जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरति देखी तिन तैसी। अर्थात् हमने अनन्त बार भगवान् के अवतार को देखा है, किन्तु वे मायिक ही दिखाई पड़े। जैसे...
अतः बुद्धि की गति ही नहीं है। यदि बुद्धि ग्राह्य भगवान् हो जाय तो बुद्धि को ही भगवान् मानना होगा। किंतु अनेक जीवों ने जाना भी...
समुझ! समुझ सों श्याम को, समुझ सका नहिँ कोय। समुझ मिलइ जब श्याम की, समुझ सकै बस सोय।। 32।। भावार्थ- हे बुद्धिदेवी! तुम अपने बल से...
मन! मैं को मत छोड़ तू, दास जोड़ दे और। मेरा भी रख साथ में, सो रसिकन सिरमौर।।31।। भावार्थ- हे मन! तू मैं को मत छोड़।...
जिमि हो शीत निवृत्त तिन, जिन ढिग अगिनि सिधार। तिमि हो कृपा तिनहिं जिन, मन जाये हरि द्वार।।30।। भावार्थ- जिस प्रकार आग के पास जाने से...
फिर भक्ति मार्ग के अधिकारित्व एवं मार्ग में भगवान् द्वारा योगक्षेम वहनत्व पर भी विचार करना है। वेदव्यास- पत्रेषु पुष्पेषु फलेषु तोयेष्वक्रीतलभ्येषु सदैव सत्सु। भक्त्या सुलभ्ये...
ज्ञानी अरु योगी जबै, कृष्ण-भक्ति उर आन। कृष्ण कृपा ते ही तबै, पावे ब्रह्म ज्ञान।। 27।। भावार्थ- ज्ञानी एवं योगी, श्रीकृष्ण भक्ति के द्वारा ही ज्ञान...
फिर अंत में ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के हेतु भक्ति की ही शरण लेनी होगी तथा ब्रह्मज्ञान हो जाने पर भी यदि श्रीकृष्ण को देख ले। अथवा मुरलीध्वनि...
ब्रह्मसूत्र में आत्मा को अनन्त एवं कर्ता भोक्ता माना है। यदि कोई न माने तो फिर वेदान्त का उपदेश श्रवण, मनन, निदिध्यासन किसको करना है? और...
सर्वशक्ति संपन्न हो, शक्ति विकास न होय। सत चित आनँआनद रूप जो, ब्रह्म कहावे सोय।। 22।। भावार्थ- जो समस्त ईश्वरीय शक्तियों से युक्त हो किंतु सत्ता...