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जम्मू-कश्मीर के लिए ऐतिहासिक दिन, 34 साल में पहली बार निकाला गया मुहर्रम का जुलूस
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर में कल का दिन ऐतिहासिक रहा है। तीन दशकों के प्रतिबंध के बाद पैगम्बर मुहम्मद के पोते हज़रत इमाम हुसैन की जय-जयकार के बीच, सीना ठोककर और हज़रत इमाम हुसैन को याद करते हुए मुहर्रम का जुलूस निकाला गया।
34 साल के लंबे इंतजार के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि श्रीनगर के गुरु बाजार और लालचौक के साथ सटे पारंपरिक मार्ग से आठ मुहर्रम का जुलूस निकला गया है। इससे साफ होता है कि जम्मू-कश्मीर में धीरे-धीरे हालात बदल रहे हैं। वहां पर स्थिति सामान्य होती हुई नजर आ रही है।
शांति व धार्मिक श्रद्धा के साथ निकाला गया जुलूस
शिया समुदाय के द्वारा निकाले गए जुलूस में सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। सभी ने काले कपड़े पहने हुए थे। न कोई राजनीतिक नारा गूंजा, न किसी ने आजादी समर्थक या राष्ट्रविरोधी नारेबाजी की। अलगाववादियों के झंडे और पोस्टर भी कहीं नजर नहीं आए। पूरी तरह शांति व धार्मिक श्रद्धा के साथ जुलूस निकाला गया।
प्रशासन ने जुलूस निकालने के लिए सुबह छह से आठ बजे तक का समय निर्धारित किया था, लेकिन श्रद्धालुओं की संख्या और स्थिति को देखते हुए इसे 11 बजे तक की अनुमति दी गई। वहीं, मुहर्रम के जुलूस पर पारंपरिक मार्ग से प्रतिबंध हटाने पर कश्मीर के लोगों ने प्रशासन की जमकर सराहना की।
इन मार्गों से निकाला गया जुलूस
कश्मीर में सबसे बड़े जुलूसों में से एक मुहर्रम का यह जुलूस जहांगीर चौक, बडशाह चौक, सेंट्रल टेलीग्राफ कार्यालय, मौलाना आजाद रोड से होते हुए शांतिपूर्वक गुजरा और डलगेट में जाकर संपन्न हुआ। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के निर्देश पर प्रदेश प्रशासन ने साल 1988 के बाद पहली बार मुहर्रम का ताजिया श्रीनगर में सिविल सचिवालय के पास गुरु बाजार से सिविल लाइंस की ओर से डलगेट तक अपने पारंपरिक मार्ग पर निकालने की अनुमति दी।
जुलूस निकालने के लिए ये रखी गई थी शर्त
प्रशासन ने जुलूस की आयोजक यादगार-ए-हुसैन कमेटी के समक्ष पहले ही शर्त रखी थी कि इस दौरान कोई राजनीति या राष्ट्रविरोधी नारेबाजी नहीं होनी चाहिए। इसका जुलूस में असर भी दिखा। जुलूस में श्रीनगर के जिला उपायुक्त मोहम्मद एजाज भी शामिल हुए। कश्मीर के एडीजीपी विजय कुमार और श्रीनगर के एसएसपी राकेश बलवाल समेत कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी सुरक्षा प्रबंधों का जायजा लेते नजर आए।
क्यों लगा था मुहर्रम के जुलूस पर प्रतिबंध?
कश्मीर में साल 1988 के बाद आठ मुहर्रम जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। साल 1989 में मुहर्रम के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह राष्ट्रपति जिया उल हक की मौत के कारण कश्मीर में हालात को देखते हुए आठ मुहर्रम का जुलूस नहीं निकालने दिया गया था।
1990 में आतंकी हिंसा और अलगाववाद का दौर शुरू हो गया। जुलूस में शिया श्रद्धालुओं के बजाय आतंकी संगठन जेकेएलएफ (JKLF) और हुर्रियत के पूर्व चेयरमैन मौलवी अब्बास अंसारी के समर्थक ही ज्यादा होते थे। जुलूस में सांप्रदायिक हिंसा भी शुरू हो गई।
जुलूस की आड़ में होती थी अलगाववादी सियासत
मुहर्रम के जुलूस की आड़ में होने वाली अलगाववादी सियासत पर रोक लगाने के लिए प्रशासन ने लालचौक और उसके साथ सटे इलाकों में जुलूस पर रोक लगा दी। इसके बावजूद जेकेएलएफ और अंसारी के समर्थक उत्तेजक नारेबाजी करते हुए जबरन जुलूस निकालते और उनकी पुलिस के साथ हिंसक झड़पें होती थी।
हिंसा के बढ़ती घटनाओं को देखते हुए मुहर्रम के जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। साल 1988 तक आठ मुहर्रम का जुलूस गुरु बाजार से शुरू होकर हरि सिंह हाई स्ट्रीट, लाल चौक, बरबरशाह, नवापोरा और खानयार से गुजरते हुए हसनाबाद के इमामबाड़ा में संपन्न होता था।
बाद में इसका मार्ग बदलकर एमए रोड होते हुए अंजुमन-ए-हैदरिया डलगेट तक सीमित कर दिया गया था। वहीं, अब 34 साल बाद वहां पर हालात बदले और शांतिपूर्वक जुलूस निकाला गया। लोगों ने प्रशासन की तारीफ की।
आतंकी हिंसा व अलगाववाद का दौर हुआ समाप्त
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि आज कश्मीर में शिया भाइयों के लिए ऐतिहासिक दिन है। 34 वर्ष बाद पारंपरिक मार्ग गुरु बाजार से डलगेट तक मुहर्रम का जुलूस निकाला गया है, क्योंकि कश्मीर में अब आतंकी हिंसा व अलगाववाद का दौर समाप्त हो चुका है, धर्म के नाम पर कश्मीर को तबाह करने में जुटी ताकतें विफल हो चुकी हैं।
यह प्रदेश में सामान्य स्थिति का प्रमाण है। बीते कुछ वर्षों में लिए गए ऐतिहासिक निर्णय के कारण आज क्षितिज पर एक शांतिपूर्ण जम्मू-कश्मीर उभरा है। ‘मैं करबला के शहीदों को नमन करता हूं। मैं शिया भाइयों को आश्वासन देता हूं कि प्रशासन हमेशा उनके साथ खड़ा रहेगा।’
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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