भागवत कहती है कि- कौमार आचरेत्प्राज्ञो धर्मान् भागवतानिह। दुर्लभं मानुषं जन्म तदप्यध्रुवमर्थदम् ।। (भाग. 7-6-1) अर्थात् कुमारावस्था में ही साधना प्रारम्भ कर दो। क्योंकि अगली अवस्था...
हरि को नाम रूप गुन, हरिजन नित्य निवास। सबै एक हरि रूप हैं, सब में सबको वास।। 17।। भावार्थ- श्रीकृष्ण एवं उनके नाम, रूप, गुण एवं...
जो सवमी सों चहइ कछु, सो नहिं दास कहाय। सोउ स्वामी न कहाय जो, दासहिं आस लगाय।।16।। भावार्थ- जो दास अपने स्वामी से कुछ चाहता है।...
यह तो ठीक है कि सायुज्य मुक्ति में प्रेमानन्द नहीं मिलता। अतः निन्दनीय है। किंतु शेष 4 मुक्ति में तो प्रेमानन्द मिलता है। इसकी निन्दा या...
किंतु मुक्ति के विषय में बुद्धिमानों को भी आश्चर्य होता है कि उसे चुड़ैल क्यों कहा? मुक्ति तो भुक्ति रूपी चुड़ैल से छुटकारा दिलाकर ब्रह्मानन्द प्रदान...
यह मुक्ति भी 5 प्रकार की बताई गई है। यथा- सालोक्यसार्ष्टिसामीप्यसारूप्यैकत्वमप्युत। (भाग. 3-29-13) अर्थात् 1. सार्ष्टि, 2. सामीप्य, 3. सालोक्य, 4. सारूप्य, 5. एकत्व अथवा कैवल्य।...
हरि अनुराग विराग जग, आपुहिँ आपु न होय। मन ते भजन किये बिना, भक्ति न पावे कोय।।14।। भावार्थ- संसार से वैराग्य एवं श्रीकृष्ण से अनुराग ये...
उन श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के हेतु साधनों का भी ज्ञान प्राप्त करना होगा। और वह ज्ञान यही होगा कि केवल भक्ति के द्वारा ही श्रीकृष्ण...
जब आत्मा दिव्य नित्य तत्तव है, जो उसका विषय भी दिव्य ही होगा। संसार, आत्मा का विषय हो ही नहीं सकता। वस्तुतः प्रत्येक अंश अपने अंशी...
जग महँ सुख दुख दोउ नहिँ, अस उर धरि ले ज्ञान। सुख माने दुख मिलते है, सुख न जगत महँ मान।।11।। भावार्थ- संसार में न सुख...