौरान बसपा कोटे से मंत्री सुरेन्द्र राकेश का बीमारी के कारण निधन हो गया। ऐसे में बसपा को उम्मीद थी कि रिक्त मंत्री पद उसके हिस्से में आयेगा परन्तु ऐसा नहीं हुआ।

बीती 18 मार्च को कांगे्रस के नौ विधायकों की बगावत के बाद प्रदेश में सियासी संकट गहरा गया और सरकार भी अल्पमत में आ गई। राज्यपाल ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को सदन में बहुमत साबित करने के लिए 28 मार्च का समय तय किया। इस बीच कांगे्रस के मुख्य सचेतक की शिकायत पर विधानसभा अध्यक्ष ने बागी नौ विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी। ऐसी स्थिति में पीडीएफ के हाथों में सत्ता की चाबी आ गई। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद पीडीएफ की राजनीति में कुछ बदलाव देखने को मिला। पीडीएफ बिखरने लगी। बसपा विधायकों ने पीडीएफ से नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया। इससे पीडीएफ की एकता पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि बसपा ने यह कदम दवाब की राजनीति के तहत उठाया है। अब देखना यह है कि पीडीएफ इस संकट से उबरती है या फिर बिखरती है।

 

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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