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आध्यात्म

गुरू पूर्णिमा पर ये बातें आपकोे आपके गुरू ने भी नहीं बताई होंगी, जानिए पर्व का पूरा निचोड़

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नई दिल्ली। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन ‘गुरुपूर्णिमा’ मनाई जाती हैं। इस बार गुरुपूर्णिमा 27 जुलाई को पड़ रही है वहीँ इस साल का दूसरा चन्द्र ग्रहण भी लग रहा है। गुरुपूर्णिमा के दिन हिंदू धर्म के लोग अपने गुरु को याद करके ‘गुरुपूर्णिमा’ मनाते हैं। बता दें कि इस दिन चारों वेदों के वह महाभारत के रचियता, संस्कृत के परम विद्वान कृष्ण द्वैपायन व्यास जी का जन्मदिन भी मनाया जाता है। यही वजह है कि इस दिन गुरू की पूजा करने का विधान है। इसी कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में ‘गुरुपूर्णिमा’ को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है।

हमारे देश में आज भी ‘गुरुपूर्णिमा’ का पर्व बड़े श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करते थे तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भले ही यह प्रक्रिया खत्म हो गई हो पर इसका महत्व अब भी कम नहीं हुआ है।

आज भी पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों, संगीत और कला के साथ-साथ आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े लोग इस दिन अपने अपने गुरु को याद करते हैं और उनको अपनी ओर से भेंट देकर सम्मानित करने की कोशिश करते हैं। कई धार्मिक स्थलों और मन्दिरों में विशेष पूजा भी आयोजित की जाती है। देशभर में पवित्र नदियों में श्रद्धालु स्नान करके दानपुण्य करने का कार्य करते हैं। जगह-जगह भंडारे भी आयोजित किए जाते हैं वहीँ कई स्थानों पर विशाल मेले भी लगते हैं।

बताते चलें कि शास्त्रों में गुरू को विशेष दर्जा दिया गया है। ज्योतिष के अनुसार इस दिन खीर का प्रसाद बनाकर सभी में वितरित करना भी बहुत शुभ होता है। खास तौर पर जिन लोगों का चंद्रमा सही ना हो उनके लिए यह अतिफलदायक है। गुरुपूर्णिमा से सावन का महीना भी शुरू हो जाएगा। पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। यही नहीं इस दिन साबूदाने की खीर बनाकर माता लक्ष्मी जी को भोग लागना चाहिए। इस बार गुरुपूर्णिमा 27 जुलाई को मनाई जा रही है। वहीँ ये इस साल का दूसरा वह सबसे बड़ा चंद्रग्रहण लग रहा है। यह ग्रहण 3 घंटे 55 मिनट तक रहेगा। इस बार यह ग्रहण रात 11 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर रात 3.49 बजे समाप्त होगा।

व्रत एवं त्यौहार

CHHATH POOJA 2024 : जानें कब से शुरू होगी छठी मैया की पूजा, जानिए इसे क्यों मनाते हैं

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मुंबई। त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने भी रखा था छठ का व्रत रामायण की कहानी के अनुसार जब रावण का वध करके राम जी देवी सीता और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे, तो माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखकर कुल की सुख-शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी।

छठ पूजा क्यों मनाते है ?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा अर्चना और अर्घ्य देने से सुख-शांति, समृद्धि, संतान सुख और आरोग्य की प्राप्ति होती है। छठ पूजा को डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। छठ पर्व के दौरान प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे जल, सूर्य, चंद्रमा आदि की पूजा की जाती है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है और हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है. छठ का व्रत बहुत कठिन होता है. व्रतधारी 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं. साथ ही छठ पर्व सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है. इस पर्व के दौरान लोग मिलकर पूजा करते हैं, भोजन करते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं. इससे सामाजिक एकता और भाईचारा बढ़ता है.

छठ पर्व के 4 दिन

छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- नहाय खाय.
छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना.
छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024-डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य.
छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण

 

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