उत्तराखंड
यमुनोत्री धाम में मिलता है शनि, हनुमान और यम का विषेश आशीष
बड़कोट। प्रसिद्व धाम यमुनोत्री के कपाट कल (आज) वैद्विक मन्त्रोचारण के साथ आम श्रद्वालुओं के लिए खुल जायेंगे। कपाट खुलने का दिन अक्षय तृतीया विषेश है। आज के दिन मां यमुना से मिलने सूर्य पुत्र यमराज, जो यमुना के भाई है और चचेरे भाई शनिदेव सहित गुरू भाई हनुमान मिलने आते हैं। यमुनोत्री धाम में आज के दिन स्नान व पूजा अर्चना करने मात्र से मां यमुना उसके जन्म जन्मान्तर के सभी पाप नष्ट कर देती है। और तो और उसे सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। मां यमुना के कपाट अक्षय तृतीया को हर वर्ष खुलते है और भैया दूज के दिन बन्द हो जाते है। देश विदेश के लाखों श्रद्वालु मां यमुना के दर्शन हेतु आते हैं और कपाट खुलने के दिन स्थानीय श्रद्वालु व हजारों की संख्या में देशी विदेशी श्रद्वालु आकर दर्शन करते है ।
मान्यता के अनुसार यमुनोत्री धाम चार धामांे में सबसे पहला दर्शनीय स्थल है। उत्तराखण्ड में जो भी श्रद्वालु आता है वह यहीं से अपनी यात्रा की शुरूआत करता है। मान्यता है कि यमुनोत्री धाम में मां यमुना के पास यमराज, शनिदेव और हनुमान हमेशा अक्षय तृतीय पर्व और भैयादूज पर्व पर मिलने आते हैं। आज के दिन जो भी श्रद्वालु यमुनोत्री धाम में आकर मां यमुना के दर्शन, पूजा अर्चना व स्नान करता है उसको यम यातनाओं से मुक्ती, शनिदेव की कुदृष्टि से निजात और भगवान हनुमान का विषेश आर्शिवाद मिलता है। यह भी मान्यता है कि शनिदेव यमुना के मायके खरसाली में विराजमान हैं तो यमुनोत्री धाम के ऊपर बन्दर पूंछ की चोटी में आज भी हनुमान जी तपस्यारत हैं।
यमुनोत्री धाम की बात करंे तो यहां पर सूर्य कुण्ड है जहां पर गर्म पानी (खौलता हुआ) में श्रद्वालु प्रसाद के रूप में चावल और आलू पकाकर अपने घर ले जाते हैं। श्रद्वालुओं को यहां पर दिव्य शिला के दर्शन भी होते हैं। और तो और तीर्थ पुरोहित यहीं पर पूजा अर्चना करवा कर श्रद्वालुओं को आर्शिवाद देते है। यहां पर महिला और पुरुषांे के लिए दो स्नान कुण्ड भी है। यमुनोत्री धाम के लिए जानकीचट्टी तक मोटर रोड़ की सुविधा है वही पांच किलो मीटर की दुर्गम खड़ी चढाई तय कर यात्रियों को आना होता है। मां यमुना की पूजा अर्चना छः माह यमुनोत्री धाम में होने के बाद भैया दूज के दिन कपाट शीतकाल के लिए बन्द कर दिये जाते हैं। और मां की उत्सव डोली को दुल्हन की तरह सजा कर ढोल नगाड़ो व शंख ध्वनी के साथ खरसाली यानी खुशीमठ लाया जाता ह,ै जहां शीतकालीन यमुना मन्दिर में मां यमुना की भोग मूर्ति को रखा जाता है। यहीं पर खरसाली के उनियाल जाति के तीर्थ पुरोहित पूजा अर्चना करते हैं।
उत्तराखंड
शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद
उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।
बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.
उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।
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