सृष्टि पूर्व हरि देखत, सोचत मृदु मुसकात । सगुण रूप साकार नित, वेद विदित विख्यात ।। 55 ।। भावार्थ- कुछ भोले अद्वैती कहते हैं कि ब्रह्म...
यह ब्रह्म रस रूप में आस्वाद्य एवं आस्वादक दोनों है। पूर्व में बता चुके हैं कि ब्रह्म में अनन्त स्वाभाविक शक्तियाँ होती हैं। अतः स्वाभाविक शक्तियों...