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बढ़ता गन्ना बकाया रुला रहा किसानों को खून के आंसू

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उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में साढ़े चार एकड़ खेत में गन्ने की खेती कर रहे किसान केके बाजपेई ( 35 वर्ष) का 50,000 रुपए से ज़्यादा का भुगतान अभी भी उनके घर की पास की चीनी मिल पर बकाया है। लगातार घाटे में चल रहे गन्ना किसानों की यह हालत सिर्फ लखीमपुर जिले की नहीं है, बल्कि पूरे देश में चीनी मिलों ने अभी तक किसानों का 170 अरब रुपए का भुगतान उन्हें आज तक नहीं किया है।

लखीमपुर जिले के सिंहनिया गाँव के रहने वाले किसान केके बाजपेई गन्ना किसानों की बुरी हालत के बारे में बताते हुए कहते हैं,” पूरे लखीमपुर में अभीतक हज़ारों गन्ना किसानों को चीनी मिलों ने उनका भुगतान नहीं किया है। पिछले साल हमने अपने गाँव के पास की बजाज चीनी मिल में 600 कुंतल गन्ना पेराया था। पेराई गए गन्ने के बाद मिली 10 पर्चियों में अभी तक छह पर्चियों का पैसा नहीं मिला है।”

पूरे भारत में चिनी मिलें नहीं कर रही गन्ना किसानों का भुगतान। (सभार – गूगल इमेज)

भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के मुताबिक देश में गन्ने की बकाया राशि मार्च में फरवरी के मुकाबले 10 फीसदी बढ़ गई है। इसकी वजह यह है कि चालू पेराई सीजन में चीनी की कीमतों में लगातार गिरावट से चीनी मिलें किसानों को गन्ने का भुगतान नहीं कर पा रही हैं। इस्मा का यह अनुमान है कि मिलों का किसानों पर कुल बकाया मार्च के अंत तक बढ़कर 170 अरब रुपए पर पहुंच गया है, जो फरवरी के अंत में 150 अरब रुपए था।

पिछले साल गन्ना किसानों ने अपनी समस्या को लेकर सहारनपुर, शामली और मुजफ्फरनगर जिलों के गन्ना आयुक्त कार्यालय पर बैठक की थी। बैठक में किसानों की समस्या यह थी कि सरकार निजी चीनी मिलों पर सख्ती करती है, लेकिन सहकारी क्षेत्र की मिलें किसानों को भुगतान समय से नहीं करती हैं। इसके अलावा गन्ना भुगतान को लेकर हरियाणा ,उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र ने गन्ना किसानों ने अपना विरोध प्रदर्शन भी किया था, लेकिन इसके बावजूद गन्ना किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।

महाराष्ट्र में मार्च के महीने में चीनी की एक्स-फैक्टरी कीमत 100 से 150 रुपए घट गई, इससे महाराष्ट्र में चीनी की प्रति कुंतल कीमत 2,850 रुपए हो गई। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में भी चीनी 3,000 रुपए प्रति कुंतल हो गई है। इस्मा के अनुमान के मुताबिक मार्च के अंत तक उत्तर प्रदेश में गन्ने की बकाया राशि 72 अरब रुपए और महाराष्ट्र में 25 अरब रुपए थी। इसके अलावा बिहार, पंजाब, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, गुजरात, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों में भी गन्ने का कुल बकाया 40 अरब रुपए था।

चीनी मिलों की हालत पूरे देश में एक जैसी। (सभार – गूगल इमेज)

उत्तर प्रदेश के अपर चीनी आयुक्त राकेश मिश्रा ने बताया, ” चीनी मिलों की आमदनी पूरी तरह से चीनी के दाम पर निर्भर होती है, इस समय बाज़ार में चीनी के दाम में गिरावट आने से मिलों को काफी घाटा हुआ है। इसलिए मिलों को किसानों का भुगतान करने में समय लग रहा है। हालांकि किसानों को जल्द भुगतान कराने के लिए हमने मिलों का अलग से खाता खुलवाया है। इस खाते में मिलों की तरफ से जमा किए गए पैसे पर सरकार की पूरी नज़र रहेगी, जिससे किसानों का पैसा सुरक्षित रखा जा सके।”

चीनी मिलों का गन्ना किसानों को भुगतान न कर पाने का कारण बताते हुए इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने यह कहा है कि घरेलू बिक्री से चीनी के कम दाम मिलने और वैश्विक चीनी बाज़ार में भी कीमतें कमज़ोर होने से चीनी मिलें किसानों को समय पर गन्ने का भुगतान नहीं कर पा रही हैं।

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गैस चेंबर बनी दिल्ली, AQI 500 तक पहुंचा

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नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में इन दिनों सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। दरअसल दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर बदतर स्थिति में है। अगर श्रेणी के आधार पर बात करें तो दिल्ली में प्रदूषण गंभीर स्थिति में बना हुआ है। कल जहां एक्यूआई 470 था तो वहीं आज एक्यूआई 494 पहुंच चुका है। दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में एक्यूआई के आंकड़ें आ चुके हैं। अलीपुर में 500, आनंद विहार में 500, बवाना में 500 के स्तर पर एक्यूआई बना हुआ है।

कहां-कितना है एक्यूआई

अगर वायु गुणवत्ता की बात करें तो अलीपुर में 500, बवाना में 500, आनंद विहार में 500, डीटीयू में 496, द्वारका सेक्टर 8 में 496, दिलशाद गार्डन में 500, आईटीओ में 386, जहांगीरपुरी में 500, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 500, लोधी रोड में 493, मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम 499, मंदिर मार्ग में 500, मुंडका में 500 और नजफगढ़ में 491 एक्यूआई पहुंच चुका है। दिल्ली की वायु गुणवत्ता गंभीर श्रेणी में बनी हुई है। ऐसे में दिल्ली में ग्रेप 4 को लागू कर दिया गया है। इस कारण दिल्ली के अलावा नोएडा, गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ में स्कूलों को बंद कर दिया गया है और ऑनलाइन माध्यम से अब क्लासेस चलाए जाएंगे।

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