इसी शक्ति से सब से आश्चर्यजनक बात यह होती है, कि जो श्रीकृष्ण ब्रह्मा शंकरादि के मनमोहन रहते थे। वे स्वयं स्वमनमोहन बन जाते हैं। यथा-...
इन तीनों में ब्रह्म तो अव्यक्त शक्तिक है। अर्थात् समस्त शक्तियाँ तो है, किन्तु उनका विकास नहीं होता। फिर भी ब्रह्म के अस्तित्व के हेतु तो...
वह ब्रह्म का आनन्द नित्य एवं अनन्त है। जबकि जगत् का आनन्द अनित्य एवं अल्प है। पुनः वह आनन्द चेतन भी है। संसारी आनन्द जड़ है।...
तात्पर्य यह कि वह एवं उसकी शक्तियाँ इतनी बड़ी (अनन्त) हैं कि न तो उनसे बड़ा कोई है, न तो उनके बराबर ही कोई है। कुछ...
कृष्ण बहिर्मुख जीव कहँ, माया करति अधीन। ताते भूल्यो आपु कहँ, बन्यो विषय-रस-मीन।। 5।। भावार्थ- अनादिकाल से जीव अपने स्वामी से विमुख है। अतएव माया ने...
रामायण-यथा- ईश्वर अंश जीव अविनाशी। वेदों ने तो स्पष्ट कहा है। यथा- दिव्यो देव एको नारायणो माता पिता भ्राता। निवासः शरणं सुहृत् गतिर्नारायण इति।। (सुवाल श्रुति-...
सारांश यह है कि ‘एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म’ (छान्दो. 6-2-1-) इस श्र ुति के अनुसार राधाकृष्ण के अतिरिक्त कोई शक्ति, या शक्तिमान नहीं है। राधाकृष्ण एक आत्मा दुई...
अर्थात् सदंश की अधिष्ठात्री शक्ति को संधिनी शक्ति एवं चिदंश की अधिष्ठात्री शक्ति को संवित् शक्ति तथा आनन्द शक्ति की अधिष्ठात्री शक्ति को ह्लादिनी शक्ति...
अर्थात् एक बार श्री राधा जी ने लीला में श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं तुम्हारे वियोग में कैसे जीवित रह सकूँगी। तब श्रीकृष्ण ने उपर्युक्त उदाहरण...
अस्तु उपर्युक्त वेदादि प्रमाणों एवं युक्तियों से राधा तत्व अनादि अद्वितीय सिद्ध है। अद्वितीय शब्द का प्रयोग एवं एक शब्द का प्रयोग देखकर कुछ शंका हो...