तात्पर्य यह कि वह एवं उसकी शक्तियाँ इतनी बड़ी (अनन्त) हैं कि न तो उनसे बड़ा कोई है, न तो उनके बराबर ही कोई है। कुछ...
कृष्ण बहिर्मुख जीव कहँ, माया करति अधीन। ताते भूल्यो आपु कहँ, बन्यो विषय-रस-मीन।। 5।। भावार्थ- अनादिकाल से जीव अपने स्वामी से विमुख है। अतएव माया ने...
सारांश यह है कि ‘एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म’ (छान्दो. 6-2-1-) इस श्र ुति के अनुसार राधाकृष्ण के अतिरिक्त कोई शक्ति, या शक्तिमान नहीं है। राधाकृष्ण एक आत्मा दुई...
अर्थात् सदंश की अधिष्ठात्री शक्ति को संधिनी शक्ति एवं चिदंश की अधिष्ठात्री शक्ति को संवित् शक्ति तथा आनन्द शक्ति की अधिष्ठात्री शक्ति को ह्लादिनी शक्ति...
अर्थात् एक बार श्री राधा जी ने लीला में श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं तुम्हारे वियोग में कैसे जीवित रह सकूँगी। तब श्रीकृष्ण ने उपर्युक्त उदाहरण...
अस्तु उपर्युक्त वेदादि प्रमाणों एवं युक्तियों से राधा तत्व अनादि अद्वितीय सिद्ध है। अद्वितीय शब्द का प्रयोग एवं एक शब्द का प्रयोग देखकर कुछ शंका हो...
उपर्युक्त दोनों स्थलों में राधा नाम का स्पष्ट उल्लेख है। एक बात प्रमुख रूप से विचारणीय है कि श्रीकृष्ण की भांति श्री राधा जी के भी...
केवल ऋग्वेद में ही राधा शब्द का प्रयोग सातों विभक्तियों में हुआ है। यथा- राधः (ऋग्वेद 1-9-5) राधांसि (ऋग्वेद 1-22-8) राधसा (ऋग्वेद 1-48-14) राधसे (ऋग्वेद 1-17-7)...
तात्पर्य यह कि अनन्त ब्रह्माण्डात्मक विश्व प्रपंच एवं ब्रह्मादि ब्रह्माण्डनायकों के परमाराध्य परब्रह्म श्रीकृष्ण भी श्री राधा तत्व की निरन्तर आराधना करते हैं। अतः राधा तत्व...
यथा- ब्रह्मवादिनो वदन्ति, कस्माद्राधिकामुपासते आदित्योऽभ्यद्रवत् । श्रुतयः ऊचुः- सर्वाणि राधिकाया दैवतानि सर्वाणि भूतानि राधिकायास्तां नमामः। देवतायतनानि कंपंते राधाया हसंति नृत्यंति च सर्वाणि राधा दैवतानि ………… न...