वास्तव में सिद्ध महापुरुषों के पास यमराज स्वयं जाकर उनके चरणों में सिर रखकर प्रार्थना करता है कि आपका समय हो गया है। सूचनार्थ ही आया...
अर्थात् साधक अपने आपको तृण से भी निम्न समझे। वृक्ष से भी अधिक सहनशील बने। सबको मान दे किंतु स्वयं मान को विष माने। सच तो...
आपको यह भी छूट दे दी गई है कि चाहे जिस आयु का रूपध्यान बना लीजिये। बार-बार आयु का परिवर्तन भी करते रहिये। उनके नाम, गुण,...
अर्थात् गुरु कोई पृथक् तत्व नहीं है, वह मैं ही हूँ। इन सब में कहीं भी दुर्भावना होने पर अक्षम्य नामापराध हो जायगा। वैसे तो निन्दनीय...
गुरु बनाने का अभिप्राय कान फुंकाने आदि आडंबर से नहीं है। गुरु रूप से वरण करना है मन से ही। जब अन्तःकरण शुद्ध हो जायगा (साधना-भक्ति...
आत्मज्ञान प्राप्त करने के हेतु 8 अन्तरंग साधन सहस्त्रों जन्म करने पड़ते हैं। यथा 1 विवेक, 2 वैश्राग्य, 3 शमादिषट् संपत्ति, 4 मुमुक्षत्व, 5 महावाक्य श्रवण,...
माया है जड़ शक्ति पै, ज्ञानिहुँ पार न पाय। याको कारन स्वयं हरि, याको प्रेरक आय।।7।। भावार्थ- वस्तुतः माया जड़ शक्ति है। किंतु इस माया को...
इसी शक्ति से सब से आश्चर्यजनक बात यह होती है, कि जो श्रीकृष्ण ब्रह्मा शंकरादि के मनमोहन रहते थे। वे स्वयं स्वमनमोहन बन जाते हैं। यथा-...
इन तीनों में ब्रह्म तो अव्यक्त शक्तिक है। अर्थात् समस्त शक्तियाँ तो है, किन्तु उनका विकास नहीं होता। फिर भी ब्रह्म के अस्तित्व के हेतु तो...
वह ब्रह्म का आनन्द नित्य एवं अनन्त है। जबकि जगत् का आनन्द अनित्य एवं अल्प है। पुनः वह आनन्द चेतन भी है। संसारी आनन्द जड़ है।...